समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी है. भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच द्वारा मामले की सुनवाई की जा रही है. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में राज्यों को भी पार्टी बनाया जाए.
ये संसद के क्षेत्राधिकार का मामला : केंद्र
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस केस में हमारी प्रारंभिक आपत्ति है. ये संसद के क्षेत्राधिकार का मामला है. सुप्रीम कोर्ट से तुषार मेहता ने कहा कि सवाल ये है कि क्या अदालत खुद इस मामले पर फैसला कर सकती है ? ये याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं. केंद्र को पहले सुना जाना चाहिए क्योंकि वह अदालत के समक्ष 20 याचिकाओं के सुनवाई योग्य होने का विरोध कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर सकता. संसद उपयुक्त मंच है. ये नीतिगत मामले हैं. बड़ी संख्या में हितधारकों से परामर्श करने की आवश्यकता है. ये सवाल है कि कौन सा मंच इस मामले में विचार कर सकता है. यह एक संवेदनशील मुद्दा है. सीजेआई ने कहा कि व्यापक दृष्टिकोण रखने के लिए हम पर भरोसा करें. हम बाद में आपको सुनेंगे. लेकिन हमें केस को शुरू करना होगा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि फिलहाल इस मामले में गुण- दोस पर ना जाएं. केंद्र को कुछ समय चाहिए. वहीं सीजेआई ने कहा कि हमें ये ना बताया जाए कि सुनवाई कैसे करनी है. हम कोर्ट के इंचार्ज हैं. आप जो मांग रहे हैं वो सिर्फ सुनवाई टालना ही है. याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये मौलिक अधिकारों का मामला है. सरकार हर मामले में ही ये कहती है. अदालत को सुनवाई के लिए बढ़ना चाहिए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आने वाली पीढ़ियां ये ना कहें कि हमने इस मुद्दे को अदालत के ध्यान में नहीं दिलाया. हर राज्य में शादी को लेकर अलग नियम हैं. राज्य के विचार को ध्यान में रखा जाना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल केंद्र का अनुरोध ठुकरा दिया है और केंद्र की पहले मामले के सुनवाई योग्य होने पर सुनवाई की मांग नहीं मानी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र की बात बाद में सुनेंगे.
याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी ने दी ये दलीलें
याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी ने अपनी दलील 377 को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने के मुद्दे से शुरू की. गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार, निजता का सम्मान और अपनी इच्छा से जीवन जीने की दलीलें दीं. घरेलू हिंसा और परिवार और विरासत को लेकर भी कोर्ट की गाइड लाइन स्पष्ट है. हमें ये घोषणा कर देनी चाहिए ताकि समाज और सरकार इस तरह के विवाह को मान्यता दें.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा - सरकार और समाज की मान्यता के बाद भी कई कानूनी सवालों के जवाब नहीं मिल रहे, क्योंकि वो व्यवहारिक सवाल है. रोहतगी ने कहा कि विवाह के बहुत से प्रकार हैं, लेकिन समय-समय पर इसमें सुधारात्मक बदलाव भी हुए हैं. बहु विवाह, अस्थाई विवाह जैसी चीजें अब इतिहास का हिस्सा हैं. 1905 में हिंदू विवाह अधिनियम आया. इन कानूनी और संवैधानिक बदलावों में आईपीसी की धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर निकलने के दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी हैं.
रोहतगी ने कहा कि इसमें आ रही कानूनी अड़चनों के मद्देनजर कानून में पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी यानी स्पाउस शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद-14 के मुताबिक समानता के अधिकार की भी रक्षा होती रहेगी.
याचिकाकर्ता की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने हमेशा अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक जोड़ों के अधिकार की रक्षा की है. समलैंगिक विवाह की गैर-मान्यता भेदभाव के बराबर थी, जो LGBTQIA+ जोड़ों की गरिमा और आत्म-पूर्ति की जड़ पर आघात करती थी.- LGBTQ+ नागरिक देश की जनसंख्या का 7 से 8% हिस्सा हैं.
रोहतगी ने बड़े पैमाने पर नवतेज जौहर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था और पुट्टास्वामी का फैसला, जिसमें निजता के अधिकार और पसंद और चयन के अधिकार पर जोर दिया गया था. विशेष विवाह अधिनियम भारत के संविधान के अधिकार से बाहर है, यह समान लिंग वाले जोड़ों और विपरीत लिंग के जोड़ों के बीच भेदभाव करता है. समान-लिंग वाले जोड़ों को दोनों कानूनी अधिकारों से वंचित करता है जैसे संपत्ति को गोद लेने और विरासत में लेने के साथ-साथ सामाजिक मान्यता और स्थिति जो विवाह से प्रवाहित होती है. यह अदालत शफीन जहां के मामले में अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के मौलिक अधिकार के मुद्दे पर पहले ही फैसला दे चुकी है. पसंद का अधिकार, चुनने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है.
