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This Article is From Jun 06, 2024

नीतीश कुमार: एक ऐसा नेता, जिसकी प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होती

नीतीश जब लालू और जार्ज फर्नांडीज की छाया से बाहर निकले तो उनकी काफी आलोचना हुई थी. उन पर विश्वासघात का आरोप लगाया गया था.लेकिन नीतीश के इस कदम ने उन्हें भारत की राजनीति का एक बड़ी और अपरिहार्य खिलाड़ी बना दिया.

नीतीश कुमार: एक ऐसा नेता, जिसकी प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होती
नई दिल्ली:

बीजेपी नेता अमित शाह बीते साल पांच नवंबर को बिहार के दौरे पर थे.मुजफ्फरपुर में आयोजित एक रैली में उन्होंने कहा था, ''मैं छठ मैया से प्रार्थना करता हूं कि बिहार जंगलराज से मुक्त हो और पलटू राम से मुक्त हो.'' इस तरह से उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोला था. यह लोकसभा चुनाव से पहले की बात थी. वहीं जब मंगलवार को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो वही बीजेपी पलक-पांवड़े बिछाए नीतीश कुमार का इंतजार कर रही थी.नीतीश कुमार की यह खूबी है, समय और परिस्थितियां कैसी भी हों, वो अपनी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं. 

नीतीश का राजनीतिक कौशल

यह नीतीश का कौशल ही है कि वो 2005 के बाद से कुछ समय को छोड़कर बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. बिहार की राजनीति में नीतीश की जरूरत कितनी है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि उनके बिना बीजेपी में बिहार में कभी चुनाव में उतरने की भी नहीं सोचती है. इसी वजह से 2020 में महागठबंधन के साथ जाने के बाद एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उसने नीतीश कुमार को अपने साथ मिला लिया.  

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71 साल के नीतीश कुमार जेपी आंदोलन से निकले एकमात्र नेता हैं, जो अभी भी मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर आसीन हैं. 
कभी अपने विश्वविद्यालय के लिए पूरी दुनिया में मशहूर नालंदा में जन्मे नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. लेकिन तकनीक की दुनिया के कल-पुर्जे फिट करने की जगह उन्होंने राजनीति की बिसात पर गोटियां बिठाना पसंद किया. नीतीश कुमार अक्सर बातचीत में 15 साल बनाम 15 साल की चर्चा करते रहते हैं, यानी की 15 साल की उनके सरकार के कार्यकाल की उपलब्धियां बनान लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के कार्यकाल की उपलब्धियां. नीतीश इसकी तुलना 'एलईडी बनाम लालटेन' से करते हैं. नीतीश की पार्टी के नेता और बीजेपी लालू-राबड़ी के कार्यकाल को जंगलराज की संज्ञा देते हैं, लेकिन जब गठबंधन की बात आती है तो वे लालू-राबड़ी से हाथ मिलाने में एक मिनट की देरी नहीं करते हैं. 

नीतीश का सफर

नीतीश जब लालू और जार्ज फर्नांडीज की छाया से बाहर निकले तो उनकी काफी आलोचना हुई थी. उन पर विश्वासघात का आरोप लगाया गया था. लेकिन नीतीश के इस कदम ने उन्हें भारत की राजनीति का एक बड़ी और अपरिहार्य खिलाड़ी बना दिया. यह इतना बड़ा नाम है कि बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए उनके बिना अपनी कल्पना नहीं कर सकता है, वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष नीतीश के बनाए 'इंडिया' फार्मूले को अपना लेता है. वह नीतीश के गठबंधन छोड़ देने के बाद भी उनके ही फार्मूले पर चुनाव लड़ता है और उल्लेखनीय सफलता हासिल कर लेता है. 

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नीतीश जिस कुर्मी जाति से आते हैं,उसकी आबादी बिहार में तीन फीसदी भी नहीं है. लेकिन अपनी राजनीतिक कौशल की वजह से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 18.52 फीसदी वोट हासिल किए. बिहार में मुसमान और यादवों को राष्ट्रीय जनता दल का वोट बैंक माना जाता है, जिसकी आबादी वहां क्रमश: 14.27 और 17.7 फीसदी है. इस लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने 22.14 फीसदी वोटों के साथ चार सीटें जीती हैं. इतना बड़ा वोट बैंक रखने वाली आरजेडी भी नीतीश के नेतृत्व में सरकार चलाने के लिए हमेशा तैयार रहती है.उसने नीतीश को महागठबंधन का नेता स्वीकार किया. 

जाति-धर्म से ऊपर नीतीश

देश भर में जारी धर्म और जाति की राजनीति के बीच नीतीश ने अपनी छवि विकास पुरुष के रूप में गढ़ी है. बिहार में शराबबंदी लागू करवा कर, महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण देकर, जिविका दीदी बनाकर और महिलाओं को साइकिल देकर सबसे बड़ा महिला हितैषी बताते हैं. उनके राज में स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ जाती है. यह नीतीश का कमाल ही है कि बीजेपी को अभी बिहार में कोई ऐसा नेता नहीं मिला है, जो नीतीश से बड़ा बन सके. बीजेपी को नीतीश की छाया से बाहर निकाल सके. नीतीश को ऐसे ही किंग मेकर नहीं कहा जाता है. एक बार फिर नीतीश किंगमेकर की भूमिका में उभरे हैं. 

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