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NDTV Explainer: भारत को दुनिया में अलग पहचान दिलाने वाले संविधान को कुछ यूं किया गया था तैयार... पढ़िए इसके बनने की पूरी कहानी

संविधान को कैसे सजाया जाए, इसे लेकर शांति निकेतन में एख बैठक हुई थी. इसी बैठक में ये तय किया गया था. उस दौरान वहां चित्रकार नंदलाल बोस और उनकी टीम ने इस काम को पूरे सोच विचार के बाद बखूबी अंजाम दिया था.

भारतीय संविधान को तैयार करने की रोचक है कहानी

नई दिल्ली:

एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणतंत्र के तौर पर भारत के 75 साल पूरे हो रहे हैं और ये 76वां गणतंत्र दिवस है.गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली के कर्तव्य पथ पर होने वाली परेड में देश की पूरी आन बान और शान दिखती है.देश के इतिहास, वर्तमान और भविष्य की शानदार झलक दिखती है.हर क्षेत्र में देश की ताक़त और कामयाबियों का प्रदर्शन किया जाता है.

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को इसलिए मनाया जाता है क्योंकि वर्ष 1950 में इसी दिन भारत ने संविधान को अंगीकार किया था और भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था.साल में ये वो मौके होते हैं जब हमें अपने देश के उन प्रतीकों पर गौर करना चाहिए जो दुनिया भर में हमारी पहचान बन चुके हैं. इनमें सबसे पहले बात लोकतांत्रिक गणराज्य भारत के उस मूल ग्रंथ की जो आज़ाद भारत की बुनियाद है.भारत का संविधान, जो दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है,उसे बनाने में दो साल ग्यारह महीने और 18 दिन लगे.9 दिसंबर 1946 को ये प्रक्रिया शुरू हुई.देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के सभापति रहे और संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन रहे डॉ बीआर अंबेडकर जिन्हें भारत के संविधान का निर्माता माना जाता है.जब संविधान सभा पहले पहल बैठी तो उसमें 389 सदस्य थे लेकिन आज़ादी के बाद ये संख्या घटकर 299 रह गई.माउंटबेटन प्लान और पाकिस्तान के अलग होने के बाद उसमें शामिल हुए इलाकों के प्रतिनिधि इससे बाहर हो गए.कुल 165 दिन में ग्यारह सत्रों के दौरान संविधान के एक एक शब्द क़ानून से जुड़े एक एक पहलू पर बारीकी से चर्चा हुई.इस दौरान हुई दिलचस्प बहसों को आज भी संसद से लेकर अदालतों और क्लासरूम्स तक याद किया जाता है.

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लंबी चर्चा के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को स्वीकार कर लिया.इसीलिए 2015 से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है.संविधान सभा द्वारा औपचारिक तौर पर स्वीकार किए जाने के दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को देश ने संविधान को अंगीकार किया और भारत को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया.भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है.इससे बड़ा संविधान किसी देश का नहीं है.लेकिन इसकी ख़ासियतों की फेहरिस्त इससे कहीं ज़्यादा लंबी है.हमारा संविधान जड़ संविधान नहीं बल्कि एक जीवंत संविधान है जो समय की ज़रूरतों के साथ बदलता भी गया.हालांकि इसकी मूलभावना से छेड़छाड़ नहीं की गई. 26 जनवरी 1950 को जब देश ने संविधान को अंगीकार किया तो इसके 22 भाग थे जो आज तक हुए 106 अलग अलग संशोधनों के बाद 25 हो चुके हैं. मूल संविधान में 395 अनुच्छेद थे जो संशोधनों के बाद अब 448 हो चुके हैं और 8 शेड्यूल यानी अनुसूचियां थीं जो तमाम संशोधनों के बाद अब 12 हो चुकी हैं.ख़ास बात ये है कि संविधान के सभी भाग, अनुच्छेद और अनुसूचियां हाथ से लिखे गए और हाथ से बनाई गई तस्वीरों से सजाए गए.

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इसीलिए हमारे संविधान को दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत संविधान भी कहा जाता है.वैसे तो ये बड़ा आसान होता कि संविधान को तैयार होने के बाद किसी प्रिंटिंग प्रेस में छपवा दिया जाता लेकिन माना जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि संविधान की मूल प्रतियां हाथ से लिखी हुई हों. इसके लिए किसी शानदार कैलिग्राफ़र यानी सुलेखक की ज़रूरत थी.ऐसा व्यक्ति जिसकी लिखावट बहुत सुंदर हो. काफ़ी सोच विचार के बाद दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़े कैलिग्राफ़र प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा से इस काम के लिए संपर्क किया गया.

