गृहिणियों (हाउस वाइफ्स) के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार को लेकर हो रही सुनवाई के दौरान कहा है कि अब समय आ गया है कि भारतीय पुरुष परिवार के लिए गृहिणी की भूमिका और उनके त्याग को पहचानें. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में आगे ये भी कहा कि अब पुरुष अपनी हाउस वाइफ के लिए अपने साथ एक संयुक्त खाता खुलवाएं और साथ ही उन्हें एटीएम कार्ड देकर उनकी वित्तीय सहायता भी करें.
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी मुस्लिम महिलाओं पर पति पर भरण-पोषण के कानूनी अधिकार का इस्तेमाल कर सकती हैं. वो इससे संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत उपाय कर सकती है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिलाओं को अपने भरन पोषण का अधिकार है. ऐसे अधिकार के सामने धर्म नहीं आना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ये धारा सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती हैं. चाहे उनका धर्म कुछ भी क्यों ना हो. लिहाजा, इसके तहत मुस्लिम महिलाएं भी आती है.
गृहिणियों को लेकर पहले भी टिप्पणी कर चुका है सुप्रीम कोर्ट
गृहिणियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले भी इस तरह की टिप्पणी कर चुका है. इसी साल फरवरी में एक अलग मामले की सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने हाउस वाइफ्स की महत्ता पर अपनी टिप्पणी की थी. उस दौरान कोर्ट ने कहा था कि एक गृहिणी की भूमिका वेतनभोगी परिवार के सदस्य जितनी महत्वपूर्ण है. एक गृहिणी के महत्व को कभी कम नहीं आंकना चाहिए.
आखिर कौन हैं न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना, जिन्होंने ये सुनाया ऐतिहासिक फैसला
बीवी नागरत्ना फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जज हैं. सुप्रीम कोर्ट में अपनी सेवाएं देने से पहले नागरत्ना कर्नाटक उच्च न्यायालय में भी अपनी सेवाएं दे चुकी हैं. उन्हें 31 जुलाई 2021 को पदोन्नत करके सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया था. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1962 को बेंगलुरु में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय की जीसस एंड मैरी कॉलेज से बीए (ऑनर्स) की डिग्री वर्ष 1984 में प्राप्त की थी. इसके बाद उन्होंने जुलाई 1987 में कैंपस लॉ लेंटर, दिल्ली विश्वविद्याय से एल.एल. बी की डिग्री हासिल की थी.
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