कैलाश सत्यार्थी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों को लेकर समग्र नीतियां विकसित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कल्याणकारी एजेंसी की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि वैश्विक और घरेलू स्तर पर कई संगठनों के साथ काम करना एक दु:स्वप्न जैसा है।
यूरोपीय शरणार्थी संकट को एक आपातकाल करार देते हुए उन्होंने क्षेत्र के देशों से अपील की कि वे इस संकट से निपटने के लिए ‘अपने दिल और दिमाग’ को खोलें क्योंकि बच्चे सबसे वंचित वर्ग हैं।
सत्यार्थी का यह बयान आगामी 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के तहत सतत विकास लक्ष्यों पर एक विशेष शिखर बैठक में उनके संबोधन से पहले आया है।
उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में ब्राजील एक मिसाल बनकर सामने आया है, जबकि अर्जेंटीना, नार्वे और दूसरे स्कैंडेवियाई देश बहुत ही प्रभावी ढंग से इन मुद्दों के साथ निपट रहे हैं।
सत्यार्थी ने कहा, ‘‘वैश्विक स्तर पर बच्चों को लेकर कोई समग्र नीति वाली सोच नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की अलग अलग एजेंसियां अलग अलग मुद्दों के लिए जिम्मेदार हैं। स्वास्थ्य को कोई देख रहा है, बाल मजदूरी की जिम्मेदारी आईएलओ के पास है, यूनेस्को शिक्षा पर प्रमुख एजेंसी है, लेकिन इन एजेंसियों के पास बहुत काम हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह अलग-अलग एजेंसियों के साथ बंटा हुआ है। अगर हम दास बनाई गई, तस्करी, बलात्कार की शिकार किसी लड़की को मुक्त कराते हैं तो मुझे नौ अलग अलग एजेंसियों के साथ निपटना होता है। हम उनके साथ कैसे समन्वय बनाए, उनके साथ कैसे काम करें, यह अब एक बुरा ख्वाब बन चुका है।’’
बाल अधिकार कार्यकर्ता सत्यार्थी ने कहा कि बच्चों के लिए इस तरह की एकल एजेंसी के गठन की मांग बहुत लंबे समय से की जा रही है। पिछले साल सत्यार्थी को पाकिस्तानी किशोरी मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया था। उनके संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ को 1980 के दशक के आखिर से अब तक 80,000 से अधिक बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने का श्रेय जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम (कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन) इस मुद्दे को उठाना चाहते हैं। मैं पिछले कुछ समय से यह मांग करते आ रहा हूं कि एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय नीति संस्थान या थिंक टैंक होना चाहिए जो अधिक गैर पारंपरिक ढंग से काम कर सके।’’ सत्यार्थी ने कहा कि वह ‘हाशिए पर मौजूद’ बच्चों से जुड़े नेक मकसद का चैम्पियन बनने के लिए 10 करोड़ युवाओं को जोड़ने की योजना है।
उन्होंने कहा कि युवाओं को इस मकसद में शामिल करना जरूरी है क्योंकि सकारात्मक मार्ग में खुद को साबित करने का अवसर नहीं मिलने पर वे हिंसा की ओर बढ़ रहे हैं।
यूरोपीय शरणार्थी संकट को एक आपातकाल करार देते हुए उन्होंने क्षेत्र के देशों से अपील की कि वे इस संकट से निपटने के लिए ‘अपने दिल और दिमाग’ को खोलें क्योंकि बच्चे सबसे वंचित वर्ग हैं।
सत्यार्थी का यह बयान आगामी 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के तहत सतत विकास लक्ष्यों पर एक विशेष शिखर बैठक में उनके संबोधन से पहले आया है।
उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में ब्राजील एक मिसाल बनकर सामने आया है, जबकि अर्जेंटीना, नार्वे और दूसरे स्कैंडेवियाई देश बहुत ही प्रभावी ढंग से इन मुद्दों के साथ निपट रहे हैं।
सत्यार्थी ने कहा, ‘‘वैश्विक स्तर पर बच्चों को लेकर कोई समग्र नीति वाली सोच नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की अलग अलग एजेंसियां अलग अलग मुद्दों के लिए जिम्मेदार हैं। स्वास्थ्य को कोई देख रहा है, बाल मजदूरी की जिम्मेदारी आईएलओ के पास है, यूनेस्को शिक्षा पर प्रमुख एजेंसी है, लेकिन इन एजेंसियों के पास बहुत काम हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह अलग-अलग एजेंसियों के साथ बंटा हुआ है। अगर हम दास बनाई गई, तस्करी, बलात्कार की शिकार किसी लड़की को मुक्त कराते हैं तो मुझे नौ अलग अलग एजेंसियों के साथ निपटना होता है। हम उनके साथ कैसे समन्वय बनाए, उनके साथ कैसे काम करें, यह अब एक बुरा ख्वाब बन चुका है।’’
बाल अधिकार कार्यकर्ता सत्यार्थी ने कहा कि बच्चों के लिए इस तरह की एकल एजेंसी के गठन की मांग बहुत लंबे समय से की जा रही है। पिछले साल सत्यार्थी को पाकिस्तानी किशोरी मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया था। उनके संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ को 1980 के दशक के आखिर से अब तक 80,000 से अधिक बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने का श्रेय जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम (कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन) इस मुद्दे को उठाना चाहते हैं। मैं पिछले कुछ समय से यह मांग करते आ रहा हूं कि एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय नीति संस्थान या थिंक टैंक होना चाहिए जो अधिक गैर पारंपरिक ढंग से काम कर सके।’’ सत्यार्थी ने कहा कि वह ‘हाशिए पर मौजूद’ बच्चों से जुड़े नेक मकसद का चैम्पियन बनने के लिए 10 करोड़ युवाओं को जोड़ने की योजना है।
उन्होंने कहा कि युवाओं को इस मकसद में शामिल करना जरूरी है क्योंकि सकारात्मक मार्ग में खुद को साबित करने का अवसर नहीं मिलने पर वे हिंसा की ओर बढ़ रहे हैं।
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