सर्जिकल मास्क और एन 95 मास्क की बेहद कमी होने के बाद कोरोना वायरस से बचने के लिए लोग खुद ही कपड़े के मास्क तैयार कर रहे हैं. ऐसे में एक अध्ययन में कहा गया है कि सूती कपड़ा और प्राकृतिक सिल्क को मिलाकर या सूती कपड़े के साथ शिफॉन के कपड़े को मिलाकर बनाया गया मास्क हवा में मौजूद ठोस कणों अथवा तरल कणों को व्यक्ति के संपर्क में नहीं आने देता. लेकिन मास्क का आकार सही होना जरूरी है. अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार ‘सार्स-कोव-2', नया कोरोना वायरस जिसके कारण कोविड-19 होता है, वह मुख्य तौर पर किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने, बात करने अथवा सांस लेने के दौरान उसके मुंह अथवा नाक से निकले तरल कणों के कारण फैलता है. मास्क बनाने से संबंधित अध्ययन में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता भी शामिल हैं.
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार खांसने या छींकने से निकलने वाले तरल कण कई आकार के होते हैं लेकिन सबसे छोटे कण (एरोसोल) खास तरह के कपड़ों के रेशों में आसानी से घुस सकते हैं। पत्रिका ‘एसीएस नैनो' में प्रकाशित अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने हवा में मौजूद तरल कणों को एक समान कपड़ों से अथवा अलग-अलग प्रकार के कपड़ों से छानकर देखा और पाया कि सूती कपड़े की एक तह और शिफॉन की दो तह को मिलाकर 80-99 प्रतिशत तरल कणों को बाहर रोका जा सकता है.
उन्होंने बताया कि इन कपड़ों की तह ने एन 95 मास्क की तरह काम काम किया.अनुसंधानकर्ताओं ने हालांकि कहा कि मास्क का आकार सही होना बहुत जरूरी है, अन्यथा तरल कण आसानी से अंदर घुस सकते हैं.
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