अपने दादा से कैलिग्राफ़ी की कला सीख चुके रायज़ादा इसके लिए तुरंत तैयार हो गए.उन्होंने इस काम के लिए एक भी पैसा नहीं लिया बस ये आग्रह किया कि हर पन्ने के अंत में उनके नाम के साथ उनके गुरु और दादा मास्टर राम प्रसाद सक्सेना का नाम भी लिखा जाए.संविधान सभा में उन्हें एक कमरा दिया गया जहां छह महीने में उन्होंने ये काम पूरा किया.इस कमरे को बाद में संविधान क्लब कहा गया.251 पन्नों के संविधान को लिखने में इंग्लैंड और चेकोस्लोवाकिया से मंगाई गई 303 निब्स का इस्तेमाल किया गया.संविधान को हिंदी में लिखने का ज़िम्मा मिला एक और सुलेखक यानी कैलिग्राफ़र वसंत कृष्ण वैद्य को.जिस काग़ज़ पर संविधान लिखा गया वो पुणे के हैंडमेड पेपर रिसर्च सेंटर में बना था. 

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मूल संविधान न सिर्फ़ हाथ से लिखा गया बल्कि उसे हाथ से बनाई गई ख़ूबसूरत तस्वीरों से सजाया भी गया. संविधान को कैसे सजाया जाए ये सब तय हुआ शांतिनिकेतन में. जहां चित्रकार नंदलाल बोस और उनकी टीम ने इस काम को पूरे सोच विचार के बाद बखूबी अंजाम दिया. नंदलाल बोस आज़ादी की लड़ाई से काफ़ी क़रीबी से जुड़े रहे थे और कांग्रेस के अधिवेशनों के लिए भी उन्होंने पोस्टर तैयार किए थे.अक्टूबर 1949 में जब संविधान सभा का अंतिम सत्र शुरू होने वाला था और 26 नवंबर 1949 की तारीख़ क़रीब आ रही थी जिस दिन संविधान के प्रारुप पर दस्तख़त होने थे तो नंद लाल बोस को संविधान को सजाने की बड़ी ज़िम्मेदारी दी गई, समय कम था.काम बड़ा और जटिल.नंदलाल बोस की टीम काम पर जुट गई.उनकी टीम में साथी चित्रकारों के अलावा उनके छात्र भी शामिल रहे.साथी कलाकारों में कृपाल सिंह शेखावत, ए पेरूमल और धीरेंद्रकृष्ण देब बर्मन शामिल थे.

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संविधान के अलग अलग पन्नों पर पेंटिंग्स बनाई गईं जो भारत के 5000 साल के इतिहास के अलग अलग दौर की कहानी बयान करती हैं.सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक सब कुछ दिखाती तस्वीरें संविधान के पन्नों में दर्ज की गईं.यही नहीं इन पन्नों में भारत के महाकाव्यों रामायण और महाभारत से जुड़े अलग अलग दृश्य भी शामिल हैं.संविधान के पन्ने भारत के भूगोल को भी कागज़ पर उतारते हैं.रेगिस्तान में ऊंटों की चहलकदमी से लेकर हिमालय की विराट ऊंचाइयों तक सब कुछ इनमें दर्ज है.संविधान के सबसे ख़ास पन्ने, उसके Preamble यानी प्रस्तावना के पन्ने का स्केच तैयार किया बी राममनोहर सिन्हा ने.उन्होंने बड़े ही बारीक फूलदार पैटर्न से इसे तैयार किया.दीनानाथ भार्गव ने संविधान पर राष्ट्रीय प्रतीक सम्राट अशोक के सिंह स्तंभ का स्केच तैयार किया.

संविधान के पन्नों को चित्रों से सजाने का काम भी बहुत जटिल था.उसकी एक लंबी योजना बनी जिसमें कई बार बदलाव हुए.संविधान के पन्नों में जो टेक्स्ट लिखा था, उसका चारों ओर की गई चित्रकारी से कोई सीधा संबंध नहीं था लेकिन ये चित्र इतिहास में भारत की लंबी विकास यात्रा को दिखा रहे थे.

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