
- एमपी के शहडोल में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) पद पर तैनात महिला जज ने इस्तीफा दे दिया है.
- चीफ जस्टिस को भेजे इस्तीफे में महिला जज ने अपने सीनियर और सिस्टम पर गंभीर आरोप लगाए.
- उनका आरोप है कि जिस जज ने उन्हें गंभीर रूप से परेशान-प्रताड़ित किया, उसे पुरस्कृत किया गया है.
मध्य प्रदेश के शहडोल में एक महिला सिविल जज ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने जिला जज को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का जज बनाए जाने के विरोध में इस्तीफा दिया है. महिला जज ने उन पर कदाचार और उत्पीड़न के आरोप लगाए थे. महिला जज और पांच अन्य न्यायिक अफसरों को बर्खास्त कर दिया गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के दखल पर बहाली हुई थी.
ये महिला जज शहडोल में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद पर तैनात हैं. उन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजे अपने इस्तीफे में आरोप लगाया है कि संवैधानिक अदालतों ने उस जिला जज को पुरस्कृत किया है, जिसने उन्हें गंभीर रूप से परेशान और प्रताड़ित किया.
2023 में इस महिला जज और पांच अन्य महिला न्यायिक अधिकारियों को असंतोषजनक परफॉर्मेंस का आरोप लगाकर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था. बाद में 1 अगस्त 2024 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की फुल बेंच ने दो जजों को छोड़कर बाकी चार महिला अधिकारियों को कुछ शर्तों के साथ बहाल कर दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट 28 फरवरी को कड़ा फैसला सुनाते हुए महिला जज की बर्खास्तगी को मनमाना व अवैध करार देकर उनकी बहाली करवाई.
महिला जज ने अब अपने इस्तीफे में कहा है कि जिस अधिकारी पर मैंने बड़ी हिम्मत के साथ दस्तावेज़ी तथ्यों के साथ सार्वजनिक रूप से आरोप लगाए थे, उसे हाईकोर्ट में जज के रूप में प्रमोशन देकर पुरस्कृत किया गया है. उन्होंने दावा किया कि उनसे स्पष्टीकरण तक नहीं मांगा गया. न कोई पूछताछ हुई, न नोटिस दिया गया. न कोई सुनवाई हुई और न ही कोई जवाबदेही तय की गई. उन्होंने कहा कि न्याय शब्द एक क्रूर मज़ाक बनकर रह गया है.
जज के खिलाफ बोलने के लिए लगातार प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाते हुए महिला जज ने कहा कि हाईकोर्ट जज के रूप में ये नियुक्ति न्यायपालिका की बेटियों के लिए क्या संदेश देती है. उन्होंने आरोप लगाया कि जो न्यायपालिका पारदर्शिता का उपदेश देती है, अपने ही सदनों में प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करने में भी विफल रही.
उन्होंने कहा कि मैं अदालत के एक अधिकारी के रूप में नहीं बल्कि उसकी चुप्पी की शिकार के रूप में इस्तीफा दे रही हूं. महिला जज ने आरोप लगाते हुए कहा कि जब आपने अपने ही एक अधिकारी की रक्षा करने से इनकार कर दिया था, अपने ही सिद्धांतों पर चलने से इनकार कर दिया था, न्याय करने से इनकार कर दिया था, तब तब नियम कहां थे, सम्मानजनक पारदर्शिता कहां थी? अगर ये आपकी अंतरात्मा को नहीं झकझोरता तो शायद सिस्टम की सड़ांध हमारी स्वीकारोक्ति से भी ज़्यादा गहरी हो चुकी है.
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