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This Article is From Sep 25, 2020

महाराष्‍ट्र: पालघर जिले में बढ़े कुपोषण के मामले, एक परिवार ने कहा, 'हम भूखा रह लेते हैं ताक‍ि बच्‍चे खा सकें'

मुंबई से करीब 130 किमी दूर पालघर जिले के तरालपाडा गांव में रहते हैं. यह आदिवासी एरिया है और इस गांव के करीब 90 फीसदी लोग नजदीक ठाणे और भिवंडी में काम करते हैं. कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन के कारण लगभग सभी लोग घर तक सीमित हो कर रह गए हैं.

महाराष्‍ट्र: पालघर जिले में बढ़े कुपोषण के मामले, एक परिवार ने कहा, 'हम भूखा रह लेते हैं ताक‍ि बच्‍चे खा सकें'
कोरोना वायरस की महामारी के बीच पालघर जिले में कुपोषण के मामले बढ़े हैं
मुंंबई:

उमेश की उम्र तीन साल है लेकिन उसका वजन एक साल के बच्‍चे के ही बराबर है. 8 KG के वजन के लिहाज से वह अपनी उम्र के आदर्श वजन से करीब चार किलो कम है. उसकी ऊंचाई है 84 सेंटीमीटर जो उसकी उम्र के लिहाज से 6.6 फीसदी कम है. चूंकि कोरोना महामारी के कारण इस समय स्‍कूल बंद है, ऐसे में उसके 9 वर्षीय भाई को मिडडे मील भी नहीं मिल रहा. ऐसे में मां प्रमिला भांबरे परिवार के एक और सदस्‍य का पेट भरने को लेकर चिंता में हैं. प्रमिला कहती हैं, 'अब हम चार लोग हैं. इन सभी का पेट भरना मुश्किल होता जा रहा है. छोटे बेटे पर ज्‍यादा ध्‍यान देने की जरूरत है, वह अंडरवेट है ऐसे में उसके स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर चिंतित हूं.' नजदीक के भिवंडी में प्रवासी मजदूर के रूप में काम करने वाले प्रमिला और उनके पति अशोक भांबरे ने यह दिन बेहद चिंता और तनाव देने वाले हैं.

लॉकडाउन का असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर, लगभग 12 लाख बच्चे कुपोषण की चपेट में

वे मुंबई से करीब 130 किमी दूर पालघर जिले के तरालपाडा गांव में रहते हैं. यह आदिवासी एरिया है और इस गांव के करीब 90 फीसदी लोग नजदीक ठाणे और भिवंडी में काम करते हैं. कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन के कारण लगभग सभी लोग घर तक सीमित हो कर रह गए हैं. हालांकि सरकार ने चरणबद्ध तरीके से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू कर दी लेकिन केतकरी कम्‍युनिटी से संबंधित गांव के लोगों को अभी भी काम के लिए मशक्‍कत करनी पड़ रही है. प्रमिला के गांव से कुछ ही दूर रूपेश और रूपाली रहते हैं, उनके 13 माह के जुड़वां बच्‍चे हैं लेकिन मानो इनकी ग्रोथ भी रुककर रह गई है. दोनों ही बच्‍चे अंडरवेट हैं. ये कुपोषित हैं, कारण यह है कि इन्‍हें खाने को केवल सूखा चावल मिलता है. 

बच्‍चों की दादी जय तराल कहती हैं, 'हमारे पास पैसा नहीं है, हम सब्जियों का खर्च वहन नहीं कर सकते.' परिवार ने इन बच्‍चों को मिलाकर कुछ आठ सदस्‍य हैं, उनका बेटा कंस्‍ट्रक्‍शन साइट पर काम करता था लेकिन लॉकडाउन के कारण काम नहीं है. उनके बेटी की बेटी कक्षा 7 में है, स्‍कूल जाती थी तो वहां से चावल, दाल और सब्‍जी खाने को मिल जाती थी लेकिन अभी स्‍कूल बंद चल रहे हैं. दादी जय तराल कहती है, 'इन बच्‍चों को दो वक्‍त का खाना मिल जाए, इसके लिए अब बड़े लोग टाइम भूखा रह लेते हैं.'  महिला और बाल विकास विभाग के अनुसार, कुषोषण और अंडरवेट बच्‍चों होना पालघर में बेहद आम है, यह महाराष्‍ट्र के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से है, लेकिन लॉकडाउन के कारण कुपोषण के मामले 2 फीसदी बढ़ गए हैं. विभाग के अनुसार, पालघर जिले में सीवियर और मॉडरेट (गंभीर और तीव्र) कुषोषण के मामले अप्रैल में 2399 थे जो जून में 2459 तक पहुंच गए है. मामलों में करीब ढाई फीसदी का इजाफा हुआ है जो चिंता की बात है.

लॉकडाउन से पालघर में बढ़ा बच्चों में कुपोषण

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