मुंबई के अम्बेडकर नगर में रह रहे लोग पिछले ढाई दशकों से अपने पुनर्वास का इंतज़ार कर रहे हैं. सरकार ने इनकी मदद करने का आश्वासन तो किया, लेकिन अबतक कुछ हुआ नहीं. बार-बार हो रहे सर्वे के लिए इन लोगों को घरों में ही रहना पड़ता है, जिसकी वजह से कई लोगों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ा है. मुंबई के मलाड इलाके में स्थित यह अंबेडकर नगर, जहां 25 सालों से लोग प्लास्टिक और लकड़ी से बने घरों में रह रहे हैं. ना सड़क है और ना ही कोई सफाई. 2019 में पास की दीवार ढहने से यहां 32 लोगों की मौत हुई थी. जिसके बाद से लोगों के पुनर्वास की बात की जा रही है. सरकार के आश्वासन को काफी दिन बीत जाने के बाद भी मदद नहीं मिली तो लोगों ने आंदोलन का रुख अपनाया है. 55 दिन से लोग आंदोलन कर रहे हैं.
1995 से यहां रह रहीं सुप्रिया गोरेगांवकर लोगों के घरों में सफाई का काम करती थीं. कोरोना की वजह से 2 साल तक काम बंद था. चार महीने पहले काम दोबारा शुरू हुआ, लेकिन अब यह कहा जाता है कि सरकारी अधिकारी पुनर्वसन के लिए सर्वे करने आएंगे, उनका इंतज़ार करते हुए सुप्रिया रोज काम पर नहीं जा पा रही थीं. जिसकी वजह से काम से निकाल दिया गया, अब वह अपने घर पर ही रहने को मजबूर हैं.
सुप्रिया गोरेगांवकर ने कहा कि यहां जब भी वरिष्ठ अधिकारी आने वाले रहते हैं, तो हमें सूचना मिल जाती थी. बताया जाता था कि घर की चेकिंग होगा, सर्वे की जाएगी. कहा जाता था कि आज आएंगे, कल आएंगे, इसलिए हम काम से छुट्टी लेते थे और घर पर बैठते थे. लेकिन कोई नहीं आता था, हम दिन भर धूप में बैठते थे. ऐसा 10-12 बार हुआ.
27 सालों से अम्बेडकर नगर में रहने वाले वली शेख पेंटर हैं, लेकिन अब उनके डिब्बों में रखे पेंट सूख चुके हैं. दो महीनों से घर के सर्वे के नाम पर यह भी रोज़ाना काम पर नहीं जा पा रहे थे, लिहाज़ा अब काम मिल ही नहीं रहा. वली शेख ने बताया कि घर की परेशानी के वजह से नहीं जा पा रहा हूं. पता चलता है कि अधिकारी भी आएंगे, आज आएंगे, उसके वजह से बहुत परेशान हो गया हूं. मालिक कहते हैं तुम घर ही देखो, काम हमारे पास खत्म हो गया है.
बता दें कि पिछले 55 दिनों से अम्बेडकर नगर के लोग हर रोज आंदोलन कर रहे हैं. इस उम्मीद में कि सरकार की ओर से इनके लिए कोई कदम उठाया जाएगा. उनकी जो उम्मीदें हैं, उसपर कुछ हुआ नहीं, बल्कि कई लोगों की नौकरी भी चली गई. सरकार से सवाल यही है कि आखिर और कितने दिनों तक लोगों को रोजगार खोना पड़ेगा.
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