
- मुंबई के लालबाग के राजा गणपति विसर्जन में करीब 35 घंटे का वक्त लग गया. आमतौर पर यह करीब 20 घंटे होता है.
- अखिल महाराष्ट्र मछुआरा समिति ने चंद्र ग्रहण के दौरान विसर्जन और भक्तों के उत्पीड़न पर सीएम से शिकायत की है.
- धर्माचार्यों ने चंद्र ग्रहण के समय विसर्जन को परंपरा और धार्मिक नियमों के खिलाफ बताया और आयोजकों पर बरसे.
मुंबई की आस्था का सबसे बड़ा पर्व गणेशोत्सव का आखिरी दिन “गणपति विसर्जन” विवादों के ग्रहण में घिर गया. बात मुंबई के सबसे प्रसिद्ध लालबाग के राजा की है, जिनके विसर्जन में 35 घंटे लग गए. समंदर किनारे ही बप्पा 13 घंटे तक अटके रहे. एक दो नहीं बल्कि तीन बार विसर्जन की कोशिश हुई और समय ग्रहण के करीब जाता गया. आइए जानते हैं कि लाल बाग के राजा की विदाई पर किस तरह विवाद छिड़ा है.
आस्था का सैलाब, भक्ति की दीवानगी और इंतजार की हद. यह सब लालबाग के राजा के विसर्जन के दौरान देखने को मिला. हालांकि इस बार सबसे लोकप्रिय पंडाल के बप्पा की विदाई का ये सफर ग्रहण के साए से गुजरकर विवादों के भंवर में फंस गया.

20 घंटे की जगह लगे 35 घंटे
लालबाग से लेकर गिरगांव चौपाटी तक की यात्रा 20-24 घंटों में पूरी हो जाया करती थी, उसमें 35 घंटे लगे. लालबाग के राजा सागर किनारे ही 13 घंटे इंतजार करते रहे और विसर्जन का मुहूर्त चंद्र ग्रहण के आस-पास के समय में जा पहुंचा. ग्रहण की शुरुआत होने से करीब 40 मिनट पहले यानी करीब 9:20 पर बप्पा विसर्जित हुए. देरी का मुख्य कारण हाई टाइड और विसर्जन के लिए इस्तेमाल किए जा रहे नए राफ्ट में आई तकनीकी समस्या बताई गई. अब इसको लेकर नाराजगी इतनी बढ़ी है कि शिकायत मुख्यमंत्री तक पहुंच गई है.

सीएम से की गई शिकायत
- लालबागचा राजा मंडल के खिलाफ अखिल महाराष्ट्र मछुआरा समिति ने मुख्यमंत्री से शिकायत की है.
- ईमेल के जरिए भेजी गई शिकायत में चंद्र ग्रहण के दौरान विसर्जन कर धार्मिक भावनाएं आहत करने और दर्शन के लिए आए भक्तों के साथ शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न करने के मंडल पर आरोप लगाए गए हैं.
- मछुआरों ने मंडल की कार्यकारी समिति के खिलाफ आपराधिक जांच कर केस दर्ज करने और विसर्जन का पारंपरिक अधिकार उन्हें यानी मछुआरा समाज को वापस देने की मांग की गई है.
धर्माचार्यों ने भी उठाए हैं सवाल
शुभ-अशुभ समय को लेकर एक ओर जहां बप्पा के भक्त खफा हैं, वहीं धर्माचार्यों ने भी परंपरा के टूटने पर सवाल उठाए हैं. नासिक के महंत सुधीर दास महाराज ने कहा कि विसर्जन के वक्त ऑर्गेनाइजर कमेटी ने गलतियां की है. चंद्र ग्रहण का जो प्रधान काल कल था, उसमें मूर्ति का विसर्जन करना यह निषिद्ध माना गया है. विसर्जन चतुर्दशी में ही होना चाहिए. यदि पूर्णिमा होती है तो दोष प्राप्त होता है और कल चंद्र ग्रहण भी था.

भेदभाव को लेकर भी शिकायत
बप्पा की विसर्जन यात्रा को लेकर भी मुंबई का मछुआरा समाज भड़का हुआ है. कोली कह रहे हैं कि जिन मछुआरों ने लालबाग के राजा की स्थापना की, आज उसी मंडल ने बप्पा के विसर्जन और दर्शन का मछुआरों का 90 साल पुराना अधिकार छीन लिया.
वहीं, विसर्जन से पहले, उत्सव के दस दिन लालबाग राजा पंडाल में वीआईपी दर्शन को लेकर होते भेदभाव से भी नाराजगी इतनी बढ़ी कि इसे आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए मानवाधिकार आयोग ने भी राज्य सरकार और मंडल को नोटिस जारी किया. आयोग ने इस विशेष व्यवस्था पर स्पष्टीकरण मांगते हुए पूछा है कि आम भक्तों के साथ यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है.
संजय राउत भी भड़के
उद्धव गुट के सांसद संजय राउत ने कहा कि मैं अभी तक वहां नहीं गया हूं. ऐसा नहीं है कि मैं गणपति के दर्शन नहीं करता. उस भीड़ को एक और को नहीं बढ़ाना चाहिए. वैसे लगता है लालबाग के राजा अमित शाह पर ज्यादा मेहरबान होते हैं, मराठी मानुष पर मेहरबान होते नहीं दिख रहे हैं. जिस दिन वह मराठी मानुष पर मेहरबान होना शुरू हो जाएंगे, उस दिन मैं निश्चित रूप से उस गणपति के दर्शन के लिए जाऊंगा.
लालबाग के दरबार में बढ़ती भीड़ हर साल सुर्खियां बनती हैं और हर बार भीड़ के बीच पिसते श्रद्धालु और VIP कल्चर को लेकर आलोचना की जाती है. इस बार शिकायतों ने औपचारिक रूप धारण किया है और त्योहार खत्म होते होते विसर्जन का विवाद भी शिकायत की शक्ल ले चुका है.
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