
- नेपाल में सरकार के खिलाफ हुई हिंसा में कई सरकारी और निजी इमारतें पूरी तरह जलकर खाक हो गई थीं
- दिल्ली की ख्याती काठमांडू में फंसी रहीं और होटल से बाहर निकलने में गंभीर खतरे का सामना करना पड़ा
- गाजियाबाद के राजेश देवी काठमांडू में हिंसा के दौरान होटल से कूदने की कोशिश में गिरकर गंभीर रूप से घायल हुए
नेपाल में बीते कुछ दिनों में सरकार के खिलाफ जिस तरह की हिंसा हुई उसने उसे भारी नुकसान पहुंचाया है.प्रदर्शनकारियों द्वारा की गई हिंसा में सबकुछ जलकर खाक हो गया. हिंसा पर उतरे युवाओं ने ना संसद, ना सरकारी दफ्तर, ना होटल और ना ही निजी ऑफिस में कहीं कोई फर्क नहीं किया. बीते दिनों जिस समय में नेपाल की सड़कों पर मौत का तांडव चल रहा था उस दौरान वहां कई भारतीय भी फंसे थे. काठमांडू का हयात होटल भी आग की लपटों में घिरा था,

खौफ इतना कि होटल से पर्दे के सहारे कूदने लगे थे लोग
दिल्ली से सटे गाजियाबाद के रहने वाले राजेश देवी सिंह गोला भी उन दिनों अपनी पत्नी के साथ काठमांडू की होटल में ही थे. वो अपनी पत्नी के साथ छुट्टियां मनाने के लिए काठमांडू गए हुए थे. जिस समय काठमांडू की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों ने उत्पात मचाना और होटल व अन्य इमारतों को आग लगाना शुरू किया उस दौरान राजेश अपनी के साथ वहीं थे. अलग-अलग इमारतों में लगाई जा रही आग और आसमान में उठते धुएं को देखकर काफी घबरा गए थे. आखिरकार उन्होंने भी दूसरों की तरह ही पर्दे की मदद से होटल से नीचे उतरने की कोशिश की. इस कोशिश में उनकी गिरकर मौत हो गई. अब उनके परिवार में मातम का माहौल है. हालांकि, राजेश देवी सिंह गोला की मौत को लेकर काठमांडू प्रशासन ने किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं की है. अगर प्रशासन उनकी मौत की पुष्टि कर देता है तो नेपाल की हिंसा में ये किसी भारतीय की ये पहली मौत होगी.
राजेश के बेटे विशाल गोला ने टीओआई को बताया कि उनके पिता उनकी मां को लेकर सात सितंबर को काठमांडू पहुंचे थे. उन्होंने हयात रेजेंसी में कमरा बुक करवाया था. विशाल ने बताया कि 9 सितंबर को उनके अभिभावक (राजेश देवी और रामवीर सिंह) पशुपतिनाथ मंदिर गए थे. वहां से दर्शन करने के लौटने के बाद वो अपने होटल में आराम कर रहे थे. इसी दौरान प्रदर्शनकारी उनके होटल में घुसे और उसे आग के हवाले करना शुरू कर दिया. आग तेजी से फैल रही थी ऐसे में उनके पास कूदने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था.मेरी मां ने पिता जी से कहा कि अगर जान बचानी है तो हमें खिड़की पर लगे पर्दे के सहारे चौथे मंजिल के कमरे से नीचे उतरना होगा. मेरे पिता जी ने बेडशीट और पर्दों को बांधकर एक लंबी सी रस्सी जैसी तैयार की जिसे वो कमरे से नीचे लटकार वहां से उतरने वाले थे.

