Rajasthan Sucess Story:राजस्थान में क्रिसमस और नए वर्ष के मौके पर अक्सर देशी और विदेशी मेहमानों की संख्या बढ़ जाती है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां पहुंचने वाले कुछ विदेशी मेहमान पर्यटन के लिए नहीं, बल्कि यहां ऑर्गेनिक खेती और पशुपालन के गुर भी सीखने पहुंचते हैं.
जी हां, वर्ष 2004 तक बड़े शहरों में कार्पोरेट जॉब करने वाले ईश्वर सिंह राठौड़ लाखों का पैकेज की नौकरी छोड़कर अपने चुंडियावाड़ा गांव बस गए और करीब 18 बीघा जमीन पर फार्महाउस बनाकर जैविक खेती शुरू की. ईश्वर सिंह करीब दो दशक से जैविक खेती कर रहे हैं और आसपास के गांवों को ही नहीं, विदेशियों को भी जैविक खेती के गुर सिखा रहे हैं.
डूंगरपुर जिले के लीलवासा ग्राम पंचायत क्षेत्र के चुंडियावाडा गांव में आर्गेनिक खेती और पशुपालन के देशी गुर सीखने के लिए पिछले 17 वर्षो से विदेशी सैलानी पहुंच रहे है, जहां वो जैविक कृषि के गुर सीख रहे हैं और आज भी यह सिलसिला जारी है. दिसंबर माह में भी फ्रांस, स्वीडन व इंग्लैंड से कई विदेशी शोधार्थियों का चुंडियावाडा गांव पहुंचा है.
11 दिसंबर को फ्रांस से आए दंपत्ति इम्यूलन और मेरिन गांव के ही ईश्वर सिंह राठौड़ के फार्म हॉउस पर रुके हैं और उनके परिवार के साथ ही रहते हैं. इम्युलन फ्रांस में दूध डेयरी फार्म की कंपनी में क्वालिटी मैनेजर के पद पर कार्यरत थे, जो सेवानिवृति के बाद कृषि कार्य देखते है, जबकि उनकी पत्नी मेरिन ब्यूटी पार्लर का कार्य करती है.
6 दिसंबर से इंग्लैंड से चुंडियावाडा गांव में पहुंचे स्टीव एक टूर मैनेजर में गाइड का कार्य करते थे. नौकरी पूर्ण होने के बाद बिल्डिंग कार्य, टाइल्स फिटिंग आदि कार्य कर ते है, वो फार्म हाउस पर साथियों के साथ मिलकर मुर्गीपालन के लिए छोटा कमरा तैयार कर रहे है, जबकि 9 दिसंबर को स्वीडन से यहां आए टॉमस समुद्र में मछली पकड़ने का कार्य करते थे. सेवानिवृति के बाद कृषि कार्य के साथ-साथ टॉमस भारतीय कल्चर की जानकारी जुटाने भारत आए हैं.
इम्यूलन व मेरिन ने बताया कि खेतों में देशी किस्म का खाद और बीज उपयोग में लेने से मनुष्य को बीमारियों से निजात मिलेगी. उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में लोग सभी कृषि कार्य मशीनरी एवं केमिकल युक्त खाद बीज से करते हैं, जिससे बीमारियां फैलने का खतरा भी बना रहता है. उन्होंने बताया कि उनका यहां आने का मकसद खेती सीखना था, जिसका प्रयोग अपने देश में करेंगे.मेरिन ने कहा, अब हम जैविक खाद से बना अनाज ही इस्तेमाल करेंगे.
वर्ल्डवाइड ऑर्गेनाइजेशंस आर्गेनिक फार्मर्स के सदस्य और फॉर्म हाउस के मालिक ईश्वर सिंह राठौड़ की संस्था में करीब 30 पश्चिमी देश के शोधार्थी जुड़े है, यहां जैविक खेती सीखने व सिखाने की परम्परा है. उन्होंने बताया कि विभिन्न देशों से जैविक खेती के गुर सीखने के लिए विदेशी यहां आते हैं, 16 वर्षो में 14 देशों से 150 से अधिक शोधार्थी यहां आ चुके हैं.
भारतीय पहनावे के फैन हुए विदेशी मेहमान
विदेशी मेहमान स्टीवन व थॉमस ने बताया कि भारत की प्रकृति बहुत ही अच्छी है. गांवों में रहकर जैविक खेती, पशुओं का दूध दुहना, चारा डालना, फसल काटना आदि सब काम कर रहे है. जैविक खेती को समय की मांग बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए उक्त संस्था से जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया कि यहां के बारे में संस्था से ही पता चला है, जिसके बाद जैविक खेती व पशुपालन का कार्य सीखने चुंडियावाडा गांव आ गए है.
राजस्थानी व्यंजन की रेसिपी सीख रहे विदेशी
टॉमस ने बताया, यहां के लोगों का रहन-सहन व पहनावा बहुत अच्छा है, हमारे वहां पर जींस व टी-शर्ट ही लोग पहनते हैं. जबकि यहां पर सभी तरह के कपड़े व पहनावा देखने को मिलता है. हम यहां पर बनने वाले व्यंजन की रेसिपी सीख रहे हैं. हमारे वहां के व्यंजन की रेसिपी भी हम अवगत करा रहे हैं. यहां के परिवार में एकता व संगठित परिवार है. यहां परिवार के सब लोग एक साथ भोजन करते हैं. वर्तमान में इस तरह के व्यवहार, सोच की जरूरत है.
नौकरी छोड़कर जैविक खेती कर रहे हैं ईश्वर सिंह
ईश्वर सिंह वर्ष 2004 तक बड़े शहरों में कार्पोरेट जॉब करते थे, लेकिन लाखों का पैकेज की नौकरी छोड़कर अपने चुंडियावाड़ा गांव आ गए और करीब 18 बीघा जमीन पर फार्महाउस बनाकर जैविक खेती कर रहे है और आस-पास गांवों को ही नहीं, बल्कि विदेशी शोधार्थियों को भी जैविक खेती के गुर सिखा रहे हैं.
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