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कौन थीं मणिबेन पटेल? बाबरी मस्जिद बनाम सोमनाथ मंदिर पर नेहरू, पटेल की बातचीत का किताब में किया था खुलासा

Babri Masjid: प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच बाबरी मस्जिद और सोमनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण को लेकर हुई बातचीत का उल्लेख मणिबेन पटेल की किताब में है. इसका राजनाथ सिंह ने जिक्र किया है.

कौन थीं मणिबेन पटेल? बाबरी मस्जिद बनाम सोमनाथ मंदिर पर नेहरू, पटेल की बातचीत का किताब में किया था खुलासा
Babri Masjid anniversary
नई दिल्ली:

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुजरात में एक कार्यक्रम के दौरान बाबरी मस्जिद को लेकर जो खुलासा किया, उससे सियासी भूचाल आ गया है. राजनाथ सिंह ने कहा, पंडित नेहरू आजादी के बाद बाबरी मस्जिद का निर्माण सरकारी खर्च पर कराना चाहते थे. उन्होंने सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल की किताब का जिक्र किया है. द इनसाइडर ऑफ सरदार पटेल; द डायरी ऑफ मणिबेन पटेल 1936-1950 में बाबरी मस्जिद और सोमनाथ मंदिर कौ लेकर नेहरू और पटेल के बीच बातचीत का अंश है.  इसमें लिखा है, सरदार पटेल ने नेहरू को स्पष्ट तौर पर बताया था कि सरकार किसी मस्जिद के निर्माण पर कुछ भी खर्च नहीं कर सकती. उन्होंने नेहरू को बताया था कि सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का मुद्दा अलग है, क्योंकि इसके लिए एक ट्रस्ट का गठन कर 30 लाख रुपये जुटाए गए थे. पटेल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को बताया था कि इसमें कहीं भी सरकारी खर्च नहीं हुआ. ये बात सुनकर नेहरू खामोश हो गए. 20 सितंबर 1950 की ये घटना है. 

आजीवन अविवाहित रहीं मणिबेन

मणिबेन पटेल सरदार वल्लभभाई पटेल की बेटी थीं. वो आजीवन अविवाहित रहीं. उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और सांसद भी रहीं. मणिबेन महात्मा गांधी से प्रभावित थीं और उनके अहमदाबाद साबरमती आश्रम में काफी दिनों तक काम किया. उन्होंने बॉंबे के क्वीन मैरी हाईस्कूल से पढ़ाई के बाद राष्ट्रीय विद्यापीठ से ग्रेजुएशन किया था. मणिबेन ने 1924 में बोरसाद आंदोलन में भाग लिया और नेहरू-ब्रिटिश हुकूमत के भारी टैक्स का विरोध किया.

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बारदोली सत्याग्रह भी हिस्सा लिया

बारदोली सत्याग्रह में भी उन्होंने हिस्सा लिया और किसानों पर भारी टैक्स के विरोध में महिलाओं के गुट की अगुवाई की. असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह में भी मणिबेन ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. वो 1942 से 1945 तक यरवदा सेंट्रल जेल में रहीं. उन्होंने पिता सरदार पटेल की भी आखिरी दिनों में खूब सेवा की. साथ ही आजादी के संघर्ष और उसके बाद पिता की जिंदगी के अनुभवों और घटनाओं को लेकर किताब द इनसाइडर ऑफ सरदार पटेल लिखी.

कई बार लोकसभा चुनाव जीता, जनता पार्टी में भी रहीं

 मणिबेन ने 1952 आम चुनाव में खेड़ा लोकसभा और फिर 1957 में आणंद लोकसभा सीट से जीतीं. उन्होंने 1977 में मेहसाणा लोकसभा सीट से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था. जब कांग्रेस दो हिस्सों में बंटी तो वो इंदिरा कांग्रेस की बजाय कांग्रेस आर्गेनाइजेशन में बनी रहीं.1973 में साबरकांठा लोकसभा सीट से उस पार्टी से चुनाव जीता.

सरदार पटेल की भरोसेमंद रहीं

सरदार पटेल मनिबेन पर बहुत भरोसा करते थे और वो पिता की निजी सचिव जैसे काम करती थीं. आजादी के बाद वो पिता के साथ दिल्ली में रहने लगीं. गांधी की तरह सादगी अपनाते हुए वो जिंदगी भर खादी के कपड़े पहनती थीं और तीसरी श्रेणी में रेल यात्रा करती थीं. सरदार पटेल की मृत्यु के बाद वो अहमदाबाद में अपने रिश्तेदारों के यहां रहने लगीं और फिर सामाजिक संस्थाओं के ट्रस्टी के तौर पर काम करती रहीं.
 

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