हर तरफ मौत ही मौत दिख रही थी
दिल्ली की द्वारका की रहने वाली ख्याति भी अपने किसी काम से नेपाल के काठमांडू गई थीं. काठमांडू जाने से पहले वो अपने इस ट्रिप को लेकर खासी एक्साइटेड थीं लेकिन उन्होंने ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस ट्रिप के दौरान उनकी जान ही मुश्किल में फंस जाएगी. जिस दौरान काठमांडू में हिंसा हुई उस दौरान वो अपने होटल के कमरे में थीं. वो बताती है कि उनके होटल से एयरपोर्ट करीब आधे घंटे की दूरी पर था लेकिन चारों तरफ हिंसा इतनी ज्यादा हो रही थी कि उन्हें बाहर निकला बिल्कुल भी सेफ नहीं लगा. उन्होंने अपने होटल के कमरे से बाहर हो रही हिंसा का वीडियो भी बनाया. जब उन्हें पता चला कि अब प्रदर्शनकारी होटल को भी आग के हवाले कर रहे हैं तो वो बेहद खबरा गईं. उन्होंने अपने होटल के मैनेजर से कहा कि वो तुरंत एयरपोर्ट जाना चाहती हैं. लेकिन होटल के मैनेजर ने उन्हें समझाया है कि ऐसे हालात में बाहर निकलना उनके लिए सही नहीं है. बाहर यहां की तुलना में खतरा ज्यादा है. काफी देर के इंतजार के बाद वो किसी तरह से अपने होटल के कमरे से निकल एयरपोर्ट पहुंची और अब वह दिल्ली लौट आई हैं. उनका कहना है अभी भी काफी भारतीय नेपाल में फंसे हैं जिन्हें जल्दी स्वदेश लाने की जरूरत है.

मेरी मां पहले कमरे की खिड़की से नीचे उतरने लगी. इसी दौरान जब वह दूसरे मंजिल तक पहुंची तो उनका नियंत्रण बिगड़ा और वो गिर गईं. उन्हें काफी गंभीर चोटें आई. बाद में मेरे पिता भी उसी तरीके से नीचे उतरे. मेरी मां के सर से खून बह रहा था. इसी दौरान वहां एक आर्मी की जीप आई उन्होंने मेरी घायल मां को जीप में डाला लेकिन वो मेरे पिता को वहीं छोड़ गए. जबकि मेरे पिता को भी गंभीर चोटें आई थीं. जबकि जीप में उनके बैठने लायक जगह बची हुई थी. मेरे पिता स्थानीय लोगों से गुहार लगाते हुए किसी तरह उस अस्पताल में पहुंचे. इसके बाद भारतीय दूतावास की तरफ से उन्हें सूचना दी गई कि उनकी पत्नी और मेरी मां राजेश देवी की मौत हो गई है. ये अनुभव मेरे पिता और मेरे पूरे परिवार के लिए बेहद खौफनाक है. हम अभी तक इस हादसे नहीं उभर पाएं है.
सामने जला दी हमारी गाड़ी
नेपाल में फंसे एक अन्य भारतीय शख्स ने पीटीआई से कहा कि हम यहां पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए 9 सितंबर की शाम को यहां आए थे. हम जब काठमांडू पहुंचे तो हमें एयरपोर्ट से बाहर जाने दिया गया. काठमांडू की सड़कों पर क्या चल रहा है हमें इसकी कोई जानकारी नहीं थी. हम जब बाहर निकले तो हमारे मोबाइल में कोई नेटवर्क नहीं था. जब हम पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचने वाले थे तो हमारी गाड़ी को रोका गया, उसके बाद हमें खींचकर बाहर निकाला गया और हमारी गाड़ी को पूरी तरह से तोड़ दिया गया.

एक अन्य भारतीय ने बताया कि हम भी यहां दर्शन करने ही आए थे. 9 सितंबर की शाम को हमारी गाड़ी को भी पशुपतिनाथ मंदिर से पहले रोका गया और बाद में हमारी गाड़ी को हमारे सामने ही आग के हवाले कर दिया गया. हम लोग दो से तीन दिन स्थानीय लोगों के बीच छिपकर रहे. अब हम वापस जाने की तैयारी में है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं