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This Article is From Apr 18, 2024

नारायण राणे का फिर से महाराष्ट्र का सीएम बनने का ख्वाब अधूरा, अब लोकसभा में पहुंचने के लिए मशक्कत

Lok Sabha Elections 2024: रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग लोकसभा सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार नारायण राणे और शिवसेना (उद्धव) के विनायक राऊत के बीच सीधी लड़ाई

नारायण राणे का फिर से महाराष्ट्र का सीएम बनने का ख्वाब अधूरा, अब लोकसभा में पहुंचने के लिए मशक्कत
महाराष्ट्र का कोंकण इलाका बीजेपी नेता नारायण राणे का गढ़ है.
मुंबई:

Lok Sabha Elections 2024: नारायण राणे (Narayan Rane) साल 1999 में  नौ महीने के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे. उस साल शिवसेना-बीजेपी (Shiv Sena-BJP) की गठबंधन सरकार के सत्ता से बेदखल होने के बावजूद उनमें फिर से सीएम की कुर्सी पर वापस लौटने की हसरत किसी से छुपी न रही. साल 2002 में उन पर विलासराव देशमुख सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस-एनसीपी के कुछ विधायकों को "अगवा" करने का आरोप तक लगा, लेकिन बीजेपी से सहयोग नहीं मिला और प्लान असफल रहा. उद्धव ठाकरे से अनबन के बाद साल 2005 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस से जुड़ गए. 

नारायण राणे के मुताबिक कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा करके लिया था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. राणे के कांग्रेस में शामिल होने के बाद दो ऐसे मौके आए जब कांग्रेस ने महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री बदला लेकिन राणे को उस पद पर नहीं बिठाया. 26 नंवबर 2008 के आतंकी हमले के बाद जब विलासराव देशमुख को हटाया गया तो अशोक चव्हाण को सीएम बना दिया गया. अशोक चव्हाण जब आदर्श इमारत घोटाले में फंसे तो पृथ्वीराज चव्हाण को उनकी जगह सीएम बना दिया गया. राणे ने खुद को ठगा महसूस किया. साल 2017 में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई- महाराष्ट्र स्वाभिमानी पक्ष और उसके अगले साल 2018 में बीजेपी से जुड़ गए जिसने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदा कैबिनेट में उन्हें मंत्री बनाया गया.

राणे का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म

हाल ही में बतौर राज्यसभा सांसद राणे को कार्यकाल खत्म हुआ और अब बीजेपी ने उन्हें रत्नागिरी - सिंधुदुर्ग सीट से लोकसभा का टिकट दिया है. महायुति में इस सीट को लेकर बीजेपी और शिवसेना में खींचतान चल रही थी. शिवसेना यह कहते हुए इस सीट पर दावा कर रही थी कि अविभाजित शिवसेना का जब बीजेपी के साथ गठबंधन होता था तो यह सीट शिवसेना के हिस्से में आती थी. शिवसेना यहां से राज्य सरकार में मंत्री उदय सामंत के भाई किरण सामंत को उतारना चाहती थी, लेकिन बीजेपी को भरोसा था कि इलाके में राणे का वर्चस्व उन्हें यह सीट दिला देगा. कई दिनों तक चले गतिरोध के बाद आखिरकार गुरुवार को बीजेपी ने नारायण राणे के नाम का ऐलान बतौर उम्मीदवार कर दिया. अब इस सीट पर नारायण और शिवसेना (उद्धव) के उम्मीदवार विनायक राऊत के बीच सीधी लड़ाई होगी. राऊत 2014 और 2019 में भी यहां से सांसद रह चुके हैं.

राणे के बलबूते कोंकण में अपनी जड़ें जमा सकी थी शिवसेना

लंबे वक्त तक कोंकण का यह इलाका नारायण राणे का गढ माना जाता रहा है. राणे ने अपने सियासी करियर की शुरुआत यहीं से की थी. शिवसेना अगर कोंकण में अपनी जड़ें जमा पाई तो इसमें एक बड़ी भूमिका राणे की रही. यही वजह थी कि राणे पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे के खास बन गए थे और 1999 में उन्हें ठाकरे ने महाराष्ट्र का मुखमंत्री बनाया था. 2003 में जब बाल ठाकरे के बेटे उद्धव के हाथों में पार्टी की कमान आई तो उनकी राणे से अनबन होने लगी. दोनों के बीच बात इतनी बिगड़ी कि साल 2005 में राणे ने सार्वजनिक तौर पर उद्धव के खिलाफ बयान दिया जिसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. तब से राणे तीन अलग-अलग पार्टियों में जा चुके हैं.

राणे के दोनों बेटे भी राजनीति में हैं. उनका छोटा बेटा नितीश कनकवली से विधायक है. बड़े बेटे नीलेश ने साल 2009 में कांग्रेस के टिकट पर इसी रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट से लोकसभा का चुनाव जीता था, जहां से इस बार सीनियर राणे चुनाव लड़ रहे हैं. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में नीलेश की हार हुई थी. इस बार के चुनाव नतीजे यह बताएंगे कि कोंकण में राणे परिवार का वर्चस्व बररकरार है या नहीं.

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