संसद में 'भ्रष्ट', 'जुमलाजीवी' जैसे शब्दों पर लगा बैन, विपक्षी सांसद बोले- बुनियादी शब्दों के इस्तेमाल की भी मंजूरी नहीं

संसद के सदस्य कई बार सदन में ऐसे शब्दों, वाक्यों या अभिव्यक्ति का इस्तेमाल कर जाते हैं जिन्हें बाद में सभापति या अध्यक्ष के आदेश से रिकॉर्ड या कार्यवाही से बाहर निकाल दिया जाता है.

नई दिल्ली:

लोकसभा और राज्यसभा में सदन की कार्यवाही के दौरान अब बहुत सारे शब्दों का इस्तेमाल करना ग़लत और असंसदीय माना जाएगा. और इन चुनिंदा शब्दों को सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं किया जाएगा. लोकसभा सचिवालय ने असंसदीय शब्द 2021 के नाम से ऐसे शब्दों और वाक्यों की सूची तैयार की है. और इसे सारे सांसदों को भेजा गया है. विपक्षी सासंद इसकी आलोचना कर रहे हैं. नए नियमों के मुताबिक गद्दार, घड़ियाली आंसू, जयचंद, शकुनी, भ्रष्ट जैसे कई शब्दों और मुहावरों पर रोक लगा दी गई है.

टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि मैं इन शब्दों का इस्तेमाल करूंगा, आप मुझे निलंबित कर दीजिए. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा है, 'कुछ ही दिनों में संसद का सत्र शुरू होने वाला है. सांसदों पर पाबंदी लगाने वाला आदेश जारी किया गया है. अब हमें संसद में भाषण देते समय इन बुनियादी शब्दों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. शर्म आनी चाहिए, दुर्व्यवहार किया, धोखा दिया, भ्रष्ट, पाखंड, अक्षम. मैं इन शब्दों का इस्तेमाल करूंगा. मुझे निलंबित कर दीजिए. लोकतंत्र के लिए लड़ाई लडूंगा.'

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इनके अलावा टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी ट्वीट करते हुए लिखा है, 'आपके कहने का यह मतलब है कि अब मैं लोकसभा में यह भी नहीं बता सकती कि हिंदुस्तानियों को एक अक्षम सरकार ने कैसे धोखा दिया है, जिन्हें अपनी हिपोक्रेसी पर शर्म आनी चाहिए?'

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कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए लिखा है, 'मोदी सरकार की असलियत बताने के लिए विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी शब्दों को अब 'असंसदीय' माना जाएगा. अब आगे क्या विषगुरु?'

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बता दें, संसद के सदस्य कई बार सदन में ऐसे शब्दों, वाक्यों या अभिव्यक्ति का इस्तेमाल कर जाते हैं जिन्हें बाद में सभापति या अध्यक्ष के आदेश से रिकॉर्ड या कार्यवाही से बाहर निकाल दिया जाता है. लोकसभा में कामकाज की प्रक्रिया एवं आचार के नियम 380 के मुताबिक, ‘अगर अध्यक्ष को लगता है कि चर्चा के दौरान अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वे सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकते हैं.'

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वहीं, नियम 381 के अनुसार, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे चिन्हित करने के बाद कार्यवाही में एक नोट इस तरह से डाला जाएगा कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक इसे हटाया गया.