- माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से लोन लेकर रिकवरी एजेंटों के दबाव में कई लोग आत्महत्या कर चुके हैं
- बिहार में माइक्रो फाइनेंस लोन के मामले देश में सबसे अधिक हैं, जहां दो करोड़ से ज्यादा लोन एकाउंट सक्रिय हैं
- बिहार में फाइनेंस कंपनियों का कुल बकाया कर्ज लगभग सत्तावन हजार करोड़ रुपए है, जो देश में सबसे बड़ा आंकड़ा है
माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से लोन लेने के बाद रिकवरी एजेंट के दबाव में आकर आत्महत्या का मामला इन दिनों बढ़ता जा रहा है. हाल ही में समस्तीपुर में रिकवरी एजेंट से तंग आकर 35 साल की गुड़िया देवी ने कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली. अपने घर से दूर राज मिस्त्री का काम करने वाले गुड़िया के पति पिंटू गोस्वामी का आरोप है कि माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के रिकवरी एजेंट के दबाव में आकर उसकी पत्नी ने आत्महत्या की है.
बताया जाता है कि गुड़िया देवी ने 4 अलग-अलग माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से लोन लिया था, हर महीने करीब साढ़े 12 हजार रुपए किश्त जमा करना होता था. बुधवार को गुड़िया ने अपने पति से ढाई हजार रुपया भेजने को कहा था, लेकिन पिंटू रुपये नहीं भेज पाए और गुड़िया ने आत्महत्या कर ली.

माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से लोन लेने के मामले में बिहार अव्वल
माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन साधन (Sa - Dhan) के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 2 करोड़ 2 लाख से अधिक लोन एकाउंट हैं. यह पूरे देश में सबसे अधिक है. बिहार के लोगों पर माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का 57 हजार 712 करोड़ रुपए का कर्ज है. यह भी देश में सबसे ज्यादा है. बिहार में प्रति लोन एकाउंट 28 हजार 525 रुपए देनदारी है. माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से लोन लेने वाले देश के टॉप 10 जिलों में 5 बिहार के हैं. बिहार के पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जैसे जिले सबसे अधिक लोन लेने वाले जिलों में शुमार हैं.
देश में सबसे ज्यादा लोन अकाउंट वाले 5 राज्य
- बिहार - 2 करोड़ 2 लाख
- तमिलनाडु - 1 करोड़ 51 लाख
- उत्तर प्रदेश - 1 करोड़ 51 लाख
- कर्नाटक - 1 करोड़ 26 लाख
- पश्चिम बंगाल - 1 करोड़ 22 लाख
सबसे ज्यादा बकाया लोन वाले राज्य
- बिहार - 57 हजार 713 करोड़
- तमिलनाडु - 46 हजार 883 करोड़
- उत्तर प्रदेश - 41 हजार 774 करोड़
- पश्चिम बंगाल - 36 हजार 730 करोड़
- कर्नाटक - 35 हजार 351 करोड़
एजेंट पहले लोन के लिए लुभाते, फिर रिकवरी एजेंट धमकी देते
बिहार में इन माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के खिलाफ आवाज उठाने वाली एपवा की अध्यक्ष मीना तिवारी कहती हैं, "माइक्रो फाइनेंस कम्पनियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. यह कंपनियां लोन देते वक्त गरीब महिलाओं को रोजगार शुरू करने का लालच देती हैं लेकिन यह राशि इतनी कम होती है कि इससे कोई रोजगार नहीं किया जा सकता है. बाद में इन्हीं कंपनियों के रिकवरी एजेंट इन महिलाओं को परेशान करते हैं. दबाव बनाते हैं, जिसकी वजह से वे आत्महत्या तक को मजबूर हो जाती हैं."

डेढ़ साल में करीब बीस आत्महत्याएं -
- 2 मार्च को दरभंगा की रीना देवी ने कर्ज के दबाव में आत्महत्या की
- 1 अप्रैल को सहरसा के देवानंद पासवान ने आत्महत्या की
- 6 अप्रैल को बेगूसराय की सुधा देवी ने कर्ज के कारण आत्महत्या की
- 30 मई को बेगूसराय की धर्मशीला देवी ने आत्महत्या कर ली
- 14 अगस्त को पटना के पालीगंज में किसान सियाराम साह ने आत्महत्या की
- 15 नवंबर सारण में रिंकी देवी नामक महिला ने आत्महत्या की
- 15 दिसंबर को मुजफ्फरपुर में अमरनाथ राम ने अपने 3 बच्चों के साथ आत्महत्या कर ली.
- 17 दिसंबर को मुंगेर की गुड़िया देवी ने आत्महत्या कर ली.
इन सभी आत्महत्याओं के पीछे लोन, रिकवरी एजेंट का दबाव जैसे कारण शामिल थे. माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के दबाव में आकर सिर्फ लोन लेने वालों ने नहीं बल्कि कर्मियों ने भी आत्महत्या की है. पटना में मार्च के महीने में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के दो कर्मचारियों ने आत्महत्या की. उनमें से एक कर्मी अनन्या ने अपने हाथ पर लिखा था, "कंपनी अच्छी नहीं है, कोई मरता है तो किसी को फर्क नहीं पड़ता है."
अब EOU कसेगी इन कंपनियों लगाम
मुजफ्फरपुर की घटना के बाद सरकार ने EOU को इन कम्पनियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. गृह मंत्री सम्राट चौधरी ने गुंडा बैंक पर कार्रवाई के निर्देश दिए थे. डीजीपी विनय कुमार ने कहा कि बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे माइक्रो फाइनेंस कंपनियों पर रंगदारी का मुकदमा होगा. साथ ही उन्होंने इन कम्पनियों से सारा रिकॉर्ड मांगा है. समस्तीपुर समेत अन्य जिलों में इन बैंकों पर कार्रवाई भी शुरू हो गई है.
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