केंद्र सरकार का कहना है कि उस मीडिया रिपोर्ट को सच्चा प्रमाणित करने वाला कोई सबूत नहीं मिला है, जिसमें कहा गया था कि इराक में जून माह में लापता हुए 39 भारतीयों को इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादियों ने मार डाला है।
विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में शुक्रवार को कहा कि यही आरोप - कि भारतीय मार डाले गए हैं - पिछले कुछ महीनों में कई समाचारपत्रों में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने कहा, "हम इन रिपोर्टों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं, और भारतीयों को तलाश करने और उन्हें सुरक्षित वापस लाने के लिए हरसंभव प्रयास जारी रखे हुए हैं..."
सुषमा स्वराज ने कहा कि एक बंधक हरजीत अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकलने में कामयाब रहा और उसने यह दावा किया है कि अन्य बंधकों को जंगल में ले जाकर गोली मार दी गई है। सुषमा ने राज्यसभा में कहा, बस्सी की बातों में विरोधाभास है। तार्किक रूप से देखें तो उसकी बातें स्वीकार्य नहीं हैं। हमें छह ऐसे सूत्र मिले हैं, जिनका कहना है कि भारतीयों की हत्या नहीं हुई है।
सुषमा ने कहा, हमें न सिर्फ मौखिक, बल्कि लिखित संदेश भी मिले हैं, जिसमें उनके जिंदा होने की बात कही गई है। उन्होंने हालांकि लिखित संदेश का खुलासा नहीं किया। सुषमा ने कहा कि इराक में अरबी भाषा के अच्छे जानकार अधिकारियों को नियुक्त किया गया है। उन्होंने कहा, उम्मीद की खातिर हमें तलाश जारी रखनी है।
गुरुवार रात को एबीपी न्यूज़ ने दावा किया था कि इराक के इरबिल में उनके रिपोर्टर ने दो बांग्लादेशी मजदूरों से मुलाकात की, जिन्होंने कहा कि आईएस ने कुछ महीने पहले जिन 40 भारतीयों को बंधक बनाया था, उनमें से एक भाग निकलने में कामयाब रहा था, और उसने बताया था कि बाकी सभी को मार दिया गया है।
ये सभी भारतीय बगदाद की कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे। उन्हें इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल से उस वक्त अगवा किया गया था, जब मोसुल पर आईएस का कब्जा हो गया था। सरकार के मुताबिक किसी भी तरह की फिरौती की कोई मांग नहीं की गई है।
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