वर्ष 2010 में श्रीहरिकोटा से रिपोर्टिंग करते NDTV के साइंस एडिटर पल्लव बागला... पृष्ठभूमि में दिख रहा है जीएसएलवी...
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश):
विज्ञानी जिसे प्यार से 'नॉटी ब्वॉय ऑफ इसरो' कहकर पुकारते हैं, देश का वह सबसे वज़नी रॉकेट अंतरिक्ष में उपग्रहों को लॉन्च करने के अपने आधे मिशनों में नाकाम रहा है, लेकिन आज जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle या जीएसएलवी) को कामयाब होना ही पड़ेगा... जीएसएलवी आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से 4:57 बजे 450 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ वह संचार सैटेलाइट अंतरिक्ष में ले जाने वाला है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका तथा नेपाल सहित सात दक्षिण एशियाई देशों को तोहफे में देने की घोषणा की है... पाकिस्तान ने इसका हिस्सा बनने से, लाभार्थी के रूप में भी नहीं, इंकार कर दिया है...
श्रीहरिकोटा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, यानी इसरो का कंट्रोल रूम उड़नतश्तरी के आकार में बना हुआ है, जिसमें इस वक्त देश के सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष विज्ञानी और इंजीनियर बैठे हैं, और वे सैटेलाइट और उसे अंतरिक्ष में ले जाने वाले रॉकेट की नस-नस पर नज़रें रखेंगे... सैटेलाइट का वज़न लगभग 2,230 किलोग्राम है, यानी लगभग चार वयस्क हाथियों के बराबर, और यह 414-किलोग्राम वज़न वाले इस रॉकेट द्वारा ले जाए गए सबसे ज़्यादा वज़नी उपग्रहों में से एक है... जीएसएलवी के लॉन्च में सबसे ज़्यादा बारीक काम होता है रॉकेट के ऊपरी हिस्से में सुपर-कूल्ड लिक्विड ऑक्सीजन तथा लिक्विड हाइड्रोजन का भराव... दरअसल, हाइड्रोजन बेहद जल्दी आग पकड़ सकती है, इसलिए बेहद सावधानी बरता जाना ज़रूरी होता है...
वर्ष 2001 में काम करना शुरू करने के बाद से स्वदेश-निर्मित क्रायोजेनिक इंजन द्वारा ऊर्जा हासिल करने वाले 50-मीटर ऊंचे इस रॉकेट का यह 11वां मिशन है...
एक ओर जहां विज्ञानी अथक परिश्रम कर रहे हैं, ताकि सब कुछ ठीक से निपट जाए, वहीं दिल्ली के रायसीना हिल्स स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काफी तनाव अवश्यंभावी है... लॉन्च के बाद उम्मीद की जा रही हैं कि छह लाभार्थी देशों के नेता वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये अपनी टिप्पणियां देंगे... मेरी समझ से यह अनूठी अंतरिक्ष डिप्लोमेसी है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनाई है, क्योंकि अंतरिक्ष में अब तक जो भी साझा क्षेत्रीय संचार उपग्रह भेजे गए थे, वे वाणिज्यिक लाभ के लिए भेजे गए थे...
श्रीहरिकोटा में दिनभर में एक के बाद एक कई गुब्बारे हवा में छोड़े जा चुके हैं, ताकि ज़मीन तथा ऊपरी वातावरण में हवा की गति का अंदाज़ा लगाया जा सके... इसके अलावा रेंज सेफ्टी ऑफिसर (आरएसओ) को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लॉन्च पैड की पांच किलोमीटर की परिधि में कोई मानव उपस्थिति न हो...
किसी भी रॉकेट लॉन्च के लिए उड़ान भरने की अनुमति देने का अधिकार प्रधानमंत्री या इसरो अध्यक्ष के पास नहीं, सिर्फ रेंज सेफ्टी ऑफिसर के पास होता है... यदि कुछ गड़बड़ी होती है, तो सिर्फ रेंज सेफ्टी ऑफिसर ही यह भी तय करेगा कि रॉकेट को नष्ट किया जाना है या नहीं... वर्ष 2006 में ठीक ऐसा ही हुआ था, जब जीएसएलवी का एक शुरुआती संस्करण रास्ते से भटक गया था, और चेन्नई में गिरकर भारी तबाही की वजह बन सकता था...
