बेंगलुरु:
कर्नाटक में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सात मार्च को संपन्न हुए नगर निकाय चुनावों में बुरी तरह हार का सामना पड़ा है, लेकिन पार्टी ने दावा किया है कि इस चुनाव का मई में होने वाले विधानसभा चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
विपरीत नतीजों से सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल हालांकि जरूर कमजोर हुआ है तथा सत्ता में लौटने की भाजपा की उम्मीद को धक्का लगा है।
कर्नाटक के कुल 207 स्थानीय निकायों की 4,952 सीटों के लिए हुए मतदान की गुरुवार को हुई मतगणना में 1,959 सीटों पर जीत दर्ज करके कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है।
भाजपा को कुल 906 सीटों पर जीत मिली है, और पार्टी दूसरे स्थान पर रहने के लिए मजबूर हुई है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के जनता दल-सेक्युलर (जेडी-एस) ने 905 सीटों पर जीत दर्ज की है।
भाजपा की ही तरह कजपा यानी पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी को भी उम्मीद के विपरीत परिणामों का सामना करना पड़ा है। इस पार्टी को 274 सीटों से संतोष करना पड़ा।
येदियुरप्पा नवंबर, 2012 में भाजपा को छोड़कर अलग पार्टी बना ली है। यह पार्टी विधानसभा चुनाव में भाजपा को झटका देने का मंसूबा पाले हुई है।
भाजपा के पूर्व मंत्री तथा खनन घोटाले में जेल में बंद जी. जनार्दन रेड्डी के नजदीकी बी. श्रीरामुलू द्वारा गठित नई पार्टी का भी हाल बुरा रहा। सिर्फ 86 सीटों पर ही उसके प्रत्याशी चुने गए हैं।
इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए राज्य में 778 निकाय पदों पर जीत दर्ज की। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को 13 सीटों पर जीत मिली है।
कर्नाटक में यह चुनाव सात शहरी निगमों, 43 नगर निगमों, 65 नगरपालिका परिषदों तथा 93 नगर पंचायतों के लिए हुआ है।
कर्नाटक के सात शहरी निकायों में कांग्रेस ने पश्चिमी तट के मंगलोर, उत्तर में बेल्लारी तथा केंद्रीय दावांगिरि पर कब्जा जमाया है, जबकि ये सभी शहरी निकाय भाजपा का गढ़ माने जाते थे।
मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार के गृह राज्य में भी उनकी पार्टी मत जुटाने में नाकामयाब रही।
मुख्यमंत्री शेट्टार ने हालांकि दावा किया है कि निकाय चुनाव के आधार पर विधानसभा चुनाव के परिणाम का आकलन नहीं किया जा सकता।
वहीं, कांग्रेस का कहना है कि इस चुनाव से साफ पता चलता है कि जनता ने भाजपा की भ्रष्ट सरकार को नकार दिया है और अब परिवर्तन चाहती है।
दूसरी तरफ, भाजपा से मात्र एक सीट कम हासिल करने वाले जेडी-एस ने कहा है कि पार्टी के प्रदर्शन ने उसके उन प्रतिद्वंद्वियों को जवाब दे दिया है जो इस पार्टी का पूरी तरह सफाया हो जाने की बात कर रहे थे।
इससे पहले हुए शहरी निकाय चुनाव में भी भाजपा की कांग्रेस के हाथों बुरी तरह हार हुई थी, लेकिन तब वह सत्ता में नहीं थी।
राज्य के कुल 85 लाख मतदाताओं में से 70 फीसदी ने पिछले गुरुवार को चार करोड़ मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।
विपरीत नतीजों से सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल हालांकि जरूर कमजोर हुआ है तथा सत्ता में लौटने की भाजपा की उम्मीद को धक्का लगा है।
कर्नाटक के कुल 207 स्थानीय निकायों की 4,952 सीटों के लिए हुए मतदान की गुरुवार को हुई मतगणना में 1,959 सीटों पर जीत दर्ज करके कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है।
भाजपा को कुल 906 सीटों पर जीत मिली है, और पार्टी दूसरे स्थान पर रहने के लिए मजबूर हुई है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के जनता दल-सेक्युलर (जेडी-एस) ने 905 सीटों पर जीत दर्ज की है।
भाजपा की ही तरह कजपा यानी पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी को भी उम्मीद के विपरीत परिणामों का सामना करना पड़ा है। इस पार्टी को 274 सीटों से संतोष करना पड़ा।
येदियुरप्पा नवंबर, 2012 में भाजपा को छोड़कर अलग पार्टी बना ली है। यह पार्टी विधानसभा चुनाव में भाजपा को झटका देने का मंसूबा पाले हुई है।
भाजपा के पूर्व मंत्री तथा खनन घोटाले में जेल में बंद जी. जनार्दन रेड्डी के नजदीकी बी. श्रीरामुलू द्वारा गठित नई पार्टी का भी हाल बुरा रहा। सिर्फ 86 सीटों पर ही उसके प्रत्याशी चुने गए हैं।
इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए राज्य में 778 निकाय पदों पर जीत दर्ज की। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को 13 सीटों पर जीत मिली है।
कर्नाटक में यह चुनाव सात शहरी निगमों, 43 नगर निगमों, 65 नगरपालिका परिषदों तथा 93 नगर पंचायतों के लिए हुआ है।
कर्नाटक के सात शहरी निकायों में कांग्रेस ने पश्चिमी तट के मंगलोर, उत्तर में बेल्लारी तथा केंद्रीय दावांगिरि पर कब्जा जमाया है, जबकि ये सभी शहरी निकाय भाजपा का गढ़ माने जाते थे।
मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार के गृह राज्य में भी उनकी पार्टी मत जुटाने में नाकामयाब रही।
मुख्यमंत्री शेट्टार ने हालांकि दावा किया है कि निकाय चुनाव के आधार पर विधानसभा चुनाव के परिणाम का आकलन नहीं किया जा सकता।
वहीं, कांग्रेस का कहना है कि इस चुनाव से साफ पता चलता है कि जनता ने भाजपा की भ्रष्ट सरकार को नकार दिया है और अब परिवर्तन चाहती है।
दूसरी तरफ, भाजपा से मात्र एक सीट कम हासिल करने वाले जेडी-एस ने कहा है कि पार्टी के प्रदर्शन ने उसके उन प्रतिद्वंद्वियों को जवाब दे दिया है जो इस पार्टी का पूरी तरह सफाया हो जाने की बात कर रहे थे।
इससे पहले हुए शहरी निकाय चुनाव में भी भाजपा की कांग्रेस के हाथों बुरी तरह हार हुई थी, लेकिन तब वह सत्ता में नहीं थी।
राज्य के कुल 85 लाख मतदाताओं में से 70 फीसदी ने पिछले गुरुवार को चार करोड़ मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।