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This Article is From May 09, 2024

झुग्गी बस्ती से निकला, दूध बेच चलाया घर; कैसे बना जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह; ये रही अरुण गवली की क्राइम कुंडली

हुआ कुछ यूं कि एक दिन गवली का दोस्त रामा नाइक एक गैंगवार में मारा गया. दोस्त की मौत से बदले की आग में जल रहे अरुण गवली (Arun Gawli) ने अपना गैंग बनाने का फैसला किया...और यहां से शुरू हुआ दाऊद और गवली की दुश्मनी का दौर.

झुग्गी बस्ती से निकला, दूध बेच चलाया घर; कैसे बना जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह; ये रही अरुण गवली की क्राइम कुंडली
गैंगस्टर अरुण गवली की क्राइम हिस्ट्री.(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

शिवसेना नेता की हत्या मामले में नागपुर जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे अरुण गवली (Gangstar Arun Gawli) की रिहाई की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. अरुण गवली ने महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग की ओर से 2006 में जारी एक सर्कुलर का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि जिन दोषियों ने चौदह साल की कैद की सजा काट ली है और उनकी उम्र 65 साल हो चुकी है, उन्हें जेल से रिहा किया जा सकता है. अब बहुत से लोगों के मन में यह सवाल होगा कि आखिर ये अरुण गवली है कौन?

कभी था दाऊद का खासमखास, फिर बना जानी दुश्मन

तो बता दें कि ये वही अरुण गवली है जो कभी मुंबई का डॉन और दाऊद इब्राहिम का खासमखास माना जाता था, फिर एक दिन दोनों जानी दुश्मन बन बैठे. उसका पूरा नाम अरुण गुलाब गवली है. उसकी उम्र अब 69 साल हो चुकी है. गवली के पिता मध्य प्रदेश के खंडवा के रहने वाले थे, वह काम की तलाश में खंडवा से महाराष्ट्र जा बसे थे. महाराष्ट्र के अहमदनगर में उसका जन्म हुआ था. छोटी सी उम्र में घर की खराब माली हालत की वजह से गवली को घर-घर जाकर दूध बेचना पड़ा. फिर धीरे-धीरे वह गैंगस्टर की दुनिया से जुड़ गया. इसी दौरान वह दाऊद और छोटा राजन के करीब आने लगा. देखते ही देखते वह दाऊद के कंसाइनमेंट का काम देखने लगा. फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि दाऊद के गवली की दोस्ती अचानक दुश्मनी में बदल गई. 

जुर्म की दुनिया में गवली की एंट्री

1980 के दशक में उसकी जुर्म की दुनिया में एंट्री हुई. वह स्कूल में अपने ही साथ पढ़ने वाले रामा नाइक के गैंग से जुड़ गया. यह गैंग फिरौती और तस्करी किया करता था. यही वो वक्त था जब डॉन वरदराजन और मुंबई छोड़कर चेन्नई चला गया और करीब लाला ने जुर्म की दुनिया को ही अलविदा कर दिया. अब जुर्म की काली दुनिया में सिर्फ रामा नाइक, दाऊद इब्राहिम और गवली गैंग ही बचे थे.

कसे शुरू हुई दाऊद-गवली की दुश्मनी?

साल 1986 में मुंबई में दाऊद का सिक्का पुजने लगा. इसके दो साल बाद यानी कि 1988 में दाऊद भी मुंबई छोड़कर दुबई चला गया. हुआ कुछ यूं कि एक दिन गवली का दोस्त रामा नाइक एक गैंगवार में मारा गया. दोस्त की मौत से बदले की आग में जल रहे अरुण गवली ने अपना गैंग बनाने का फैसला किया...और यहां से शुरू हुआ दाऊद और गवली की दुश्मनी का दौर. इसके बाद क्राइम की दुनिया में गवली ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. दरअसल गवली का घर भी ऐसी जगह पर गहुआ करता थआ, जो 1980 और 90 के दशक में गैंगस्टर एक्टिविटीज के लिए बदनाम था, इस जगह का नाम है भयकुला स्लम एरिया. देखते ही देखते वह जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बन बैठा. अपने चाहने वालों के बीच वह डैडी के नाम से फेमस हो गया. 

गवली...गैंगस्टर से बन बैठा सफेदपोश 

90 के दशक में अरुण गवली रंगदारी, हफ्ता, वसूली और सुपारी किलिंग के धंधे में उतर गया. इस दौरान लोग उसे सुपारी किलर के नाम से जानने लगे थे. जब उसे लगा कि कानून के शिकंजे में फंसने लगा है तो उसने राजनीति में हाथ आजमाया.साल 2004 में उसने अखिल भारतीय सेना नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई. उसने चिंचपोकली से चुनाव लड़ा और उसमें जीत भी हासिल की. विधायक बनते ही गवली ने साल 2008 में शिवसेना के कॉरपोरेटर कमलाकर जामसांडेकर की हत्या करवा दी. इस मामले में गवली को कोर्ट ने दोषी करार दिया और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. गवली के जेल जाते ही उसेक पूरे गैंग का पुलिस ने खात्मा कर दिया. गवली फिलहाल नागपुर जेल में अपने गुनाहों की सजा काट रहा है और अब उसकी उम्र भी हो चली है तो उसने सुप्रीम कोर्ट से रिहाई की गुहार लगाई है.

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