प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले शुक्रवार को अपनी प्रयागराज यात्रा में आगामी महाकुंभ मेले को 'एकता का महाकुंभ' बताते हुए भगवान श्रीराम और निषादराज के बारे में बात की और 'सफाईकर्मियों' का विस्तृत उल्लेख करके सर्वजातीय हिंदू एकता की वकालत की. राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि शुक्रवार को प्रधानमंत्री की एक दिवसीय यात्रा और उसमें उनके द्वारा दिये गये संदेश ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की हिंदू एकता की वकालत को और मजबूत किया है. प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर सुधीर पंवार ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया, ''आरएसएस-भाजपा महाकुंभ को एक विशाल हिंदू एकता मंच के रूप में प्रदर्शित करना चाहते हैं और प्रधानमंत्री का भाषण वास्तव में उसी विचार का विस्तार था.''
'PM ने हमेशा मानवता की एकता का परिचय दिया'
उत्तर प्रदेश के होमगार्ड्स मंत्री धर्मवीर प्रजापति ने कहा, ''चाहे वह गंगा के किनारे मिट्टी के टीले को साफ करने के लिए कुदाल उठाना हो या फिर स्वच्छता अभियान शुरू करना हो, सफाई कर्मचारियों के पैर धोना हो या फिर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने वालों को सम्मानित करना हो, प्रधानमंत्री ने हमेशा मानवता की एकता का परिचय दिया है. उनके शुक्रवार के भाषण में भी यही भावना देखने को मिली.''
पीएम मोदी का यह दौरा प्रयागराज में गंगा के किनारे 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित होने वाले महाकुंभ से पहले हुआ. पंवार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को अपने पक्ष में करने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राजनीतिक योजना को झटका लगा था. यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने निषादों (अन्य पिछड़े वर्गों) और सफाईकर्मियों (दलितों) के दिल तक पहुंचने पर ध्यान केंद्रित किया.
पीएम मोदी ने प्रयागराज में 2019 के कुंभ में पांच सफाईकर्मियों के पैर धोए थे. हालांकि, मुख्यत: दलित वोट बैंक वाली बहुजन समाज पार्टी जैसे राजनीतिक दलों ने इसे दलितों से जुड़ने के लिए एक 'नौटंकी' करार दिया था. वहीं, भाजपा ने इसे हाशिये पर खड़े वर्गों तक पहुंचने की कोशिश बताते हुए इसका बचाव किया था.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक प्रधानमंत्री का भाषण अनिवार्य रूप से आरएसएस की हिंदू एकता की बात का विस्तार था. इस विचार ने इस साल की शुरुआत में हरियाणा चुनावों के दौरान तेजी पकड़ी थी और भाजपा ने विशेषज्ञों की धारणा को झुठलाते हुए आश्चर्यजनक कामयाबी हासिल की थी. तब से, भाजपा नेताओं ने हिंदू एकता के प्रभाव को बढ़ाने के लिए चतुराई से तैयार किए गए नारों का इस्तेमाल किया है. इस दौरान भाजपा और उसके गठबंधन के सहयोगियों ने हाल में सम्पन्न उत्तर प्रदेश के उपचुनावों के साथ-साथ महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन किया.
पंवार ने तर्क देते हुए कहा, ''साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने चुनाव जीतने के बावजूद अपने अन्य पिछड़े वर्ग और दलित वोट बैंक का बड़ा नुकसान देखा तो आरएसएस-भाजपा ने जातीय विभाजन को पाटने और हिंदुओं को एकजुट करने की अपनी योजनाओं की रफ्तार बढ़ा दी है.''
उन्होंने कहा, ''हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण उपचुनावों में जीत हासिल करने के बाद भाजपा-आरएसएस थिंक टैंक आक्रामक रूप से हिंदू एकता का प्रदर्शन करना चाहता है और इसके लिए प्रयागराज में अगले महीने होने जा रहे महाकुंभ से बेहतर और क्या हो सकता है. खासकर जातीय जनगणना के लिए विपक्ष के दबाव और फैजाबाद लोकसभा सीट की हार को देखते हुए भाजपा और संघ कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.''
दलित और अन्य पिछड़े वर्गों के वोट साल 2014 से देश भर में और उत्तर प्रदेश में भाजपा की अभूतपूर्व जीत का मुख्य आधार रहे हैं. प्रयागराज में मोदी के संदेश में मछुआरों और नाविकों के राजनीतिक रूप से प्रभावशाली निषाद समुदाय का उदारतापूर्वक उल्लेख शामिल था. मोदी ने प्रयागराज से लगभग 40 किलोमीटर दूर श्रृंगवेरपुर में निषादराज को गले लगाते हुए भगवान श्रीराम की मूर्ति का भी अनावरण किया.
आरएसएस के एक नेता ने कहा, ''मुझे लगता है कि आरएसएस ने हमेशा देश और लोगों के बीच एकता की वकालत की है और देश के प्रधानमंत्री भी इसी भावना की पैरवी करते रहे हैं. मैं इसे किसी एक चीज, समुदाय या घटना तक सीमित न रखते हुए सभी को एक साथ लाने वाला मानता हूं.''
मेरठ स्थित स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर मनोज कुमार त्रिपाठी ने कहा, ''मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की अपील को सामाजिक एकीकरण के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. यह रामायण के दिनों से चली आ रही परंपरा है मगर जातिगत गतिशीलता के कारण इसे भुला दिया गया.''
त्रिपाठी ने कहा, ''यदि आप इस एकता अभियान में राजनीति देखना चाहते हैं, तो आपको इस तथ्य को भी ध्यान में रखना होगा कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी अपने क्लासिक नारे 'जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर' को भूल गई है. अब वह जाति आधारित जनगणना की वकालत करने लगी है.'
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