हरियाणा के सोनीपत में 25 एकड़ के परिसर में स्थित ‘उदार कला शिक्षा' के केंद्र के रूप में पहचाने जाने वाले अशोक विश्वविद्यालय ने एक दशक से भी कम समय में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपनी यात्रा में कई विवादों को जन्म दिया है. हाल में यह विश्वविद्यालय सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास के इस्तीफे से चर्चा में आया. सब्यसाची के एक शोध पत्र पर राजनीतिक घमासान छिड़ गया जिसमें तर्क दिया गया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2019 के लोकसभा चुनावों में करीबी मुकाबले वाली संसदीय सीटों पर असंगत तरीके से मत हासिल किए थे, खासकर उन राज्यों में जहां वह उस समय सत्तारूढ़ पार्टी थी.
विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह कहते हुए शोध से खुद को अलग कर लिया कि संकाय, छात्रों या कर्मचारियों द्वारा उनकी ‘‘व्यक्तिगत क्षमता'' में सोशल मीडिया गतिविधि या सार्वजनिक सक्रियता उसके रुख को प्रतिबिंबित नहीं करती है. हालांकि, विश्वविद्यालय का यह रुख संकाय प्रमुख को रास नहीं आया. एक अन्य प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने दास के समर्थन में अपना इस्तीफा दे दिया है. वहीं, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, अंग्रेजी और रचनात्मक लेखन विभागों के संकाय सदस्यों ने शासी परिषद को पत्र लिखकर चेताया है कि अगर दास को सेवा में बहाल करने की पेशकश नहीं की गई तो वे संकाय से बाहर हो जाएंगे. संकाय सदस्यों ने अपनी मांगें पूरी होने तक शिक्षण कार्य बंद रखने की भी चेतावनी दी है.
सम्राट अशोक के जीवन से प्रेरणा लेते हुए अशोक विश्वविद्यालय की स्थापना 2014 में ‘‘उदार, बहु-विषयक और अंतःविषय समग्र शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी. इसका उद्देश्य अपने छात्रों को गहराई से और गंभीर रूप से सोचने, सीखने के लिए एक विविध और समावेशी स्थान प्रदान करना है ताकि वे अनुशासनात्मक सीमाओं के पार, खुद को रचनात्मक रूप से अभिव्यक्त करें. अशोक विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर कहा गया है कि यहां छात्रों को विचारों का पता लगाने, अनुसंधान से जुड़ने और शिक्षा के दौरान अपने भीतर बदलाव को महसूस करने के लिए उच्चतम मूल्यों और आदर्शों पर ध्यान केंद्रित करने को लेकर प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन इस पर विचारों के ‘‘मुक्त स्थान'' न होने के आरोप अक्सर लगाए जाते रहे हैं.
दास के इस्तीफे को लेकर विवाद नया नहीं है. राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने 2021 में यह कहते हुए विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया था कि संस्थापकों ने यह ‘‘काफी हद तक स्पष्ट'' कर दिया था कि संस्थान के साथ उनका जुड़ाव एक ‘‘राजनीतिक दायित्व'' था.
मेहता के पद छोड़ने के बाद प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और नए अशोक सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी के संस्थापक निदेशक अरुण सुब्रमण्यम ने भी इस्तीफा दे दिया. विश्वविद्यालय को लिखे अपने पत्र में उन्होंने चिंता जताई कि अशोक विश्वविद्यालय ‘‘अपने निजी दर्जे और निजी पूंजी के समर्थन के साथ अब अकादमिक अभिव्यक्ति के लिए जगह नहीं दे सकता है.
छात्रों ने मेहता और सुब्रमण्यम को वापस लाने की मांग करते हुए कक्षाओं का बहिष्कार किया, जबकि विश्वविद्यालय ने ‘‘संस्थागत प्रक्रियाओं में खामियों'' को स्वीकार किया तथा अपने संकाय से मेहता और सुब्रमण्यम के इस्तीफे से संबंधित घटनाक्रम पर ‘‘गहरा खेद'' व्यक्त किया. विश्वविद्यालय के परिसर में 2800 से अधिक छात्र हैं, जो भारत में 28 राज्यों और 287 से अधिक शहरों तथा 21 अन्य देशों से आए हैं. विश्वविद्यालय ने पिछले साल घोषणा की थी कि वह सोनीपत के राजीव गांधी एजुकेशन सिटी में मुख्य परिसर के बगल में एक समर्पित परिसर के साथ अपने विज्ञान विभाग का विस्तार कर रहा है.
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