गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे को लेकर विशेष जांच दल (SIT) ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट दाखिल कर दी है. इस रिपोर्ट में कई चौकाने वाले खुलासे किए गए हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोरबी में जिस दिन पुल टूटा उससे पहले ही पुल से बांधी गई 22 तारें टूट चुकी थीं. SIT ने अपनी जांच में ये भी पाया कि पुल के नवीनीकरण कार्य के दौरान पुराने सस्पेंडर्स (स्टील की छड़ें जो केबल को प्लेटफॉर्म डेक से जोड़ती हैं) को नए सस्पेंडर्स के साथ वेल्ड कर दिया गया था. जिसका असर सस्पेंडर्स पर पड़ा था. इस प्रकार के पुलों में भार वहन करने के लिए सिंगल रॉड सस्पेंडर्स होने चाहिए.
SIT की प्रारंभिक जांच में पाया है कि केबल पर लगभग आधे तारों पर जंग लगना और पुराने सस्पेंडर्स को नये के साथ वेल्डिंग करना उन कुछ प्रमुख खामियों में शामिल थे जिसके कारण हादसा हुआ था. इस घटना में 135 लोगों की मौत हुई थी.
मच्छू नदी पर ब्रिटिश काल के पुल के संचालन और रखरखाव के लिए अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड (ओरेवा ग्रुप) जिम्मेदार था. SIT ने अपनी रिपोर्ट में पुल की मरम्मत, रखरखाव और संचालन में कई खामियां भी पाईं हैं. आईएएस अधिकारी राजकुमार बेनीवाल, आईपीएस अधिकारी सुभाष त्रिवेदी, राज्य सड़क एवं भवन विभाग के एक सचिव एवं मुख्य अभियंता और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के एक प्रोफेसर एसआईटी के सदस्य थे.
SIT ने पाया कि मच्छू नदी पर 1887 में तत्कालीन शासकों द्वारा बनाए गए पुल के दो मुख्य केबल में से एक केबल में जंग की दिक्कत थी और हो सकत है कि इसके लगभग आधे तार 30 अक्टूबर की शाम को केबल टूटने से पहले ही टूट चुके हों. SIT के अनुसार नदी के ऊपर की ओर की मुख्य केबल टूट गई, जिससे यह हादसा हुआ.
गौरतलब है कि मोरबी नगर पालिका ने सामान्य बोर्ड की मंजूरी के बिना ओरेवा ग्रुप (अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड) को पुल के रखरखाव और संचालन का ठेका दिया था. उसने पुल को मार्च 2022 में नवीनीकरण के लिए बंद कर दिया था और 26 अक्टूबर को बिना किसी निरीक्षण के इसे खोल दिया था. SIT के अनुसार, पुल टूटने के समय पुल पर लगभग 300 व्यक्ति थे, यह संख्या पुल की भार वहन क्षमता से 'कहीं अधिक' थी. हालांकि, इसमें कहा गया है कि पुल की वास्तविक क्षमता की पुष्टि प्रयोगशाला रिपोर्ट से होगी.
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