संसद भवन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
लोकपाल बिल पर संसद की 31 सदस्यीय समिति ने सोमवार को दोनों सदनों में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई की भ्रष्टाचार-निरोधक शाखा का लोकपाल में एकीकरण करने की सिफारिश की है।
सरकारी खजाने पर बोझ कम होने का तर्क
कांग्रेस के सांसद और संसदीय समिति के अध्यक्ष ईएमएस नचियप्पन ने रिपोर्ट में कहा है कि इस एकीकरण से सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ कम होगा और भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक मजबूत संस्था खड़ी हो पाएगी। समिति ने कहा है कि लोकपाल, सीवीसी और सीबीआई के कार्यक्षेत्र स्पष्ट रूप से परिभाषित होने चाहिए ताकि ओवरलैपिंग न हो। समिति के मुताबिक लोकपाल जांच, तहकीकात और अभियोजन के लिए इन संस्थाओं के तंत्र का इस्तेमाल करें।
लोकपाल के चयन मंडल में सबसे बड़ी पार्टी का नेता
रिपोर्ट के मुताबिक लोकपाल के लिए अलग से मुख्यालय की जरूरत नहीं है और केंद्रीय सतर्कता आयोग को ही लोकपाल का मुख्यालय बनाया जा सकता है। साथ ही संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में लोकपाल के चयन मंडल में 'विपक्ष के नेता' के स्थान पर 'सबसे बड़ी पार्टी के नेता' शब्द का प्रयोग किया है। यानी समिति ने अनुशंसा की है कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता लोकपाल की नियुक्ति करने वाले चयन मंडल का सदस्य हो सकता है। अगर मोदी सरकार समिति की इन सिफारिशों को बिल में शामिल करती है तो इसका अर्थ यह होगा कि लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे प्रधानमंत्री के साथ लोकपाल और उसके सदस्यों को चुनने वाले समूह में शामिल हो सकते हैं।
डिजिटल निगरानी की सिफारिश
नचियप्पन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकारी कर्मचारियों और राजनेताओं की परिसंपत्तियों और देयताओं (assets and liabilities) का सार्वजनिक खुलासा जरूरी बनाने वाले किसी प्रावधान की कोई जरूरत नहीं है। समिति ने कहा है कि सरकारी अधिकारियों की संपत्ति में आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा धन जमा होने की डिजिटल निगरानी की सुदृढ़ व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।
सरकारी खजाने पर बोझ कम होने का तर्क
कांग्रेस के सांसद और संसदीय समिति के अध्यक्ष ईएमएस नचियप्पन ने रिपोर्ट में कहा है कि इस एकीकरण से सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ कम होगा और भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक मजबूत संस्था खड़ी हो पाएगी। समिति ने कहा है कि लोकपाल, सीवीसी और सीबीआई के कार्यक्षेत्र स्पष्ट रूप से परिभाषित होने चाहिए ताकि ओवरलैपिंग न हो। समिति के मुताबिक लोकपाल जांच, तहकीकात और अभियोजन के लिए इन संस्थाओं के तंत्र का इस्तेमाल करें।
लोकपाल के चयन मंडल में सबसे बड़ी पार्टी का नेता
रिपोर्ट के मुताबिक लोकपाल के लिए अलग से मुख्यालय की जरूरत नहीं है और केंद्रीय सतर्कता आयोग को ही लोकपाल का मुख्यालय बनाया जा सकता है। साथ ही संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में लोकपाल के चयन मंडल में 'विपक्ष के नेता' के स्थान पर 'सबसे बड़ी पार्टी के नेता' शब्द का प्रयोग किया है। यानी समिति ने अनुशंसा की है कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता लोकपाल की नियुक्ति करने वाले चयन मंडल का सदस्य हो सकता है। अगर मोदी सरकार समिति की इन सिफारिशों को बिल में शामिल करती है तो इसका अर्थ यह होगा कि लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे प्रधानमंत्री के साथ लोकपाल और उसके सदस्यों को चुनने वाले समूह में शामिल हो सकते हैं।
डिजिटल निगरानी की सिफारिश
नचियप्पन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकारी कर्मचारियों और राजनेताओं की परिसंपत्तियों और देयताओं (assets and liabilities) का सार्वजनिक खुलासा जरूरी बनाने वाले किसी प्रावधान की कोई जरूरत नहीं है। समिति ने कहा है कि सरकारी अधिकारियों की संपत्ति में आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा धन जमा होने की डिजिटल निगरानी की सुदृढ़ व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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