
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने राज्यसभा में गुरुवार को अमेरिका के साथ 'टैरिफ वॉर' छिड़ने की स्थिति में भारत का निर्यात घटने और महंगाई बढ़ने तथा दुनिया में व्यापार युद्ध शुरू होने की आशंका के प्रति आगाह किया है. इसके साथ ही चिदंबरम ने सरकार से जानना चाहा कि इस स्थिति को टालने के लिए उसका क्या रुख है और उसने अपने पत्ते अभी तक क्यों नहीं खोले हैं?
उच्च सदन में वित्त विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए चिदंबरम ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान का उल्लेख किया कि वह दो अप्रैल को 'टैरिफ वॉर (शुल्क युद्ध)' शुरू करेंगे. कांग्रेस नेता ने कहा कि इस बात से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अवगत हैं और उन्होंने जब ट्रंप के समक्ष इसका विरोध किया तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस पर ध्यान नहीं देते हुए कहा कि वह भारत में टैरिफ वॉर शुरू करेंगे.
उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने बजट में कुछ शुल्क घटाने की घोषणा की है, लेकिन निश्चित तौर पर ट्रंप इससे संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों की खबरों से पता चला है कि कुछ और शुल्क कटौती पर विचार चल रहा है. उन्होंने कहा कि एक पॉड कॉस्ट में प्रधानमंत्री ने ट्रंप की खूब तारीफ की.

उन्होंने सरकार से सवाल किया कि यदि 'चापलूसी और शुल्कों में कटौती' के बावजूद दो अप्रैल को भारतीय निर्यात पर जवाबी शुल्क थोपे जाते हैं तो उसका क्या रुख रहेगा? उन्होंने कहा कि शुल्क युद्ध विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन होगा और यह विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगा.
चिदंबरम ने कहा कि इस शुल्क युद्ध से विश्व में व्यापार युद्ध छिड़ जाएगा. उन्होंने सरकार को आगाह करते हुए कहा कि यदि शुल्क युद्ध और व्यापार युद्ध छिड़ गया तो यह निर्यात कम करेगा, महंगाई बढ़ेगी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) घटेगा तथा मुद्रा में अवमूल्य होगा.
उन्होंने सरकार को सलाह दी कि वह ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे समझदारी भरी बात कर रहे देशों का साथ देकर व्यापार युद्ध रोकने का प्रयास करें.
उन्होंने कहा कि आज देश के सामने बड़ी चुनौतियां बढ़ती बेरोजगारी, खाद्य सामान, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में महंगाई, गिरती खपत, आय न बढ़ना, मुद्रा का मूल्य कम होना, घरेलू सामान से संबंधित बढ़ता कर्ज आदि हैं.
पूर्व वित्त मंत्री ने दावा किया सरकार ने वर्तमान वर्ष में स्वास्थ्य शिक्षा, सामाजिक कल्याण, कृषि, ग्रामीण एवं शहरी विकास, दोपहर के भोजन की योजना, जल जीवन मिशन, अनुसूचित जाति एवं जनजाति छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति में ‘निर्ममतापूर्वक' बजटीय व्यय में कटौती की है. उन्होंने कहा कि इनके आंकड़ों को गलत नहीं साबित किया जा सकता, क्योंकि वे बजट दस्तावेज में प्रकाशित हैं.

उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री अपने भाषण में कह चुकी हैं कि उनका यह प्रयास रहा है कि प्रत्येक वर्ष राजकोषीय घाटे के मामले में सरकार द्वारा लिये गये ऋण में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में कमी आये. उन्होंने कहा कि वह सरकार की इस मंशा की सराहना करते हैं.
उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटे के मामले में स्थिति वहीं पहुंच गयी जहां से यह शुरू हुई थी और इसके लिए सरकार कोविड महामारी को जिम्मेदार बताती है. उन्होंने कहा कि हर सरकार के समक्ष ऐसी कुछ न कुछ स्थिति आती है. उन्होंने पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय आये एशियाई आर्थिक संकट सहित विभिन्न संकट का उल्लेख किया.
उन्होंने कहा कि वह राजकोषीय घाटे के मामले में सरकार को ‘फेल (अनुत्तीर्ण)' तो नहीं कहेंगे लेकिन ‘लो पास (कम अंकों से उत्तीर्ण होना)' अवश्य कहना चाहेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार का जीडीपी के अनुपात में सरकारी कर्ज का बोझ कम होने का दावा ठीक नहीं है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि जब तक जीडीपी की तुलना में सकल कर राजस्व 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा, राजकोषीय नीति का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा कि पिछले दस साल में जीडीपी की तुलना में सकल कर राजस्व 11.15 प्रतिशत से 11.64 प्रतिशत के बीच अटका हुआ है. उन्होंने कहा कि आयकर कानून में संशोधन, कर वसूली के उपाय बढ़ाने सहित सरकार द्वारा किए गये विभिन्न उपायों के बावजूद यह वहीं अटका हुआ है.
उन्होंने कहा कि बिना राजस्व के आपकी कोई राजकोषीय नीति नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि राजकोषीय नीति दस्तावेज में कोई राजकोषीय रणनीति दिखाई नहीं देती है. चिदंबरम ने सरकार पर आरोप लगाया कि उसने अपने 10 साल के शासन में संरक्षणवादी रवैया अपनाया है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं