बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दल आज 2024 लोकसभा चुनाव साथ लड़ने की रणनीति बनाने के लिए जुटे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में ये बैठक हो रही है. इसमें शामिल होने के लिए कई दलों के नेता गुरुवार को ही पटना पहुंचे, जबकि कुछ नेता आज पहुंचे हैं. बैठक में देश भर के ज़्यादातर बीजेपी विरोधी दल के नेता शामिल हो रहे हैं. हालांकि इसको साकार करना इतना आसान नहीं था. इन नेताओं को एकजुट करने में नीतीश कुमार एक शिल्पकार की तौर पर नजर आए हैं.
मीटिंग में आने वाले नेता:
- मल्लिकार्जुन खरगे (कांग्रेस अध्यक्ष)
- राहुल गांधी (पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष)
- नीतीश कुमार (JDU नेता, CM बिहार)
- ममता बनर्जी (TMC अध्यक्ष)
- तेजस्वी यादव (RJD नेता, डिप्टी CM बिहार)
- हेमंत सोरेन (JMM नेता, CM झारखंड)
- शरद पवार/सुप्रिया सुले (NCP नेता)
- उद्धव ठाकरे/आदित्य ठाकरे (शिवसेना नेता)
- एम के स्टालिन (DMK अध्यक्ष, CM तमिलनाडु)
- अरविंद केजरीवाल (AAP संयोजक, CM दिल्ली)
- अखिलेश यादव (SP अध्यक्ष)
- सीताराम येचुरी (CPM)
- डी राजा (CPI)
- दीपांकर भट्टाचार्य (CPIML)
- फ़ारूख़ अब्दुल्ला (NC)
- महबूबा मुफ़्ती (PDP)
हालांकि इन नेताओं को एक साथ एक मंच पर लाना काफी मुश्किल था. क्योंकि इसमें कई दल ऐसे भी हैं, जो सीधे तौर पर कांग्रेस से बात नहीं करना चाहते थे. नीतीश कुमार ने पहले कांग्रेस से बात की और उनको आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी योजना बताई. कांग्रेस ये फिर ऐसे नेताओं को एक मंच पर लाने की जिम्मेदारी नीतीश कुमार को दी. सभी इस बात पर सहमत हुए की खुद की महत्वाकांक्षा को भूलकर अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए एक साझा रणनीति बनाएंगे और उसी एजेंडे के मुताबिक जनता के सामने जाएंगे.
2024 के लिए फॉर्मूला
2024 में बीजेपी को टक्कर देने के लिए नीतीश कुमार की अगुवाई में रणनीति बनाई गई है. इसके तहत उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड की 134 सीटों पर खास फ़ोकस करना है. इन सीटों पर पिछली बार बीजेपी को 115 सीटें मिली थी. वहीं ये भी कहा जा रहा है कि इस बार 1996 और 2004 की तरह व्यक्ति नहीं बल्कि मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाए. वहीं ये भी साफ कर दिया गया है कि कांग्रेस के बिना कोई मोर्चा संभव नहीं है. हालांकि जहां कांग्रेस कमज़ोर है, वहां क्षेत्रीय दलों को आगे करना है.
लोकसभा चुनाव के लिए चुनौतियां
विपक्ष की उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी चुनौती है. यहां विपक्ष पूरी तरह से बंटा हुआ है. कई दल ग़ैर कांग्रेस-ग़ैर बीजेपी के पक्षधर हैं. ऐसे में क्या क्षेत्रीय दल अपनी दावेदारी छोड़ेंगे? या किस फ़ॉर्मूले के तहत सीटों का बंटवारा होगा.
जेपी ने पटना से ही विपक्ष को किया था एकजुट
विपक्षी एकता दिखाने के लिए ऐतिहासिक पटना की भूमि को चुना गया है. ये चाणक्य के साथ जेपी की भी कर्मभूमि है. इमरजेंसी के ख़िलाफ़ आंदोलन की शुरुआत यहीं से हुई थी. लालू यादव और नीतीश कुमार इसी आंदोलन की देन हैं. जेपी ने 1977 में विपक्ष को एकजुट किया था.
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विपक्षी एकता के 'प्लेयर' नीतीश
नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट करने के लिए ममता बनर्जी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, सीताराम येचुरी, डी राजा, फ़ारूख़ अब्दुल्ला, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, ओमप्रकाश चौटाला, नवीन पटनायक और चंद्रशेखर राव से मुलाक़ात की.
नीतीश को क्यों बनना चाहिए संयोजक?
नीतीश कुमार ने खुद कई बार कहा है कि वो ख़ुद पीएम पद की रेस में नहीं है. उनके खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा दूसरी पार्टियों के पास नहीं है. नीतीश कुमार का राजनैतिक अनुभव भी कई दशकों का है. कई पार्टियों में उनके दोस्त हैं. वो गठबंधन की भी राजनीति समझते हैं. साथ ही वो अपने राजनैतिक कदम से सभी को चकित कर देते हैं.
हालांकि विपक्षी एकता तभी और कारगर होगी, जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, दो राज्यों में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी और पश्चिम बंगाल में टीएमसी इसके समर्थन में आगे भी एकजुट रहें.
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