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अगर घर, रसोई एक नहीं तो जेठानी परिवार का हिस्‍सा नहीं... देवरानी की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला 

मामले में दलील दी गई कि याचिकाकर्ता की जेठानी एक अलग रह रही है और उसका मकान नंबर अलग है, इसलिए वह अपने पति के परिवार के दायरे में नहीं आती.

अगर घर, रसोई एक नहीं तो जेठानी परिवार का हिस्‍सा नहीं... देवरानी की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला 
  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आंगनबाड़ी केंद्र में नियुक्ति विवाद में जेठानी और देवरानी के बीच का मामला सुलझाया है.
  • कोर्ट ने कहा कि जेठानी तभी परिवार का सदस्य मानी जाएगी जब पति और देवर-देवरानी एक साथ एक मकान में रहें.
  • पुराना आदेश रद्द किया गया जिसमें याचिकाकर्ता की नियुक्ति रद्द की गई थी कि जेठानी उसी प्रखंड में काम करती है.
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नई दिल्‍ली:

जेठानी-देवरानी के बीच यूं तो प्रॉपर्टी को लेकर अक्‍सर होते झगड़ों के बारे में आपने सुना होगा लेकिन एक मामला उनकी नौकरी को लेकर सामने आया है. इलाहबाद हाई कोर्ट ने आंगनबाड़ी केंद्र में नियुक्ति को लेकर देवरानी और जेठानी के बीच विवाद का निपटारा किया. हाई कोर्ट ने कहा कि अलग रह रही महिला ससुराल के परिवार का हिस्सा नहीं हो सकती. कोर्ट ने कहा, 'जेठानी को परिवार का सदस्य तभी माना जा सकता है जब उसका पति और देवर-देवरानी एक साथ एक ही मकान में रह रहे हों और उनकी रसोई एक ही हो.' 

पुराना आदेश हुआ रद्द 

न्यायमूर्ति अजित कुमार ने बरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) का 13 जून का आदेश रद्द कर दिया. डीपीओ के आदेश के तहत याचिकाकर्ता महिला की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर नियुक्ति इस आधार पर रद्द कर दी गई थी कि उसकी जेठानी भी उसी प्रखंड में आंगनबाड़ी सहायिका के तौर पर काम कर रही है. जबकि सरकारी आदेश के तहत एक ही परिवार की दो महिलाएं एक ही केंद्र में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायिका नियुक्त नहीं की जा सकतीं. 

क्‍या है पूरा मामला 

मामले में दलील दी गई कि याचिकाकर्ता की जेठानी एक अलग रह रही है और उसका मकान नंबर अलग है, इसलिए वह अपने पति के परिवार के दायरे में नहीं आती. याचिकाकर्ता के वकील ने उक्त दलील के समर्थन में परिवार रजिस्टर के संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किए.इससे पता चला कि याचिकाकर्ता अपनी ससुराल के मकान में रह रही है, जबकि उसकी जेठानी रामवती अलग मकान में रहती है. 

रिकॉर्ड देखने और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने डीपीओ का आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर बहाल करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को वेतन का भुगतान किया जाए और उक्त आदेश के कारण वह जितने समय काम से दूर रही, उतने समय का बकाया वेतन भी दिया जाए. 

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