जगदीप धनखड़ अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहते हैं.
- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अपने पद से अचानक से इस्तीफा दे दिया.
- जगदीप धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पदभार संभाला था और उनका कार्यकाल 2027 तक था.
- धनखड़ ने अपने बयानों में संसद की सर्वोच्चता पर जोर देते हुए कहा था कि संसद से ऊपर कोई संस्था नहीं हो सकती है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार की शाम को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे अपने पत्र में धनखड़ ने कहा कि वह तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं. धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पदभार संभाला था और उनका कार्यकाल 2027 तक था. धनखड़ को अपने बेबाक बयानों को लेकर जाना जाता है, जिसके कारण वह अक्सर चर्चा में रहते हैं. उपराष्ट्रपति रहते उनकी विभिन्न मुद्दों पर स्पष्ट राय ने कई बार संवैधानिक, सामाजिक और प्रशासनिक बहसों को हवा दी है. आइए जानते हैं धनखड़ के पांच बड़े बयानों के बारे में.
1. संविधान में आपातकाल के दौरान नए शब्द जोड़ने पर सवाल
धनखड़ ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में 'सेकुलरिज्म' और 'सोशलिज्म' जैसे शब्दों को जोड़े जाने को "नासूर" करार दिया.
धनखड़ ने कहा, "किसी भी संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा होती है. भारत के अलावा दुनिया के किसी भी देश की संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हुआ, क्योंकि प्रस्तावना अपरिवर्तनीय होती है. संविधान की आत्मा होती है. लेकिन भारत की प्रस्तावना को 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत बदल दिया गया, उसमें ‘समाजवादी', ‘धर्मनिरपेक्ष' और ