इशरत जहां (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सबसे अहम सवाल यही है कि आख़िर इशरत मामले में सरकार को दो-दो एफिडेविट दर्ज करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? और सरकार ने दूसरा एफिडेविट किस बिना पर तैयार किया। इस पर कांग्रेस की सफ़ाई अलग है और गृह मंत्रालय की राय अलग।
इशरत केस की पुरानी फाइलें देखने पर मालूम होता है कि इशरत पर जो दूसरा एफिडेविट है, उससे चिदंबरम भी परिचित थे और जीके पिल्लई भी।
23 सितंबर 2009 को ये दूसरा एफिडेविट पिल्लई ने चिदंबरम के पास भेजा। चिदंबरम ने 24 सितंबर 2009 को फाइल पर लिखा - संशोधित। कृपया अदालत भेजे जाने से पहले अंतिम कॉपी दिखाएं उसी दिन गृह सचिव ने लिखा - अंतिम कॉपी गृह मंत्री को दिखाई गई। इसे जानकारी के लिए लॉ सेक्रेटरी और एटॉर्नी जनरल को दिखाएं।
एटॉर्नी जनरल दिल्ली में न होने की वजह से एफ़िडेविट नहीं देख सके। गृह मंत्रालय का कहना है कि ये दूसरा हलफ़नामा चिदंबरम ने अपनी राय से तैयार किया, राज्यों से आई सूचनाओं को दरकिनार किया। सूत्रों के मुताबिक - पहले हलफ़नामे में महाराष्ट्र, गुजरात और आईबी के इनपुट थे। दूसरे हलफ़नामे में चिदंबरम ने हर रिपोर्ट नकार दी और कहा कि कोई सबूत नहीं है। अपने अफ़सरों को भरोसे में लिए बिना पूर्व गृह मंत्री ने पूरे हलफ़नामे को बदल डाला।
उन्होंने सब को क्लीन चिट दे दी और आईबी, रॉ और दूसरी एजेंसियों के इनपुट किनारे रख दिए। पिल्लई ने कोई एतराज़ नहीं किया और अवर सचिव को दूसरे हलफ़नामे पर दस्तख़त करने पड़े लेकिन पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम मानते हैं कि उन्होंने जो किया, वो सही किया। उनके साथ खड़ी कांग्रेस ने हलफ़नामा बदलने की बाकायदा वजह बताई है।
इसके मुताबिक 6 अगस्त, 2009 को पहला हलफ़नामा दिया गया जब तक लगता रहा कि इशरत लश्कर की आतंकी है और उसके साथ हुई मुठभेड़ वाकई असली थी। 7 सितंबर 2009 को एसपी तमांग की मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने कहा - मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी और इशरत के लश्कर आतंकी होने का सबूत नहीं है। इस नतीजे की रोशनी में 29 सितंबर 2009 को हलफ़नामा बदला गया। लेकिन जिस तरह इस मामले पर राजनीति तीखी हो रही है, उससे जाहिर है कि अफ़सरों की राय पीछे छूटी हुई है, राजनीतिक दखलंदाज़ी का सवाल बड़ा हो गया है।
इशरत केस की पुरानी फाइलें देखने पर मालूम होता है कि इशरत पर जो दूसरा एफिडेविट है, उससे चिदंबरम भी परिचित थे और जीके पिल्लई भी।
23 सितंबर 2009 को ये दूसरा एफिडेविट पिल्लई ने चिदंबरम के पास भेजा। चिदंबरम ने 24 सितंबर 2009 को फाइल पर लिखा - संशोधित। कृपया अदालत भेजे जाने से पहले अंतिम कॉपी दिखाएं उसी दिन गृह सचिव ने लिखा - अंतिम कॉपी गृह मंत्री को दिखाई गई। इसे जानकारी के लिए लॉ सेक्रेटरी और एटॉर्नी जनरल को दिखाएं।
एटॉर्नी जनरल दिल्ली में न होने की वजह से एफ़िडेविट नहीं देख सके। गृह मंत्रालय का कहना है कि ये दूसरा हलफ़नामा चिदंबरम ने अपनी राय से तैयार किया, राज्यों से आई सूचनाओं को दरकिनार किया। सूत्रों के मुताबिक - पहले हलफ़नामे में महाराष्ट्र, गुजरात और आईबी के इनपुट थे। दूसरे हलफ़नामे में चिदंबरम ने हर रिपोर्ट नकार दी और कहा कि कोई सबूत नहीं है। अपने अफ़सरों को भरोसे में लिए बिना पूर्व गृह मंत्री ने पूरे हलफ़नामे को बदल डाला।
उन्होंने सब को क्लीन चिट दे दी और आईबी, रॉ और दूसरी एजेंसियों के इनपुट किनारे रख दिए। पिल्लई ने कोई एतराज़ नहीं किया और अवर सचिव को दूसरे हलफ़नामे पर दस्तख़त करने पड़े लेकिन पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम मानते हैं कि उन्होंने जो किया, वो सही किया। उनके साथ खड़ी कांग्रेस ने हलफ़नामा बदलने की बाकायदा वजह बताई है।
इसके मुताबिक 6 अगस्त, 2009 को पहला हलफ़नामा दिया गया जब तक लगता रहा कि इशरत लश्कर की आतंकी है और उसके साथ हुई मुठभेड़ वाकई असली थी। 7 सितंबर 2009 को एसपी तमांग की मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने कहा - मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी और इशरत के लश्कर आतंकी होने का सबूत नहीं है। इस नतीजे की रोशनी में 29 सितंबर 2009 को हलफ़नामा बदला गया। लेकिन जिस तरह इस मामले पर राजनीति तीखी हो रही है, उससे जाहिर है कि अफ़सरों की राय पीछे छूटी हुई है, राजनीतिक दखलंदाज़ी का सवाल बड़ा हो गया है।
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