
योग को आत्मा और शरीर के मिलन का विज्ञान कहा जाता है, पर भोपाल के योग केंद्रों में न आत्मा है, न शरीर. सरकारी फाइलों में योग आज भी पद्मासन में है, मगर ज़मीनी सच्चाई में वो शवासन से बाहर नहीं आ पाया है. भोपाल में जहां सांसें कभी जहर बनी थीं, वहां आज भी योग से सेहत बनाने की आस बस योजनाओं के ध्यान में गुम है. योग दिवस आता है जाता है, मगर पीड़ितों की उम्मीद वहीं खड़ी रहती है जैसे गैस फैलने के बाद शहर में सन्नाटा खड़ा था.
योग केंद्रों में हो रही शादियां
मध्य प्रदेश में तीन साल पहले योग आयोग बना. समितियां बनीं. समितियों के ऊपर भी समितियां बनीं, लेकिन जब ज़मीन पर योग केंद्र ढूंढने निकलो तो ऐसा लगता है जैसे योजना ने खुद ‘शवासन' ले लिया हो. जिन केंद्रों में योग होना था, वहां शादियां हो रही हैं. समितियां कागज़ पर सक्रिय हैं. फाइलें पद्मासन में हैं. योग से शरीर तो लचीला हो जाता है, पर व्यवस्था की रीढ़ में जैसे अब भी अकड़ बनी हुई है क्योंकि लोगों को योग कराने के लिए 3 साल पहले योग आयोग तो बन गया, बस बजट गायब हो गया.
विभाग में विशेषज्ञ, स्थायी शिक्षक तक नहीं
योग आयोग का दावा है कि पूरे प्रदेश में योग समितियों का जाल बिछ चुका है. 52 जिलों में जिला समितियां हैं, 313 विकास खंडों में खंड समितियां हैं. शहरी वार्ड से लेकर ग्रामीण पंचायतों तक योग का विस्तार हो चुका है. लेकिन सवाल है कि इन समितियों के योग केंद्र हैं कहां? वैसे आयुष विभाग के तहत राज्य में 562 हेल्थ वेलनेस सेंटर हैं, जहां 8000 प्रति माह या 250 रुपये प्रति घंटे की दर पर एक स्थानीय व्यक्ति को इंस्ट्रक्टर बनाया गया है. लेकिन विभाग में कोई विशेषज्ञ या स्थाई शिक्षक नहीं है. सरकारी रिकॉर्ड में मुफ्त योग कक्षाएं चल रही हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत बताती है कि ये सब महज़ कागज़ी चटाई पर बैठा स्वप्न है. न कोई शिक्षक है, न जगह है और न ही जनता को इसकी कोई जानकारी है.
सरकारी बेवसाइट भी 'शवासन' में
मध्य प्रदेश योग आयोग की आधिकारिक वेबसाइट www.mpyogaayog.in भी जड़ अवस्था में है. क्लिक कर-करके लोगों की उंगलियों का आसन बिगड़ गया है, पर वेबसाइट ऐसी ध्यानमग्न है कि खुलती ही नहीं. भोपाल गैस पीड़ितों के लिए बने योग केंद्रों की हालत भी खराब है. जिस भोपाल शहर ने मौत को सांस के ज़रिये भीतर खींचा था, वहां सरकार ने सोचा कि अब योग से फेफड़े ठीक कर देंगे. चार करोड़ रुपये खर्च किए गए ताकि ‘प्राणायाम' फूँककर वो हवा ठीक हो, जो 1984 में जहर बन गई थी. लेकिन लगभग 60% गैस पीड़ित आज भी फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे हैं. उन्हें योग की नहीं, योजना की सांसें फूली मिलती हैं.
साधना की जगह हो रहे जलसे
शुरुआत में कहा गया था कि हर वार्ड में योग केंद्र बनेगा. कुल 36 केन्द्रों के लिए 3.68 करोड़ रुपये का बजट भी तैयार हुआ. लेकिन उसके बाद कटौती की कैंची चली और योजना हर ज़ोन में केवल एक केंद्र तक सिमट गई.7 योग केंद्र ही बन पाए. लेकिन अब ये केंद्र ना योग के रह गए हैं, ना ही रोग निवारण के. कहीं शादी के मंडप बन गए हैं तो कहीं अधिकारियों की उपस्थिति रजिस्टर में चेक इन-चेक आउट का खेल चल रहा है. आध्यात्मिक साधना की जगह अब यहाँ नगर निगम के जलसे होते हैं या फिर नेताजी की सालगिरह पर भजन संध्या.योग केंद्र के बजाय अब ये 'लोक संपर्क केंद्र' बन गए हैं.
मंत्री जी बोले, निश्चिंत रहिए
सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा कहती हैं कि योग करने से गैस पीड़ितों को फायदा होता है. सरकार ने योजनाएं भी बनाईं लेकिन कहीं योग होता ही नहीं. कभी शादी होती है, कभी नगर निगम के कार्यक्रम. कुल मिलाकर योग के अलावा सब होता है. कई जगह तो नगर निगम ने ले ली है, जहां किराए पर शादियां कराई जाती हैं.
अव्यवस्थाओं पर मंत्री राव उदय प्रताप सिंह कहते हैं कि यह मूल विभाग की जिम्मेदारी है, शिक्षा आयोग और योग आयोग की जिम्मेदारी है. इन्हें व्यवस्थित तरीके से चलाने की जिम्मेदारी निगम की है. निश्चिंत रहिए, सब अच्छे से चलेगा. वहीं विधायक भगवान दास सबनानी कहते हैं कि योग के लिये क्या चाहिए, कहीं भी दरी बिछा दीजिए और योग कर लीजिए.
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