समलैंगिक संबंधों को समाज ने स्वीकार किया है : CJI
CJI ने कहा कि हमारे समाज ने समलैंगिक संबंधों को स्वीकार किया है. पिछले पांच सालों में चीजें बदली हैं. एक स्वीकृति है, जो शामिल है. हम इसके प्रति सचेत हैं . नवतेज ( समलौंगिकता को अपराध से बाहर )के समय और अब हमारे समाज को अधिक स्वीकृति मिली है. इसे हमारे विश्वविद्यालयों में स्वीकृति मिली है.
हमारे विश्वविद्यालयों में केवल शहरी बच्चे ही नहीं हैं, वे सभी क्षेत्रों से हैं. CJI ने ये टिप्पणी केंद्र के हलफनामे में " शहरी इलीट " पर की है
CJI ने कहा कि हमें वृद्धिशील तरीके से अपनी व्याख्यात्मक शक्ति का प्रयोग करना होगा और कानून विकसित हो रहे हैं, इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि अदालत इसे व्याख्या के तरीके से करे और हम वर्तमान के लिए एक कैनवास को कवर कर सकते हैं. अपने आप को सीमित रखें और फिर संसद को समाज के विकास का जवाब देने की अनुमति दें. हम इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते कि संसद वास्तव में यहां प्रासंगिक है. इसमें विधायी प्रक्रिया भी शामिल है. साथ ही नवतेज जौहर के बाद कुछ स्वीकार्यता विकसित हो रही है. कुछ समय के लिए हम पर्सनल लॉ में बिल्कुल भी कदम नहीं उठा सकते और इसे एक लिंग तटस्थ व्याख्या देकर विशेष विवाह अधिनियम तक सीमित कर सकते हैं. इस विकसित हो रही आम सहमति में अदालत संवाद की भूमिका निभा रही है और हम अपनी सीमाओं के बारे में जानते हैं.
जस्टिस कौल ने कहा कि रोहतगी का कहना है कि विशेष विवाह अधिनियम का दर्जा ही उन्हें शादी करने का अधिकार देगा और यदि अन्य सभी मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है या देखने की जरूरत नहीं है. जैसा कि CJI कहते हैं कि कभी-कभी समाज में वृद्धिशील परिवर्तन एक बेहतर तरीका होता है. इन्हें संबोधित करने के लिए हमेशा एक बेहतर समय होता है. हर चीज का एक समय होता है. कैसे हम फिलहाल पर्सनल लॉ में कदम नहीं रख सकते हैं और कैसे समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह अधिनियम में पिरोया जा सकता है.
इस मामले में राज्यों को भी सुना जाए : केंद्र की ओर से तुषार मेहता
केंद्र की ओर से तुषार मेहता ने कहा कि हमने मामले में सवालों को घुमा दिया है. यहां सवाल ये है कि क्या सेम सेक्स शादी को मान्यता दी जा सकती है. इसे लेकर कोई भी कानून नहीं है. हम इस मामले में मेरिट पर नहीं हैं. यहां कहा गया है कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है, लेकिन कहीं भी ट्रांसजेंडर या LGBTQ+ के साथ भेदभाव नहीं हो रहा है. उनके दाखिलों या रोजगार में या किराए पर लेने या आने- जाने में अगर भेदभाव है तो ये अपराध है. कोई भी बदलाव संहिताबद्ध पर्सनल लॉ को प्रभावित करेगा. हिंदू पर्सनल लॉ संहिताबद्ध है, मुस्लिम कानून संहिताबद्ध है. वो बात नहीं है. कल कोई आ सकता है और कह सकता है कि मैं एक हिंदू हूं, मैं HMA के तहत शादी करना चाहता हूं. आपने मुझे शादी का अधिकार क्यों नहीं दिया. हिंदू होंगे, मुसलमान होंगे, सभी प्रभावित होंगे, इसलिए केंद्र सरकार कहती है कि राज्यों को सुना जाना चाहिए.
