चिनार के पेड़ों और कश्मीर का वास्ता बहुत पुराना है. अगर आप एक की बात करते है, तो दूसरे का ख़्याल आपको अपने आप आ जाता है. दरअसल चिनार दशकों से जम्मू-कश्मीर की बदलती क़िस्मत या फिर कहे यहां की सियासत का गवाह रहा है. चुपचाप घाटी में झील के किनारे झेलम के तट पर और गुपकार रोड के आसपास सदियों से यहां क्या-क्या हो रहा है, वो सब देखता रहा है. वैसे तो चिनार का रिश्ता ग्रीस से है, लेकिन कश्मीर तक इसे फ़ारसी लाये. उसके बाद मुग़ल शासकों ने इसे हर जगह लगाया. इतिहास के मुताबिक़, मुग़ल शासकों ने सबसे ज़्यादा चिनार नसीम बाग जो हज्रतबल के पास है, वहां लगाये. उसके आसपास कश्मीर यूनिवर्सिटी भी है.
नौजवान लोग इनके आसपास घूमते, आराम करते और फोटो खींचते दिख जाएंगे. हाल में हुए सर्वे के मुताबिक़, सबसे ज़्यादा चिनार बिजभेरा, बड़गाम, कोकरनाग और अनंतनाग में देखने को मिलते हैं. कहते है कि 1948 तक डोगरा शासन में यह पेड़ सरकार की संपत्ति थी और इसे काटना अपराध था. 2009 में फिर से पेड़ काटने पर रोक लगाई गई और इसे राज्य की संपत्ति बताया गया, जिसका पंजीकरण होना जरूरी किया गया. तब से इस कानून का सख्ती से पालन किया जा रहा है.
वैसे कश्मीर की विरासत कहे जाने वाले चिनार आप घाटी में हर गली महोल्ले में देख सकते हो. आमतौर पर इसकी ऊंचाई 150 फीट की होती है. घाटी का सबसे पुराना चिनार चडूरा यानी बढ़गाम में है. उसकी उम्र 700 साल ये ज़्यादा की है. लेकिन सही से इस धरोहर का रख-रखाव नहीं हो रहा है. ये ही नहीं विकास के नाम पर उसे यहां से लगातार काटा जा रहा है. घाटी के पुराने लोग बताते हैं कि 1970 के दशक में इन पेड़ों की संख्या लगभग 42,000 थी, जो अब घटकर 20,000 से भी कम रह गई है. लेकिन अब इनकी संख्या को दुबारा आबाद करने के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जिओ टैगिंग शुरू कर दी.
जम्मू कश्मीर के प्रशासन का मानना है कि जिओ टैगिंग के ज़रिये ना सिर्फ़ सभी चिनारों की देखभाल करने में मदद मिलेगी, बल्कि टूरिस्ट प्वॉइंट-ऑफ-व्यू से भी ये अच्छा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि मैं ख़ुद गूगल मैप के ज़रिये श्रीनगर के सबसे पुराने चिनार जो कि यहां निशात बाग में है, वहां पहुंच गई. वहां जा कर पता चला की वो 380 साल पुराना है. वहां फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोगों ने बताया की सिर्फ़ निशात में 145 चिनार हैं और मुग़ल गार्डन में 185 हालाँकि इनमें से कई ख़राब भी हो रहे है. 380 साल पुराने चिनार का तना भी पताला होता दिखाई दे रहा था.
घाटी के एक प्रोफेसर ने बताया, 'ये पेड़ कश्मीर की शान हैं और बुनियादी ढांचे को विकसित करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राकृतिक विरासत अप्रभावित रहे. जबकि मौजूदा पेड़ों को पोषित और संरक्षित करने की आवश्यकता है. इस विरासत को संरक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर नए पेड़ लगाए जाने चाहिए.'
दरअसल, चिनार के पत्तों की खासियत है कि वे मौसम के हिसाब से अपना रंग बदलते हैं. गर्मियों में चिनार के पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं. जबकि पतझड़ के मौसम में इसके पत्तों का रंग पहले रक्त की तरह लाल, गहरा पीला और फिर पीले रंग में बदल जाता है. वैसे इन दिनों सियासी हवा भी कश्मीर में खूब चल रही है. जहां एक तरफ़ नेशनल कॉन्फ़्रेंस और पीडीपी अपनी खोई हुई ज़मीन को हासिल करने की कोशिश कर रही है. वहीं बीजेपी यहां कमल खिलाने में लगी हुई है. इस बार दस कश्मीरी पंडित भी चुनावी मैदान में उतरे हैं. जमात और इंजीनियर रसीद की पार्टी भी अपनी अवाज बुलंद करने में लगी हुई है.
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