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This Article is From Oct 05, 2017

केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर संघ परिवार से जुड़े संगठनों ने उठाए सवाल

गुरुवार को भारतीय मज़दूर संघ यानी बीएमएस के बड़े नेता नागपुर में बैठे. 17 नवंबर को वो संसद मार्च करने वाले हैं, इरादा उस दिन रामलीला मैदान में बीएमएस के चार से पांच लाख कार्यकर्ताओं को जुटाने का है.

केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर संघ परिवार से जुड़े संगठनों ने उठाए सवाल
नई दिल्‍ली: बुधवार को कंपनी सचिवों की बैठक में प्रधानमंत्री ने दावा किया कि अर्थव्यवस्था काफ़ी मजबूती से आगे बढ़ रही है और बीते तीन साल की उपलब्धियां पिछले 20 सालों पर भारी हैं. लेकिन विकास और ख़ुशहाली की ये तस्वीर संघ परिवार से जुड़े मज़दूर संगठनों को ही लुभा नहीं पा रही. गुरुवार को भारतीय मज़दूर संघ यानी बीएमएस के बड़े नेता नागपुर में बैठे. 17 नवंबर को वो संसद मार्च करने वाले हैं, इरादा उस दिन रामलीला मैदान में बीएमएस के चार से पांच लाख कार्यकर्ताओं को जुटाने का है. बैठक में 17 नवंबर की बड़ी रैली की तैयारियों की समीक्षा की गयी. बीएमएस इस रैली के ज़रिये करोड़ों असंगठित मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ाने की तैयारी कर रही है जिसने पिछले साल अगस्त में इस बारे में जो वादा किया था वो अब तक पूरा नहीं किया है.

भारतीय मज़दूर संघ का मानना है कि नोटबंदी की वजह से मज़दूरों का रोज़गार छिना है, और सरकार उनकी ज़िंदगी दोबारा पटरी पर लाने के लिए पहल करे. संघ के नेता ये भी मानते हैं कि सरकार ने रोज़गार पैदा करने को लेकर जो बड़े वायदे किये थे उन्हें पूरा करने के लिए भी गंभीरता से पहल करे. बीएमएस सरकारी विनिवेश नीति के भी खिलाफ है, और कई गैर-ढांचागत सेक्टरों (नॉन-इन्फ्रास्ट्रक्चर) में विदेशी निवेशी को दी गयी मंज़ूरी के भी खिलाफ.

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सवाल कृषि क्षेत्र में बढ़ते संकट को लेकर भी उठ रहे हैं. भारतीय किसान संघ के उपाध्यक्ष प्रभाकर केलकर ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि नोटबंदी का असर अब भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है. किसान परेशान हैं क्योंकि कई इलाकों में किसानों की लागत तक नहीं निकल रही. सरकार को अपनी कृषि से जुड़ी नीतियां बदलनी होंगी.

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प्रभाकर केलकर ने एनडीटीवी से कहा कि सरकार को ये निर्धारित करना होगा कि एक तय कीमत से नीचे उनकी फसल नहीं खरीदी जा सकती है. केलकर कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने की पहल से किसानों की मुश्किलें बढ़ी हैं. सरकार को इसपर विचार करना चाहिये कि पैसे के लेन-देन की सरकारी व्यवस्था में किसानों के हाथों में कुछ केश भी रहे. अब देखना होगा कि मोदी सरकार संघ परिवार के अंदर से उठ रहे इन सवालों से आने-वाले दिनों में कैसे निपटती है.

VIDEO: संघ परिवार ने भी उठाए अर्थव्यवस्था पर सवाल

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