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This Article is From Feb 09, 2020

उमर अब्दुल्ला पर लगे कुछ आरोप अजीबोग़रीब, 'बहिष्कार की अपील के बाद भी वोट हासिल किए'

डोजियर में कहा गया है कि, ''किसी भी कारण से लोगों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो उग्रवाद और मतदान बहिष्कार के दौरान भी भारी संख्या में अपने मतदाताओं को वोट करने के लिए प्रेरित करने में सक्षम हैं''. 

उमर अब्दुल्ला पर लगे कुछ आरोप अजीबोग़रीब, 'बहिष्कार की अपील के बाद भी वोट हासिल किए'
अगस्त 2019 से ही हिरासत में हैं उमर अब्दुल्ला
नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मीर में जिन नेताओं के ख़िलाफ़ पब्लिक सेफ़्टी ऐक्ट लगाया गया है उनमें से एक हैं नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला. एनडीटीवी को उमर अब्दुल्ला के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों की जानकारी मिली है. जो आरोप उन पर लगाए गए हैं उनमें से एक है चरमपंथी होना और लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखना. आरोपों से जुड़े डॉजियर में कहा गया है कि लोगों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आतंकवादियों द्वारा चुनाव बहिष्कार किए जाने के बावजूद उमर अब्दुल्ला की अपील पर लोग बाहर आए और वोट डाले. उमर अब्दुल्ला पर इसके अलावा अनुच्छेद 370 को रद्द करने का विरोध करने, ट्विटर पर लोगों देश की एकता और अखंडता के ख़िलाफ़ भड़काने जैसे आरोप भी लगे हैं. हालांकि, इस डोजियर में इस दावे की पुष्टि के लिए किसी तरह के सबूतों का हवाला नहीं दिया गया है. 

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डोजियर में दावा किया गया है कि उमर अब्दुल्ला, ''किसी भी बात के लिए लोगों को प्रभावित कर सकते हैं और अलगाववादियों द्वारा किए गए बहिष्कार के बाद भी मतदाताओं को बाहर ला सकते हैं''. इसमें कहा गया है कि, ''लोगों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो तब भी भारी संख्या में अपने मतदाताओं को वोट करने के लिए प्रेरित करने में सक्षम हैं जब आतंकवाद चरम पर था और अलगाववादियों द्वारा मतदान का पूर्ण बहिष्कार किया गया था.''

आपको बता दें, उमर अब्दुल्ला 5 अगस्त, 2019 से सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में थे. इस कानून के तहत, उमर अब्दुल्ला की छह महीने की एहतियातन हिरासत अवधि गुरुवार यानी 5 फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी लेकिन 5 जनवरी को सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया है. इसके बाद उनकी हिरासत को 3 महीने से 1 साल तक बिना किसी ट्रायल के बढ़ाया जा सकता है. 

उमर अब्दुल्ला के खिलाफ अन्य आरोपों में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के केंद्र के फैसले का विरोध और "राष्ट्र की एकता और अखंडता के खिलाफ ट्विटर पर लोगों को उकसाना" शामिल है. हालांकि, इस आरोप का समर्थन करने के लिए किसी भी ट्विटर पोस्ट का हवाला नहीं दिया गया है. वहीं 5 अगस्त 2019 को गिरफ्तारी से पहले उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट करते हुए लोगों से शांति बनाए रखने का आह्वान किया था. 

डोजियर में कहा गया है कि ''पूर्व मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के खिलाफ गतिविधियों की योजना बनाने के लिए राजनीति का इस्तेमाल आवरण के रूप में रहे हैं. इसमें कहा गया है कि वह राजनीति की आड़ में भारत की केंद्र सरकार के खिलाफ गतिविधियों की योजना बना रहे हैं और जनता के समर्थन के साथ, वह इस तरह की गतिविधियों को अंजाम देने में सफल रहे हैं." डोजियर में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला ने 370 के निरस्त हो जाने के बाद "अपना आवरण हटा दिया और गंदी राजनीति और कट्टरपंथी कार्यप्रणाली का सहारा लिया है."

इसमें आगे कहा गया है कि ''अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A के निरस्त होने के बाद, आम जनता के समर्थन और मदद की बजाय उन्होंने अपनी गंदी राजनीति का सहारा लेते हुए केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ उकसाने का काम किया और कट्टरपंथी कार्यप्रणाली को अपनाया''. हालांकि, उमर अब्दुल्ला 5 अगस्त, 2019 को संसद में अनुच्छेत 370 और 35A के निरस्त होने की घोषणा किए जाने से पहले से ही हिरासत में हैं, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने अनुच्छेद 370 के हटने के बाद लोगों को कैसे भड़काया.

सरकार ने लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता को भी उनके खिलाफ नजरबंदी का आधार बनाया है. इसमें कहा गया है कि "उमर अब्दुल्ला, जनता के बीच एक लोकप्रिय व्यक्ति हैं और किसी भी बात की तरफ लोगों को मोड़ने की उनमें जबरदस्त क्षमता हैं.'' पीएसए के तहत उमर अब्दुल्ला को बिना किसी ट्रायल के तीन महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है. अगर सरकार ने उनपर एक और पीएसए लगाया तो उनकी हिरासत को 1 साल तक बढ़ाया जा सकता है. बता दें, उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला भी पिछले 5 महीनों से पीएसए के तहत हिरासत में हैं. 

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