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This Article is From Jul 30, 2015

याकूब की फांसी का कोई पछतावा नहीं है : अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी

याकूब की फांसी का कोई पछतावा नहीं है : अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी
बरख़ा दत्त के साथ मुकुल रोहतगी
नई दिल्ली: याकूब मेमन को फांसी दिए जाने के बाद कुछ ही घंटों बाद भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एनडीटीवी से कहा है कि, 'उन्हें फांसी की इस प्रक्रिया का कोई पछतावा नहीं है क्योंकि याकूब को न्याय पाने का पर्याप्त मौका भी दिया गया और अंत में जो सज़ा उसे मिली वह एक जघन्य अपराध के लिए थी।'

याकूब मेमन को गुरुवार सुबह 6.19 मिनट पर उस समय फांसी दी गई जब आधी रात को चली 90 मिनट की ऐतिहासिक सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने याकूब की फांसी की सज़ा पर रोक लगाने से इंकार करते हुए दया याचिका रद्द कर दी।   

रोहतगी ने एनडीटीवी से कहा, 'मैं याकूब द्वारा अंतिम समय ज़िंदा रहने के लिए किए गए प्रयासों को समझता हूं,  लेकिन मैं मानता हूं कि न्याय की जीत हुई है। आरोपी 1993 से 2013 तक लगातार 20 सालों के लिए देश के कानून से बच रहा था।'     

रोहतगी के अनुसार, 'मौजूदा प्रतिकूल हालातों और भौगोलिक तौर पर अस्थिर पड़ोसियों से घिरे होने के कारण हमारा पूरी तरह से फांसी की सज़ा पर रोक लगाना सही नहीं हो सकता है।' मुकुल रोहतगी याकूब मामले में सरकारी पक्ष के वकील थे, वह आगे कहते हैं, 'हालांकि जिन वजहों से फांसी की सज़ा के निवारण की बातें होती हैं वह कहीं न कहीं हमारे देश में लंबी कानूनी प्रक्रिया के कारण डाइल्यूट हो गईं हैं, क्योंकि आमतौर पर हमारे यहां किसी भी अपराधी को जब फांसी की सज़ा दी जाती है, तब तक अपराध को 15-20 साल बीत जाते हैं।'  
       
'ऐसा न हो इसके लिए हमें इस तरह के केस की सुनवाई की प्रक्रिया जल्द खत्म करनी चाहिए।'

मुकुल रोहतगी के अनुसार, 'राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ऐसे मामलों में दी गई दया याचिका पर अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में काफी जल्दी फैसला लेते रहे हैं।'

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