कुछ पहलुओं से आज का मिशन कतई अनूठा है, लेकिन इस मिशन के दौरान इसरो की पारदर्शिता भी काफी नीचे रही है... इस ऐतिहासिक मिशन को कवर करने के लिए श्रीहरिकोटा में कोई मीडिया मौजूद नहीं रहेगा... अच्छा होता, यदि इसरो तथा विदेश मंत्रालय सातों लाभार्थी देशों तथा शेष दुनिया से मीडिया को यहां जुटाते, ताकि वे भी इस अनूठे मिशन के गवाह बन सकते... लेकिन किसी कारणवश अपारदर्शिता बरता जाना ही सही समझा गया है...
श्रीहरिकोटा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, यानी इसरो का कंट्रोल रूम उड़नतश्तरी के आकार में बना हुआ है, जिसमें इस वक्त देश के सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष विज्ञानी और इंजीनियर बैठे हैं, और वे सैटेलाइट और उसे अंतरिक्ष में ले जाने वाले रॉकेट की नस-नस पर नज़रें रखेंगे... सैटेलाइट का वज़न लगभग 2,230 किलोग्राम है, यानी लगभग चार वयस्क हाथियों के बराबर, और यह 414-किलोग्राम वज़न वाले इस रॉकेट द्वारा ले जाए गए सबसे ज़्यादा वज़नी उपग्रहों में से एक है... जीएसएलवी के लॉन्च में सबसे ज़्यादा बारीक काम होता है रॉकेट के ऊपरी हिस्से में सुपर-कूल्ड लिक्विड ऑक्सीजन तथा लिक्विड हाइड्रोजन का भराव... दरअसल, हाइड्रोजन बेहद जल्दी आग पकड़ सकती है, इसलिए बेहद सावधानी बरता जाना ज़रूरी होता है...
वर्ष 2001 में काम करना शुरू करने के बाद से स्वदेश-निर्मित क्रायोजेनिक इंजन द्वारा ऊर्जा हासिल करने वाले 50-मीटर ऊंचे इस रॉकेट का यह 11वां मिशन है...
एक ओर जहां विज्ञानी अथक परिश्रम कर रहे हैं, ताकि सब कुछ ठीक से निपट जाए, वहीं दिल्ली के रायसीना हिल्स स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काफी तनाव अवश्यंभावी है... लॉन्च के बाद उम्मीद की जा रही हैं कि छह लाभार्थी देशों के नेता वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये अपनी टिप्पणियां देंगे... मेरी समझ से यह अनूठी अंतरिक्ष डिप्लोमेसी है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनाई है, क्योंकि अंतरिक्ष में अब तक जो भी साझा क्षेत्रीय संचार उपग्रह भेजे गए थे, वे वाणिज्यिक लाभ के लिए भेजे गए थे...
श्रीहरिकोटा में दिनभर में एक के बाद एक कई गुब्बारे हवा में छोड़े जा चुके हैं, ताकि ज़मीन तथा ऊपरी वातावरण में हवा की गति का अंदाज़ा लगाया जा सके... इसके अलावा रेंज सेफ्टी ऑफिसर (आरएसओ) को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लॉन्च पैड की पांच किलोमीटर की परिधि में कोई मानव उपस्थिति न हो...
किसी भी रॉकेट लॉन्च के लिए उड़ान भरने की अनुमति देने का अधिकार प्रधानमंत्री या इसरो अध्यक्ष के पास नहीं, सिर्फ रेंज सेफ्टी ऑफिसर के पास होता है... यदि कुछ गड़बड़ी होती है, तो सिर्फ रेंज सेफ्टी ऑफिसर ही यह भी तय करेगा कि रॉकेट को नष्ट किया जाना है या नहीं... वर्ष 2006 में ठीक ऐसा ही हुआ था, जब जीएसएलवी का एक शुरुआती संस्करण रास्ते से भटक गया था, और चेन्नई में गिरकर भारी तबाही की वजह बन सकता था...
कुछ पहलुओं से आज का मिशन कतई अनूठा है, लेकिन इस मिशन के दौरान इसरो की पारदर्शिता भी काफी नीचे रही है... इस ऐतिहासिक मिशन को कवर करने के लिए श्रीहरिकोटा में कोई मीडिया मौजूद नहीं रहेगा... अच्छा होता, यदि इसरो तथा विदेश मंत्रालय सातों लाभार्थी देशों तथा शेष दुनिया से मीडिया को यहां जुटाते, ताकि वे भी इस अनूठे मिशन के गवाह बन सकते... लेकिन किसी कारणवश अपारदर्शिता बरता जाना ही सही समझा गया है...
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