जम्मू एवं कश्मीर के अलगाववादी नेता मुहम्मद यासीन मलिक ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए प्रदेश में समग्र टाउनशिप का विरोध करते हुए उसे 'नफरत की बस्ती' करार दिया।
जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख ने बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'हम ऐसी नफरत की बस्ती को कभी मंजूरी नहीं देंगे और इसका पुरजोर विरोध करेंगे।' उन्होंने हालांकि कहा कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को अपने पूर्वजों की धरती पर लौटने का अधिकार है।
उन्होंने कहा, 'कश्मीरी पंडित हमारे देश का अभिन्न हिस्सा हैं। स्वतंत्रता का समर्थक हर नेता उनसे अपने घर वापस लौटने का अनुरोध करता है। वरिष्ठ हुर्रियत नेता सैयद अली गिलानी ने भी उनसे घर वापस आने की अपील की है।' मलिक ने कहा, 'जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कश्मीर में सत्ता की खातिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से निकाह किया है।
कश्मीरी पंडितों के तथाकथित समग्र टाउनशिप के लिए मुख्यमंत्री का गृहमंत्री को आश्वासन देना कश्मीर को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंकने की एक बड़ी साजिश है।' उन्होंने कहा कि राज्य का सांप्रदायिक सद्भाव व आपसी सह-अस्तित्व का अपना एक इतिहास रहा है।
उन्होंने कहा, 'सन् 1947 में भड़के सांप्रदायिक दंगों के समय कश्मीर घाटी में एक भी अल्पसंख्यक को छुआ तक नहीं गया, जबकि जम्मू में हजारों मुस्लिमों को मौत के घाट उतार दिया गया। मिश्रित संस्कृति का असली मायने तो यह है।' मलिक ने कहा कि कश्मीर घाटी में अभी भी 10 हजार से अधिक कश्मीरी पंडित मुसलानों के साथ रह रहे हैं।
उन्होंने कहा कि शहर के मध्य में पंडितों की दुकानें हैं और उनके ग्राहक मुसलमान हैं। क्या आप (सरकार) उन्हें भी उसी टाउनशिप में बसाएंगे, जो वास्तव में एक यहूदी बस्ती हो जाएगी। मलिक ने कहा कि सरकार के प्रस्ताव के गंभीर परिणाम होंगे और इस प्रस्ताव के खिलाफ उन्होंने 10 अप्रैल को शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन व हड़ताल का आह्वान किया।
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