जस्टिस कौल- हमने कहा है कि हम पर्सनल लॉ को नहीं छू रहे हैं, आप कह रहे हैं कि कृपया पर्सनल लॉ को छूएं. हम कह रहे हैं कि हम पर्सनल लॉ में नहीं जाएंगे. हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या हम को SMA में SPOUSE पढ़ सकते हैं. SG - अगर मिस्टर ए हिंदू हैं और वह हिंदू बने रहना चाहते हैं और HMA के तहत शादी करना चाहते हैं तो क्या? संसद को इसे सुनने दें
तुषार मेहता ने कहा कि इससे हिंदू और मुस्लिम प्रभावित होंगे. उनके विवाह कानून हैं, - इसलिए कई समुदायों, धार्मिक संप्रदायों से परामर्श करना होगा और पर्सनल लॉ की जांच करनी होगी. SC को इसे नहीं सुनना चाहिए. इस पर संसद को फैसला करने दें. हम पर्सनल लॉ की जांच नहीं कर रहे हैं. हम केवल यह जांच करेंगे कि क्या सेम सेक्स विवाह को व्याख्याओं के माध्यम से विशेष विवाह अधिनियम में शामिल किया जा सकता है. तुषार मेहता ने कहा कि ये मामला हिंदू मैरिज या मुस्लिम मैरिज का नहीं है. ये मामला शादी के कानून का है, इसलिए पहले केंद्र की प्रारंभिक आपत्ति को सुना जाए.
हम अपने जाने के बाद आने वाली पीढ़ियों को नहीं बांध सकते : CJI
CJI - हम अपने जाने के बाद आने वाली पीढ़ियों को नहीं बांध सकते . जहां तक प्रारंभिक आपत्तियों पर पहले विचार करने और राज्यों को नोटिस जारी करने की दलील है , हम लंच ब्रेक के दौरान इस पर विचार करेंगे.
अगर सेम सेक्स शादी टूट गई तो क्या होगा : कपिल सिब्बल
विरोध करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर सेम सेक्स शादी टूट गई तो क्या होगा, जिस बच्चे को गोद लिया है उसका क्या होगा, पिता कौन होगा, आपराधिक कानूनों का क्या होगा. जमीयत उलेमा ए हिंद के लिए सिब्बल ने कहा कि इसका समाज पर बहुत गहरा असर होगा. ये बहुत खतरनाक होगा.इससे समुदाय हर्ट होगा. अगर अदालत पर्सनल लॉ को नहीं छू रही है तो मैं बाहर हो सकता हूं. कोर्ट ने सिब्बल को कहा कि वो सहायता करें.
मुकुल रोहतगी ने कहा कि शादी करना हमारा मौलिक अधिकार है, जैसे विषमलिंगी लोगों का है. साथ ही इस शादी को मान्यता का भी अधिकार होना चाहिए. मुकुल रोहतगी ने कहा कि मैं यह स्थापित करना चाहता हूं कि हमारे पास शादी करने का मौलिक अधिकार है. संविधान नागरिकों के दो वर्ग नहीं बनाता है. अदालती आदेशों के बावजूद अपराधीकरण को हटाने के बावजूद ये कलंक जारी है. यह कलंक राज्य की दलील के साथ जारी है कि आप समान कैसे हैं. हम 1950 में समान हो गए थे. संविधान की प्रस्तावना को देखें. यह कहती है कि हम भारत के नागरिक हैं. प्रस्तावना हमें समानता प्रदान करती है. इसमें कहा गया है कि हम भारत के लोग संविधान को अपनाते हैं. अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19, 21 देखें, - धर्मनिरपेक्ष, बहुलवादी, स्थिति और अवसरों की समानता. उन सभी के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए. स्वतंत्रता समानता से बंधुत्व को बढ़ावा मिलेगा. भाईचारा होगा. व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित हो. गरिमा निजता की सहायक है. प्रस्तावना कहती है कि न्याय. समानता और स्वतंत्रता व्यक्तियों की भाईचारे और गरिमा और एकता को बढ़ावा देगी.
CJI- हम में से प्रत्येक के लिए न्याय, हम में से प्रत्येक के लिए स्वतंत्रता, हम में से प्रत्येक के लिए समानता और हमारे बीच भाईचारा. यही ही प्रस्तावना कहती है. जस्टिस नरसिम्हा ने कहा- एक महत्वपूर्ण वाक्यांश "हम में से प्रत्येक के लिए" है जो व्यक्तियों को राष्ट्र से जोड़ता है. समलैंगिक विवाह को शहरी इलीट विचार बताने की सरकार की दलील काटते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि भगवान अय्यप्पा के जन्म की कथा तो काफ़ी प्राचीन है. वो भी भगवान शिव और विष्णु की संतान माने जाते हैं. भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो उस समय भगवान अय्यप्पा का जन्म हुआ. सॉलिसिटर जनरल सरकार का जो पक्ष रख रहे हैं उसमे सिर्फ ट्रांसजेंडर का जिक्र है. ये तो LGBTQ में सिर्फ एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.
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