बिहार में BPSC एग्जाम (BPSC Exam Clash) पर बवाल लगातार जारी है. छात्र दोबारा परीक्षा कराए जाने की मांग पर अड़े हैं. इस बीच जन सुराज पार्टी के अध्यक्ष प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) भी छात्रों का समर्थन कर रहे हैं. इसे लेकर वह बीजेपी के निशाने पर हैं. अब NDTV से खास बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा है कि वह छात्रों के सहयोग के लिए उनसे मिलने गए थे. इसमें उन्होंने क्या गुनाह कर दिया. पीके ने कहा कि पटना के जिस गांधी मैदान में पुस्तक मेला लगा है और प्रदर्शनी लगी है, अगर वहां पर 5 हजार छात्र एक कोने में बैठकर बात कर रहे हैं तो इसके लिए कौन सी परमिशन की जरूरत है.
पटना के बवाल की कहानी...प्रशांत किशोर की जुबानी #NDTVExclusive | @BabaManoranjan pic.twitter.com/AwnCP83KHi
— NDTV India (@ndtvindia) December 31, 2024
आप बिहार में छात्रों के आंदोलन में क्यों कूदे?
पीके ने कहा कि मैं किसी प्रदर्शन में शामिल नहीं होता हूं. पहले 10 दिन तक छात्रों के प्रदर्शन में शामिल नहीं था. मेरा मानना था कि सरकार और छात्रों का मामला है, उसी स्तर पर बात होनी चाहिए. हम इसलिए शामिल हुए क्योंकि 5 दिन पहले प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस ने दौड़ाकर मारा. गरीब घर से आने वाले एक बच्चे सोनू यादव ने आत्महत्या भी कर ली. इसके बाद मुझे लगा कि हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए. धरने पर बैठे छात्रों पर गलत एफआईआर नहीं होनी चाहिए.
क्या आंदोलन कर रहे छात्रों ने आपको बुलाया था?
मुझे छात्र सब जगह बुलाते ही रहे हैं. मैंने छात्रों से कहा कि पूरी ताकत से मैं आपके साथ खड़ा हूं. शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन करने पर मैं आपके साथ खड़ा रहूंगा. इसके बाद छात्रों ने मिलकर छात्र संसद का आयोजन किया. इसमें हमने और बाकी छात्रों ने तय किया कि इस आंदोलन का नेतृत्व कोई कोचिंग सेंटर का मालिक या फिर नेता तय नहीं करेगा, आंदोलनरत छात्र अपने बीच से ही कमिटी बनाएंगे. छात्रों ने कमिटी बनाई और वही कमिटी सरकार से मिली है.
आपने छात्र संसद बुलाई थी उसकी इजाजत तो मिली नहीं थी?
गांधी मैदान में छात्रों के विरोध प्रदर्शन पर प्रशांत किशोर ने कहा कि अगर पांच हजार बच्चों को मिलना है, तो वह कहां मिलेंगे. किस बच्चे के पास इतनी खुली जगह है कि जहां पांच हजार बच्चे मिल सकते हैं. गांधी मैदान सार्वजनिक जगह है. वहां पर हजारों लोग रोज टहलने आते हैं. अगर उतने बड़े गांधी मैदान के एक कोने में पांच हजार छात्र मिलकर बात कर रहे हैं, तो उसके लिए किस परमिशन की जरूरत है और क्यों परमिशन की जरूरत होनी चाहिए. गांधी मैदान किसी के पिताजी का तो है नहीं. बिहार के लोगों का है. बिहार के उन लोगों का है जो शांतिपूर्वक प्रदर्शन करना चाहते हैं. छात्र वहां गांधी मूर्ति के नीचे छह घंटे बैठे.
आपने छात्रों को भड़काया और खुद वहां से चले गए?
किसी ने कोई उपद्रव नहीं किया और कोई पत्थरबाजी नहीं हुई और कोई झगड़ा भी नहीं हुआ. क्यों कि मैं खुद वहां सबसे आगे खड़ा था. छात्रों ने पहले ही ये डिसाइड किया था कि जहां भी रोका जाएगा हम रुक जाएंगे. और हुआ भी यही कि पुलिस ने जहां भी रोका सभी रुक गए. गांधी मैदान से चलकर 1 किलो मीटर आगे पहुंचे तो पुलिस ने रोक दिया. इस दौरान सभी छात्र शांतिपूर्वक रुक गए. वहां हम सभी 2 घंटे तक खड़े रहे. फिर मुख्यसचिव ने बात कर रहे लोगों से कहा कि सभी छात्रों में से 5 लोग आकर उनसे बात कर सकते हैं. मैने खुद इस बात की घोषणा की कि जो भी छात्र घर जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं जो लोग गांधी मैदान में बैठना चाहते हैं वह वहां जा सकते हैं.भीड़ में जो लोग मेरी बात सुन पाए वो मेरे पास वापस गांधी मैदान चलने लगे. वहां पर सिर्फ 2 से ढाई हजार छात्र बच गए थे. वे लोग आधे घंटे बैठे रहे. ट्रैफक चल रहा था कोई दिक्कत नहीं थी. जब मैं वहां से चला आया उसके बाद पुलिस ने निहत्थे छात्रों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा. हम लोग कहीं भागे नहीं थे गांधी मैदान में जाकर बैठ गए थे.
कंबल बोल वाले वीडियो पर प्रशांत किशोर की सफाई
13 दिन से छात्र वहां पर बैठे हुए थे. नाले के किनारे छोटा सा टैंट था, जहां पर बहुत मच्छर थे. उस दिन ये हुआ कि जब सारे छात्र संसद के लिए चले गए तो गांधी मैदान में जहां पर बच्चे धरना दे रहे थे, तब तक किराए पर कंबल लिए गए थे ताकि बच्चे ठंड में उसका इस्तेमाल कर सकें. बच्चों के पास इतना पैसा नहीं था तो उन्होंने किराए का कंबल वापस कर दिया था.जब गांधी मैदान में लाठीचार्ज के बाद बच्चों ने संकल्प लिया कि वह रात में फिर बैठेंगे क्यों कि धरना चलता रहना चाहिए. इस दौरान हमको खबर मिली कि रात का ढाई बज गया है और उनके पास ठंड में कंबल नहीं है तो थोड़ी मदद करा दे. तब मैं ढाई बजे ये देखने के लिए वहां गया कि बच्चों के लिए कंबल की व्यवस्था हो.
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