नई दिल्ली:
आप सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया है कि यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाये तो राजधानी की जेलों से 1400 से अधिक विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ आवश्यकता पड़ने पर ही गिरफ्तारियां की जा सकती हैं।
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ को यह भी बताया गया कि निचली अदालत और पुलिस, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन कर रही हैं जिसकी वजह से संबंधित प्राधिकारियों के खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
दिल्ली सरकार के वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाये तो पुलिस को जब तक जरूरत नहीं हो जब तक व्यक्तियों को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए और अदालतों को यंत्रवत तरीके से हिरासत में लेने के लिये प्राधिकारियों को अधिकृत नहीं करना चाहिए। इससे कम से कम 1460 विचाराधीन कैदी लाभान्वित होंगे जो तत्काल ही जेल से बाहर आ सकते हैं।
उन्होंने दिल्ली सरकार द्वारा पेश स्थिति रिपोर्ट का हवाला देते हुये कहा कि 1460 पुरुष विचाराधीन कैदी उन अपराधों के आरोप में दिल्ली की जेलों में बंद हैं जिसके लिये सात साल से कम अवधि की सजा हो सकती है। उन्होंने कहा कि पुलिस और निचली अदालतें शीर्ष अदालत के निर्देश का उल्लंघन कर इन कैदियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिये जिम्मेदार हैं और इसके लिये उन पर अवमानना कार्यवाही की जा सकती है।
मेहरा ने अदालत से अनुरोध किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 के तहत कुछ निर्देश दिया जा सकता है।
दिल्ली सरकार ने अदालत के सवाल के संदर्भ मे यह तथ्य पेश किये। दिल्ली की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों से संबंधित मसलों पर सुनवाई के दौरान अदालत विचाराधीन कैदियों के लंबे समय तक जेलों में रहने की वजह जानना चाहती थी।
इस बीच, दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने कहा है कि पुलिस अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन कर रहे हैं। विधिक सेवा प्राधिकरण ने कहा कि अदालत सभी जिला न्यायाधीशों को निर्देश दे सकता है कि वे विचाराधी कैदियों की रिहाई के बारे में अन्य न्यायाधीशों के साथ मंत्रणा करें। इसके बाद, पीठ ने दिल्ली सरकार से कहा कि उन सभी लोक अभियोजकों की संख्या और उन्हें उपलब्ध सुविधाओं का विवरण दाखिल किया जाये जो निचली अदालत में काम कर रहे हैं।
इससे पहले अदालत को सूचित किया कि अनेक विचाराधीन कैदी जेल की सलाखों के पीछे हैं क्योंकि लोक अभियोजकों की कमी की वजह से उनकी जमानत अर्जियों पर सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है।
इससे पहले, पिछले साल सात दिसंबर को तिहाड़ जेल संख्या छह के अधीक्षक ने अपनी स्थिति रिपोर्ट में अदालत को सूचित किया था कि 105 विचाराधीन कैदियों में से 51 को रिहा किया गया है।
अदालत द्वारा शीर्ष अदालत के निर्देशों का स्वत: ही संज्ञान लिये जाने के बाद सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल को विचाराधीन कैदियों के बारे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिये कहा गया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि हाईकोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली राज्य सरकारों को निर्देश दे सकते हैं कि वे जेलों में सुविधाओं की कमी के बारे में कैदियों की शिकायतों पर गौर करने के लिये कह सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ को यह भी बताया गया कि निचली अदालत और पुलिस, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन कर रही हैं जिसकी वजह से संबंधित प्राधिकारियों के खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
दिल्ली सरकार के वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाये तो पुलिस को जब तक जरूरत नहीं हो जब तक व्यक्तियों को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए और अदालतों को यंत्रवत तरीके से हिरासत में लेने के लिये प्राधिकारियों को अधिकृत नहीं करना चाहिए। इससे कम से कम 1460 विचाराधीन कैदी लाभान्वित होंगे जो तत्काल ही जेल से बाहर आ सकते हैं।
उन्होंने दिल्ली सरकार द्वारा पेश स्थिति रिपोर्ट का हवाला देते हुये कहा कि 1460 पुरुष विचाराधीन कैदी उन अपराधों के आरोप में दिल्ली की जेलों में बंद हैं जिसके लिये सात साल से कम अवधि की सजा हो सकती है। उन्होंने कहा कि पुलिस और निचली अदालतें शीर्ष अदालत के निर्देश का उल्लंघन कर इन कैदियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिये जिम्मेदार हैं और इसके लिये उन पर अवमानना कार्यवाही की जा सकती है।
मेहरा ने अदालत से अनुरोध किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 के तहत कुछ निर्देश दिया जा सकता है।
दिल्ली सरकार ने अदालत के सवाल के संदर्भ मे यह तथ्य पेश किये। दिल्ली की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों से संबंधित मसलों पर सुनवाई के दौरान अदालत विचाराधीन कैदियों के लंबे समय तक जेलों में रहने की वजह जानना चाहती थी।
इस बीच, दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने कहा है कि पुलिस अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन कर रहे हैं। विधिक सेवा प्राधिकरण ने कहा कि अदालत सभी जिला न्यायाधीशों को निर्देश दे सकता है कि वे विचाराधी कैदियों की रिहाई के बारे में अन्य न्यायाधीशों के साथ मंत्रणा करें। इसके बाद, पीठ ने दिल्ली सरकार से कहा कि उन सभी लोक अभियोजकों की संख्या और उन्हें उपलब्ध सुविधाओं का विवरण दाखिल किया जाये जो निचली अदालत में काम कर रहे हैं।
इससे पहले अदालत को सूचित किया कि अनेक विचाराधीन कैदी जेल की सलाखों के पीछे हैं क्योंकि लोक अभियोजकों की कमी की वजह से उनकी जमानत अर्जियों पर सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है।
इससे पहले, पिछले साल सात दिसंबर को तिहाड़ जेल संख्या छह के अधीक्षक ने अपनी स्थिति रिपोर्ट में अदालत को सूचित किया था कि 105 विचाराधीन कैदियों में से 51 को रिहा किया गया है।
अदालत द्वारा शीर्ष अदालत के निर्देशों का स्वत: ही संज्ञान लिये जाने के बाद सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल को विचाराधीन कैदियों के बारे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिये कहा गया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि हाईकोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली राज्य सरकारों को निर्देश दे सकते हैं कि वे जेलों में सुविधाओं की कमी के बारे में कैदियों की शिकायतों पर गौर करने के लिये कह सकते हैं।
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