सीजेआई एन.वी. रमना (CJI NV Ramana) ने शनिवार को कहा कि भारत में सत्ता में मौजूद कोई भी दल यह मानता है कि सरकार का हर कार्य न्यायिक मंजूरी पाने का हकदार है, जबकि विपक्षी दलों को यह उम्मीद होती है कि न्यायपालिका (Judiciary) उनके राजनीतिक रुख और उद्देश्यों को आगे बढ़ाएगी लेकिन ‘न्यायपालिका संविधान और सिर्फ संविधान के प्रति उत्तरदायी' है. उन्होंने इस बात को लेकर निराशा जताई कि आजादी के 75 साल बाद भी लोगों ने संविधान द्वारा प्रत्येक संस्था को दी गई भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को नहीं समझा है.
सीजेआई रमना ने कहा, ‘‘चूंकि हम इस साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं और देश के गणतंत्र हुए 72 साल हो गये हैं, ऐसे में कुछ अफसोस के साथ मैं यहां कहना चाहूंगा कि हमने संविधान द्वारा प्रत्येक संस्था को प्रदत्त भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को अब तक नहीं समझा है.''
उन्होंने एसोसिएशन ऑफ इंडियन अमेरिकंस इन सैन फ्रांसिस्को, यूएसए द्वारा आयोजित एक अभिनंदन समारोह में कहा, ‘‘सत्ता में मौजूद पार्टी यह मानती है कि सरकार का हर कार्य न्यायिक मंजूरी का हकदार है. वहीं, विपक्षी दलों को उम्मीद होती है कि न्यायपालिका उनके राजनीतिक रुख और उद्देश्यों को आगे बढ़ाएगी.''सीजेआई रमना ने कहा कि यह त्रुटिपूर्ण सोच संविधान के बारे में और लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज के बारे में लोगों की उपयुक्त समझ के अभाव के चलते बनी है.
उन्होंने कहा, ‘‘ आम लोगों के बीच इस अज्ञानता को जोर-शोर से बढ़ावा दिये जाने से इन ताकतों को बल मिलता है, जिनका लक्ष्य एकमात्र स्वतंत्र संस्था, जो न्यायपालिका है, की आलोचना करना है. मुझे यह स्पष्ट करने दीजिए कि हम संविधान और सिर्फ संविधान के प्रति उत्तरदायी हैं.''प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संविधान में प्रदत्त ‘नियंत्रण और संतुलन' की व्यवस्था को लागू करने के लिए, ‘‘हमें भारत में संवैधानिक संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है. हमें व्यक्तियों और संस्थाओं की भूमिकाओं के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है. लोकतंत्र भागीदारी करने की चीज है.''
उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को उद्धृत किया और कहा कि भारत के संविधान के तहत यह जनता है, जिसे प्रत्येक पांच साल पर शासकों पर निर्णय सुनाने की जिम्मेदारी दी गई है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘...भारत के लोगों ने अब तक बखूबी उल्लेखनीय कार्य किया है. लोगों के सामूहिक विवेक के बारे में संदेह करने की हमारे पास कोई वजह नहीं होनी चाहिए. शहरी, शिक्षित और अमीर मतदाताओं की तुलना में ग्रामीण भारत में मतदाता यह जिम्मेदारी निभाने में अधिक सक्रिय हैं.''
उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका अपनी विविधता के लिए जाने जाते हैं, जिसका सम्मान करने और विश्व में हर जगह आगे बढ़ाने की जरूरत है.
उन्होंने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ऐसा सिर्फ इसलिए है कि अमेरिका विविधता का सम्मान करता है, इसी कारण आप सब इस देश में पहुंच सके हैं और अपनी कड़ी मेहनत तथा असाधारण कौशल से एक पहचान बनाई है. कृपया याद रखें. यह अमेरिकी समाज की असहिष्णुता और समावेशी प्रकृति है, जो विश्व भर से मेधावी लोगों को आकर्षित करने में सक्षम है, जो बदले में इसकी (अमेरिका की) संवृद्धि में योगदान दे रहे हैं. '' प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि विविध पृष्ठभूमि के योग्य लोगों का सम्मान करना व्यवस्था में समाज के सभी तबके के विश्वास को कायम रखने के लिए जरूरी है.
उन्होंने कहा, ‘‘समावेशिता का यह सिद्धांत सार्वभौमिक है. भारत सहित विश्व में हर जगह इसका सम्मान करने की जरूरत है. समावेशिता समाज में एकता को मजबूत करता है, जो शांति और प्रगति के लिए जरूरी है. हमें खुद को एकजुट करने वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, ना कि हमें बांटने वालों पर. 21वीं सदी में हम तुच्छ, संकीर्ण और विभाजनकारी मुद्दों को मानव और सामाजिक संबंधों पर हावी नहीं होने दे सकते. हमें मानव विकास पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए सभी विभाजनकारी मुद्दों से ऊपर उठना होगा. एक गैर-समावेशी रुख आपदा को न्योता देगा. '' सीजेआई ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों से कहा कि वे भले ही करोड़पति-अरबपति बन गये हों लेकिन धन का सुख भोगने के लिए उन्हें अपने आसपास शांति चाहिए होगी.
उन्होंने कहा, ‘‘आपके माता-पिता के लिए भी घर पर (स्वदेश में) शांतिपूर्ण समाज रहना चाहिए, जो नफरत और हिंसा से मुक्त हो. यदि आप स्वदेश में अपने परिवार और समाज की भलाई का ध्यान नहीं रख सकते हैं तो यहां आपकी धन दौलत और ‘स्टेटस' का क्या फायदा? आपको अपने तरीके से अपने समाज में बेहतर योगदान करना होगा. असल में सम्मान और आदर मायने रखता है, जो आप स्वेदश में दिला सकते हैं. यह आपकी सफलता की असली परीक्षा है. ''
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