नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) पर देश में विभिन्न जगहों पर हो रहे प्रदर्शनों में जहां वसीम बरेलवी (Wasim Barelvi) के शेर की इस पंक्ति को नारे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है कि ‘‘उसूलो पर जहां आंच आये, टकराना जरूरी है'', वहीं खुद मशहूर शायर का इस मौजूदा घटनाक्रम पर मानना है कि हमें ‘‘अपने बच्चों के लिए ऐसे ख्वाब देखने हैं जहां कांटे कम और गुलाब की गुंजाइश ज्यादा हो''. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) विधानपरिषद में गुरुवार को समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सदस्य नागरिकता संशोधन कानून पर हंगामा कर रहे थे वहीं इसी सदन के सदस्य वसीम बरेलवी खामोश कर बैठे सदन को निहार रहे थे.
देश में सीएए को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन पर बरेलवी ने कहा कि आजकल मीडिया हिन्दू मुस्लिम कर रहा है जबकि यह वास्तविक विषय नही है. उन्होंने कहा,‘‘हमें हिन्दुस्तान के बच्चों के लिये ऐसे ख्वाब देखना है जहां कांटे कम हों, गुलाब की गुंजाइश ज्यादा हो. जहां हम उनके लिये ऐसा रास्ता तैयार कर सकें कि अगली नस्ल चैन से रह सके.''
उन्होंने कहा,''हिन्दुस्तान सदियों से है, यह दो दिन का नहीं है . यह है तो सबके लिये है. यह जिद हमारी है. इस एक बात पर दुनिया से जंग जारी है'' बरेलवी नागरिकता संशोधन कानून पर सीधे कुछ भी बोलने से बच रहे थे. लेकिन उन्होंने यह अवश्य कहा कि आज हर विश्वविद्यालय, शिक्षण संस्थान में उनके इस शेर के नारे लगाये जा रहे है कि '' उसूलो पर जहां आंच आये टकराना जरूरी है, जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है .''
प्रदर्शनकारियों के बारे में उनका मानना है कि ''यह लोग औरों के दुख जीने निकल आये है सड़कों पर, अगर अपना ही गम होता तो यूं धरने नहीं देते .'' उन्होंने कहा कि ''मैं सदियों के बाद के हिंदुस्तान का ख्वाब देख रहा हूं मेरी शायरी अपना काम कर रही है,मेरी शायरी वक्त को आईना दिखायेगी, वक्त को दिशा देगी. मुझे ऐसे हिन्दुस्तान का ख्वाब देखना है जिसमें इन बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सकें. उसके लिये मुझे वहीं रहना जरूरी है जहां मेरी कलम चल रही है.
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