विज्ञापन
This Article is From Jun 12, 2015

नाम अब्दुल है मेरा, आतंकवादी नहीं...

नाम अब्दुल है मेरा, आतंकवादी नहीं...
पुलिस के ढाये जुल्म के निशान दिखाता अब्दुल
नई दिल्ली: 27 साल के एमबीए के छात्र अब्दुल रहमान की पीठ पर 9 महीने पहले पुलिसे के दिए निशान अब भी ताजा हैं। गलती बस इतनी थी कि 29 सितंबर की रात जब प्रगति मैदान की बैरिकेडिंग पर तैनात पुलिस ने अब्दुल की बाइक को हाथ दिया तो उसे दूर से दिखा नहीं और ब्रेक मारने में देरी हो गई। बाइक थोड़ी दूर जाकर रुकी। दोस्त के सिर पर हेलमेट नहीं था, लिहाजा पहले पूछताछ हुई। फिर नाम पूछा गया और इसके बाद अपशब्दों के साथ जमकर धुनाई।

दिल्ली के मदनगीर इलाके में रहने वाला अब्दुल अाज भी उस वाकये को याद करके सहम जाता है। बताता है कि एक पुलिस वाला उसे पीट रहा था और अपने दूसरे साथी से कह रहा थी 'देखियो इसके फोटो के पीछे पाकिस्तान का झंडा तो नहीं'।

इस दौरान उसे आतंकी तक कहा गया। प्रगति मैदान के बैरिकेडिंग से शुरू हुई पिटाई देर रात तक तिलकमार्ग थाने में भी जारी रही। जब मामला पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचा तो इलाके के डीसीपी ने अपनी रिपोर्ट में मारपीट की घटना से साफ इनकार कर दिया।

वहीं दिल्ली पुलिस का विजिलेंस विभाग कह रहा है कि तिलकमार्ग थाने में अब्दुल की बुरी तरह से पिटाई हुई और उसे आतंकवादी तक कहा गया। पेशे से माली अब्दुल के पिता बिसरार अली कहते हैं कि क्या मुस्लिम होने की सजा मेरे बेटे ने भुगती है? मुझे इंसाफ चाहिए।

जब इस मसले पर एनडीटीवी ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी से बात की तो उन्होंने कहा कि जांच में दोषी पाने पर कोई नहीं बक्शा जाएगा। बस्सी ने कहा कि हमने पहले ही आदेश दे रखा है कि कानून के दायरे में रहकर पुलिस को संवेदना के साथ काम करना चाहिए। दोषी पाए गया तो छूट की कोई गुंजाइश नहीं।

यह मामला कोर्ट में है और अब पुलिस कमिश्नर को अपनी रिपोर्ट में ये साफ करना होगा कि उनके डीसीपी की रिपोर्ट सही है या फिर विजिलेंस की।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com