- मोदी सरकार ने भारत के एनर्जी मिक्स में नेचुरल गैस की हिस्सेदारी 2030 तक बढ़ाकर 15% करने का लक्ष्य रखा है.
- चिंतन रिसर्च के प्रेसिडेंट शिशिर प्रियदर्शी ने कहा कि नेचुरल गैस के नए स्रोत खोजने पर ध्यान देना होगा.
- उन्होंने कहा कि घरेलू सप्लाई बढ़ाने के अलावा ऐसे देश से आयात करना होगा, जो हर हालत में सप्लाई कर सके.
भारत के ऊर्जा उत्पादन (एनर्जी मिक्स) में नेचुरल गैस की हिस्सेदारी फिलहाल 6-7 फीसदी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2030 तक इसे बढ़ाकर 15 फीसदी करने का नया टारगेट रखा है. इस मसले पर चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के प्रेसिडेंट शिशिर प्रियदर्शी ने एनडीटीवी से बात करते हुए बताया कि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करते हुए किन बातों का ध्यान रखना होगा.
भारत के गैस विजन को लेकर चिंतन रिसर्च फाउंडेशन की तरफ से उच्च स्तरीय पॉलिसी डायलॉग का आयोजन गुरुवार को नई दिल्ली में किया गया. इस अवसर पर चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के प्रेसिडेंट शिशिर प्रियदर्शी ने एनडीटीवी से बात करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री मोदी का विजन है कि नेचुरल गैस फॉसिल फ्यूल से नॉन-फॉसिल फ्यूल की तरफ ट्रांजिशन का ब्रिज बन जाए. पीएम मोदी ने साल 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य तय किया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि भारत के एनर्जी मिक्स में क्लीन फ्यूल का इस्तेमाल बढ़े.
उन्होंने कहा कि भारत के एनर्जी मिक्स में नेचुरल गैस की हिस्सेदारी 6-7 फ़ीसदी से बढ़ाकर 15 फ़ीसदी करने का लक्ष्य बहुत ही महत्वाकांक्षी है. इसे प्राप्त करने के लिए नेचुरल गैस सेक्टर को 2030 तक 25 पर्सेंट की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि (CAGR) दर हासिल करना जरूरी है.
उन्होंने बताया कि इसके लिए दो स्तरों पर पहल जरूरी होगी. पहला, भारत के पास बड़े गैस रिजर्व हैं. हमें डोमेस्टिक सप्लाई बढ़ाने के लिए नई गैस के स्रोतों की खोज और एक्सप्लोरेशन पर निवेश बढ़ाना होगा. इसमें निजी सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.
उन्होंने कहा कि इसके लिए काम कर रही है. नीति आयोग के सदस्य और पूर्व कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने कहा है कि सरकार ऐसा रेगुलेटरी फ्रेमवर्क प्रदान करेगी, जिससे प्राइवेट सेक्टर इसमें शामिल हो सके.
उन्होंने बताया कि चिंतन रिसर्च फाउंडेशन ने नेचुरल गैस सेक्टर में ग्रोथ पर एक पॉलिसी ब्रीफ बनाया है, जिसमें हमने कहा है कि इस सेक्टर में विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए करीब एक बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करना जरूरी होगा. नए एक्सप्लोरेशन पर और देश में पाइपलाइनों के विस्तार पर हमें काफी खर्च करना होगा. इसमें प्राइवेट सेक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.
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