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अब्दुल वहाब और सावित्री पाल को मिला 'गोल्ड विजनरी' अवॉर्ड, जानें ज्यूरी मेंबर ने उन्हें क्यों बताया करोड़ों में एक जोड़ी

मोहम्मद अब्दुल वहाब और सावित्री पाल SHIS (Southern Health Improvement Samity) फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं. दोनों ने बोट क्लीनिक के जरिए सुंदरबन के दूरदराज के द्वीपों में स्वास्थ्य सेवा पहुंचाई. उनकी कोशिशों से सुंदरबन के दूरदराजों में रहने वाले लोगों खासकर महिलाओं और बच्चों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाईं.

अब्दुल वहाब और सावित्री पाल को मिला 'गोल्ड विजनरी' अवॉर्ड, जानें ज्यूरी मेंबर ने उन्हें क्यों बताया करोड़ों में एक जोड़ी
नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने की दिशा में काम करने के लिए मोहम्मद अब्दुल वहाब और सावित्री पाल को NDTV ने  'Gold Visionary-The Real Hero Of India' अवॉर्ड से सम्मानित किया है. मोहम्मद अब्दुल वहाब और सावित्री पाल SHIS (Southern Health Improvement Samity) फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं. दोनों ने बोट क्लीनिक के जरिए सुंदरबन के दूरदराज के द्वीपों में स्वास्थ्य सेवा पहुंचाई. उनकी कोशिशों से सुंदरबन के दूरदराजों में रहने वाले लोगों खासकर महिलाओं और बच्चों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाईं. दोनों 4 दशकों से भी ज्यादा समय से ये काम करते आ रहे हैं. इस दौरान ज्यूरी मेंबर पू्र्व नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने मोहम्मद अब्दुल वहाब और सावित्री पाल की जोड़ी को करोड़ों की जोड़ी करार दिया है.

ज्यूरी मेंबर एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा, "भारत में 140 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं. ज्यादातर लोग कुछ पाने या हासिल करने की उम्मीद में कोई काम करते हैं. लेकिन मोहम्मद अब्दुल वहाब और सावित्री पाल साल दर साल लगातार सुंदरबन के लोगों की मदद कर रहे हैं. उनका त्याग, उनका परिश्रम और उनकी निस्वार्थ भावना से की गई सेवा की कोई तुलना नहीं हो सकती. ये जोड़ी लाखों में ही नहीं, बल्कि करोड़ों में एक है."

मोहम्मद अब्दुल वहाब और सावित्री पाल ने NDTV इंडियन ऑफ द ईयर अवॉर्ड्स 2024 में अपने काम के अनुभव शेयर किए हैं. मोहम्मद अब्दुल वहाब ने बताया, "मैंने लॉ से ग्रैजुएशन की पढ़ाई की है. सावित्री पाल भी अच्छी-खासी पढ़ी-लिखी हैं और संपन्न परिवार से आती हैं. जब हमने शुरुआत की, उससे पहले इस इलाके में लोग टीबी की बीमारी से जिंदगी की जंग हार रहे थे. हम दोनों ट्राइबल लोगों की मदद के लिए प्रतिबद्ध हैं. उस समय टीबी के लिए अच्छी और कारगर दवाइयों की कमी थी. तब 2 या 3 दवाएं ही थीं, जो हर किसी के लिए मार्केट में आसानी से उपलब्ध नहीं थीं. यहां तक कि आपको टीबी है या नहीं, इसके डायग्नोज के लिए भी पर्याप्त सुविधाओं की कमी थी. इसलिए हमने उनकी मदद के लिए काम करना शुरू किया. जो लोग अपने इलाज के लिए सुंदरबन से शहर नहीं जा सकते थे, हम उनके लिए बोट क्लिनिक के जरिए दवा लेकर उनके घर जाते थे."

अब्दुल वहाब बताते हैं, "सुंदरबन में लोग बड़ी चुनौतियों के बीच रहने को मजबूर हैं. वो बंगाल टाइगर, मगरमच्छ, सांपों, मच्छरों, बड़े-बड़े चूहों के बीच रहते हैं. इसलिए हम उनकी जिदंगी में कुछ मदद करना चाहते थे, ताकि उनकी जिंदगी कुछ आसान हो. हमने कई रिसर्च किए कि हम उनतक कैसे पहुंचे? हमें समझ आया कि लोग हमारे पास नहीं आएंगे, हमें उनके पास जाना पड़ेगा. इससे ही बोट क्लिनिक का कॉन्सेप्ट आया. अब तक हमने 100-1000 टीबी मरीजों को ठीक करने में मदद की है."

उन्होंने बताया, "हम सुंदरबन के हम घर में लैट्रिन यानी शौचालय का इंतजाम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. अब तक 100 से ज्यादा घरों में टॉयलेट की व्यवस्था करवा पाए हैं. अब हमारा फाउंडेशन पूरे सुंदरबन इलाके (2500 स्क्वॉयर किलोमीटर इलाके) को कवर कर रहा है. हमारे पास 5 मोटर बोट हैं. हर बोट में जरूरी दवाइयां, मेडिकल का सामान, डॉक्टरों का एक ग्रुप, नर्सों की टीम रहती है. ये बोट रोज मूव करती है."

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वहाब बताते हैं, "हम भारतीय हैं और हर मामले में कुछ खास हैं. पूरी दुनिया भारत और भारतीयों से कुछ न कुछ सीख सकती है. खासकर प्यार सीख सकती है. इंसान का इंसान के लिए प्यार, मानवता हमारे देश की संस्कृति में है. ये हमारी पहचान है. NDTV ने ये अवॉर्ड देकर हमें वास्तव में सुंदरबन के लोगों को सम्मानित किया है."

सावित्री पाल ने बांग्ला भाषा में अपने अनुभव शेयर किए. उन्होंने कहा, "सुंदरबन इलाका एक घना इलाका है. सुंदरबन के एक किनारे इंसानी बस्ती है और दूसरा किनारा बाघों, मगरमच्छों और बाकी जानवरों का घर है. वहां के लोग कई सुविधाओं से वंचित हैं. ऐसे इलाकों में आमतौर पर लोग रह नहीं सकते, लेकिन कुछ परिवार वहां रह रहे हैं.

सावित्री पाल बताती हैं, "हमारी कोशिश उन परिवार की मुश्किलों को कुछ हद तक कम करने की है. वहां के बच्चे पढ़ना-लिखना भी चाहते हैं, लेकिन उनके पास सुविधाएं नहीं हैं. हम कुछ हद तक ही सही, सुविधाएं उन तक पहुंचाने की कोशिश में हैं. 1980 से हमने शुरुआत की थी, ये कोशिश अब तक जारी है. उम्मीद है आगे भी जारी रहेगी."

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