
- चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नौसैनिक साझेदारी हिंद महासागर में सामरिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए चुनौती
- नौसेना में अगस्त 2025 को दो नीलगिरी क्लास स्टेल्थ फ्रीगेट INS उदयगिरी और INS हिमगिरी शामिल होंगे
- प्रोजेक्ट 17A के तहत सात स्टेल्थ फ्रिगेट्स में लगभग 25 प्रतिशत विदेशी उपकरण शामिल हैं, बाकी स्वदेशी हैं
हिंद महासागर में चीन और पाकिस्तान की बढ़ती साझेदारी भारत के लिए चुनौती बनती जा रही है. चीन ने पाकिस्तान को आधुनिक पनडुब्बियों और युद्धपोतों से लैस कर उसकी नौसैनिक क्षमता बढ़ाने की कोशिश की है. यह गठजोड़ भारत के लिए सिर्फ सामरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक सुरक्षा का भी सवाल है, क्योंकि भारत की ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक व्यापार का अधिकांश हिस्सा हिंद महासागर से होकर गुजरता है. इसी चुनौती का जवाब भारत ने आत्मनिर्भर नौसैनिक शक्ति के रूप में तैयार किया है. 26 अगस्त 2025 को भारतीय नौसेना के लिए ऐतिहासिक साबित होगा, जब दो नीलगिरी क्लास स्टेल्थ फ्रीगेट – INS उदयगिरी और INS हिमगिरी – एक ही दिन नौसेना में शामिल होंगे. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह विशाखापत्तनम में इसे देश को सौपेंगे.
प्रोजेक्ट 17A : आत्मनिर्भर भारत का सामरिक स्तंभ
भारत ने लंबे समय तक वॉरशिप तकनीक के लिए विदेशी सहयोग पर निर्भरता रखी थी. लेकिन प्रोजेक्ट 17A इस सोच में निर्णायक बदलाव का प्रतीक है. इस प्रोजेक्ट के तहत बनाए जा रहे 7 स्टेल्थ फ्रीगेट डिज़ाइन, स्टील और 75% उपकरणों तक पूरी तरह स्वदेशी हैं। इसी क्लास का INS नीलगिरी इस क्लास का पहला जहाज़ था जिसे जनवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई में नौसेना को समर्पित किया.
अब उदयगिरी और हिमगिरी के शामिल होने से भारत का तीन-फ्रीगेट स्क्वाड्रन तैयार हो जाएगा. इससे न सिर्फ भारत की औद्योगिक-तकनीकी क्षमता प्रदर्शित होती है बल्कि यह संदेश भी जाता है कि भारत किसी भी क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन को केवल आयातित हथियारों पर निर्भर होकर नहीं, बल्कि अपनी स्वदेशी क्षमता से साध रहा है.
सामरिक क्षमता और संतुलन
INS उदयगिरी और हिमगिरी आधुनिक हथियारों से लैस फ्रिगेट हैं. इसमें लगाए गए हथियार और तकनीक इन्हें किसी भी तीन-आयामी युद्ध (surface, air, submarine) में सक्षम बनाते हैं. ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल इन्हें हिंद महासागर के किसी भी हिस्से में दूर तक मार करने वाला प्लेटफॉर्म बनाती है।वही बराक-8 लॉन्ग रेंज मिसाइल और एयर डिफेंस गन हवाई हमलों को विफल कर सकती हैं.
वरुणास्त्र टॉरपीडो और एंटी-सबमरीन रॉकेट लॉन्चर पनडुब्बियों के खतरे को खत्म करते हैं. अत्याधुनिक सोनार और डिजिटल रडार इन युद्धपोतों को दुश्मन का लंबी दूरी से पता लगाने और उसका ट्रैक करने की क्षमता देते हैं. यानी ये वॉरशिप अकेले ही एक फ्लोटिंग कॉम्बैट सिस्टम की तरह काम कर सकते हैं.
हिंद-प्रशांत और समुद्री सुरक्षा में भूमिका
भारत की रणनीति अब केवल पाकिस्तान को काबू करने तक सीमित नहीं है। वास्तविक चुनौती चीन का बढ़ता समुद्री विस्तार है, जिसने हिंद महासागर में “String of Pearls” नीति के तहत ग्वादर (पाकिस्तान), हंबनटोटा (श्रीलंका), चिटगाँव (बांग्लादेश) और जिबूती तक अपनी पकड़ बनाई है. ऐसे में नीलगिरी क्लास फ्रीगेट भारत के लिए एक सशक्त प्रतिरोधक (deterrent) की तरह काम करेंगे. ये न केवल समुद्री व्यापार मार्गों (Sea Lanes of Communication) की सुरक्षा करेंगे,बल्कि मालक्का स्ट्रेट से लेकर अफ्रीका तक हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक उपस्थिति को विश्वसनीय बनाएंगे. INS उदयगिरी और INS हिमगिरी का नौसेना में शामिल होना केवल दो युद्धपोत बढ़ने की बात नहीं है. यह भारत के लिए रणनीतिक आत्मनिर्भरता, औद्योगिक प्रगति और वैश्विक भूमिका का संगम है.
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