संसद भवन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राज्यसभा ने बिना चर्चा के अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन बिल 2015 को पारित कर दिया है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत के राज्यसभा में बिल पेश करने के दो मिनट के भीतर ही यह बिल पास हो गया।
इस बिल पर सत्तापक्ष और विपक्ष को कोई आपत्ति नहीं थी लिहाज़ा इसको बगैर चर्चा के पारित करने पर रज़ामंदी बन गई। उप सभापति ने भी कहा कि इस बिल को पारित करना मील का पत्थर साबित हुआ है।
इस बिल से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण क़ानून को और मज़बूत बनाया गया है। इसमें कई तरह के कार्यों को अपराध के दायरे में लाया गया है।
नए बिल में दलितों के कल्याण से संबंधित कामों में कर्तव्य का निर्वाह करने में लापरवाही बरतने वाले सामान्य वर्ग के लोक सेवकों के लिए छह महीने से लेकर एक साल की सज़ा का प्रावधान किया गया है।
नए बिल में दलितों को जूतों की माला पहनाने, जबरन सर पर मैला ढुलाने, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार की धमकी देने, दलित वोटर पर किसी ख़ास उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने और ग़लत ढंग से दलितों की ज़मीन हथियाने पर भी कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है।
बिल में जिला स्तर पर विशेष अदालत गठित करने की बात कही गई है जिसमें विशिष्ट लोक अभियोजक होंगे ताकि सुनवाई तेजी से हो सके।
इस बिल पर सत्तापक्ष और विपक्ष को कोई आपत्ति नहीं थी लिहाज़ा इसको बगैर चर्चा के पारित करने पर रज़ामंदी बन गई। उप सभापति ने भी कहा कि इस बिल को पारित करना मील का पत्थर साबित हुआ है।
इस बिल से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण क़ानून को और मज़बूत बनाया गया है। इसमें कई तरह के कार्यों को अपराध के दायरे में लाया गया है।
नए बिल में दलितों के कल्याण से संबंधित कामों में कर्तव्य का निर्वाह करने में लापरवाही बरतने वाले सामान्य वर्ग के लोक सेवकों के लिए छह महीने से लेकर एक साल की सज़ा का प्रावधान किया गया है।
नए बिल में दलितों को जूतों की माला पहनाने, जबरन सर पर मैला ढुलाने, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार की धमकी देने, दलित वोटर पर किसी ख़ास उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने और ग़लत ढंग से दलितों की ज़मीन हथियाने पर भी कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है।
बिल में जिला स्तर पर विशेष अदालत गठित करने की बात कही गई है जिसमें विशिष्ट लोक अभियोजक होंगे ताकि सुनवाई तेजी से हो सके।
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