नई दिल्ली:
एक न्यायिक प्रणाली, संविधान, दंड संहिता, जेलों और कई सशस्त्र सैनिकों की 'बटालियन': मथुरा के जवाहर पार्क से बरामद दस्तावेजों में पता चलता है कि कैसे 260 एकड़ क्षेत्र में वास्तव में एक गणराज्य चलाया जा रहा था, जहां अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान पुलिस और करीब 3,000 कब्जेधारियों के बीच हुए भीषण संघर्ष में 24 लोगों की जान चली गई।
जवाहर पार्क से पुलिस को बरामद और NDTV के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह के तहत अतिक्रमणकारियों का नेतृत्व करने वाले शख्स ने कैंप के निवासियों को मारने की योजना बना रखी थी, ताकि पूरा इल्जाम पुलिस पर लगे। यहां तक की उसने गोला-बारूद की खरीद तक की थी। साथ ही यादव ने यूपी पुलिस के इस्तेमाल किए गए हथियार भी जमा कर रखे थे। पुलिस कार्रवाई की स्थिति में अपने लोगों को मारकर पुलिस को ज़िम्मेदार ठहराना मकसद था।
पुलिस अधिकारियों ने NDTV को बताया कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे जिम्मेदार रामवृक्ष यादव की कैंप में एक निजी सेना थी, जोकि इकाइयों में विभाजित थी, जिनका रोजाना सुबह और शाम रोल कॉल का आयोजन किया जाता था।
और कैंप में मौजूद इन करीब 3,000 लोगों को देख, ऐसा लगता है, मानो इन्हें यहां रहने के लिए मजबूर किया गया। हर निवासी का एक रिकॉर्ड और नंबर था। उनके रिहायशी पते, फोन नंबर, तस्वीर और अन्य सभी जानकारियां सावधानीपूर्वक बनाकर रखी गई थीं।
मथुरा जोन के महानिरीक्षक सी मिश्रा ने कहा कि 'दस्तावेजों से साफ है कि लोगों को कैंप से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। कैंप से बाहर जाने वालों को एग्जिट और एंट्री पास दिए जाते थे।' पुलिस का कहना है कि बाहर जाने वालों को वापसी के लिए रिश्तेदारों या परिचितों को बतौर ज़मानत यहां लाना होता था।
पुलिस को यहां कुछ 'नक्सलियों की छाप' का भी संदेह है। मिश्रा ने कहा कि यह एक साधारण धार्मिक अतिवाद नहीं है। हम यहां नक्सलियों की छाप के बाबत भी जांच कर रहे हैं।
इसके अलावा, लोकल खुफिया यूनिट द्वारा भी यहां अवैध अतिक्रमणकारियों द्वारा अनाधिकृत रूप से हथियार लाए जाने के बाबत कई रिपोर्ट दायर की गई थीं।
जवाहर पार्क से पुलिस को बरामद और NDTV के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह के तहत अतिक्रमणकारियों का नेतृत्व करने वाले शख्स ने कैंप के निवासियों को मारने की योजना बना रखी थी, ताकि पूरा इल्जाम पुलिस पर लगे। यहां तक की उसने गोला-बारूद की खरीद तक की थी। साथ ही यादव ने यूपी पुलिस के इस्तेमाल किए गए हथियार भी जमा कर रखे थे। पुलिस कार्रवाई की स्थिति में अपने लोगों को मारकर पुलिस को ज़िम्मेदार ठहराना मकसद था।
पुलिस अधिकारियों ने NDTV को बताया कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे जिम्मेदार रामवृक्ष यादव की कैंप में एक निजी सेना थी, जोकि इकाइयों में विभाजित थी, जिनका रोजाना सुबह और शाम रोल कॉल का आयोजन किया जाता था।
और कैंप में मौजूद इन करीब 3,000 लोगों को देख, ऐसा लगता है, मानो इन्हें यहां रहने के लिए मजबूर किया गया। हर निवासी का एक रिकॉर्ड और नंबर था। उनके रिहायशी पते, फोन नंबर, तस्वीर और अन्य सभी जानकारियां सावधानीपूर्वक बनाकर रखी गई थीं।
मथुरा जोन के महानिरीक्षक सी मिश्रा ने कहा कि 'दस्तावेजों से साफ है कि लोगों को कैंप से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। कैंप से बाहर जाने वालों को एग्जिट और एंट्री पास दिए जाते थे।' पुलिस का कहना है कि बाहर जाने वालों को वापसी के लिए रिश्तेदारों या परिचितों को बतौर ज़मानत यहां लाना होता था।
पुलिस को यहां कुछ 'नक्सलियों की छाप' का भी संदेह है। मिश्रा ने कहा कि यह एक साधारण धार्मिक अतिवाद नहीं है। हम यहां नक्सलियों की छाप के बाबत भी जांच कर रहे हैं।
इसके अलावा, लोकल खुफिया यूनिट द्वारा भी यहां अवैध अतिक्रमणकारियों द्वारा अनाधिकृत रूप से हथियार लाए जाने के बाबत कई रिपोर्ट दायर की गई थीं।
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