मुक़ाबला मुलायम परिवार के बेटे और दामाद में था. कुछ लोग इसे लालू यादव के दामाद और मुलायम सिंह के दामाद की चुनावी टक्कर भी बताते हैं. मुक़ाबला यादव बनाम यादव का बनाया गया था. बीजेपी की रणनीति परिवार में रार और यादव वोटों के बंटवारे की थी. इसी दांव से अखिलेश यादव को उनके घर में घेरने की बीजेपी ने तैयारी की थी. लेकिन सब बेकार गया. समाजवादी पार्टी के तेज प्रताप यादव करहल से चुनाव जीत गए हैं. वे रिश्ते में अखिलेश यादव के भतीजे लगते हैं. आरजेडी चीफ़ लालू यादव के वे दामाद हैं. तेज प्रताप यादव पहले भी मैनपुरी से सांसद रह चुके हैं.
करहल सीट पर रिश्तों की राजनीति
अखिलेश यादव पिछली बार मैनपुरी के करहल से विधायक चुने गए थे. इसी साल वे कन्नौज से सांसद बन गए. उन्हें अपना सीट छोड़नी पड़ी. इसीलिए करहल में उप चुनाव हुआ. समाजवादी पार्टी ने तेज प्रताप यादव को टिकट दिया. वे अखिलेश यादव के भतीजे हैं. घर परिवार के लोग उन्हें तेज़ू नाम से पुकारते हैं. उनके खिलाफ बीजेपी ने परिवार से ही अखिलेश यादव के जीजा को टिकट दे दिया. अनुजेश यादव बीजेपी के उम्मीदवार बन गए. वे मल्लाह सिंह के भाई अभय राम यादव के दामाद हैं. उनकी माँ उर्मिला यादव विधायक रह चुकी हैं. अनुजेश यादव की पत्नी संध्या मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं.
बीजेपी ने बनाई थी ये रणनीति
समाजवादी पार्टी को हराने के लिए बीजेपी का फ़ोकस यादव वोटों के बंटवारे पर रहा. इसी रणनीति से बीजेपी एक बार करहल में चुनाव जीत चुकी है. ये बात साल 2002 की है. बीजेपी ने सोबरन सिंह यादव को टिकट दिया. उन्होंने कड़े मुक़ाबले में समाजवादी पार्टी को 935 वोटों से हरा दिया था. इसी फ़ार्मूले से बीजेपी ने इस बार तेज प्रताप यादव को हराने की रणनीति बनाई थी. यादव वोटों में बँटवारे के लिए बीजेपी करहल में गोत्र वाला झगड़ा भी ले आई.
नहीं बंटे यादव वोटर
यादव बिरादरी में दो गोत्र होते हैं, कमरिया और घोसी. बिहार और यूपी में इसे ग्वाल बनाम ढढोर का झगड़ा कहा जाता है. अखिलेश यादव का परिवार कमरिया यादव है और अनुजेश यादव घोसी यादव. बीजेपी की तरफ़ से इसका खूब प्रचार किया गया. करहल विधानसभा में क़रीब 75% घोसी और 25% घोसी यादव हैं. बीजेपी की कोशिश इसी झगड़े के बहाने यादव वोटों में बंटवारे की थी, लेकिन ये फ़ार्मूला नहीं चला. गोत्र कोई भी हो, यादव बिरादरी के एक मात्र नेता अखिलेश यादव हैं. करहल में कुल वोटर 3 लाख 25 हज़ार है. इनमें से यादव वोटर क़रीब सवा लाख हैं. बिना यादव वोटों के बंटवारे की बीजेपी की जीत असंभव हैं.
बीजेपी 22 साल पुराना इतिहास दुहराना चाहती थी
अनुजेश यादव को टिकट देकर बीजेपी 22 साल पुराने इतिहास को दुहराना चाहती थी. तब बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के खिलाफ सोबरन सिंह यादव को टिकट दिया था. सोबरन के पिता दर्शन सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव में कट्टर दुश्मनी थी. बीजेपी के सेहरा ने समाजवादी पार्टी को 935 वोटों से हरा दिया. इस बार बीजेपी इसी फ़ार्मूले पर चुनाव लड़ी. पर ये चला नहीं. हाल के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी इस सीट पर क़रीब 57 हज़ार वोटों से आगे थी. जबकि अखिलेश यादव ने करहल की सीट क़रीब 60 हज़ार वोटों से जीत ली थी. लेकिन इस बार उप चुनाव में बीजेपी से मुक़ाबला कड़ा हो गया.
गड़बड़ी की शिकायत के भी लगे आरोप
मतदान के दिन अखिलेश यादव ने गड़बड़ी की शिकायत की थी. उन्होंने कहा था कि पुलिस बूथ लूटने में लगी है. समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव, सांसद डिंपल यादव, सांसद धर्मेन्द्र यादव सब पोलिंग के दिन सैफई में डटे थे. करहल यहाँ से बस पच्चीस किलोमीटर दूर है. अखिलेश यादव को इस बात की आशंका थी कि शायद कोई गड़बड़ न हो जाए. उनके अपने ही कुछ लोग अंदर ही अंदर पार्टी के खिलाफ काम कर रहे थे. लेकिन शाक्य और दलित बिरादरी के वोटरों ने उनका मान रख लिया.
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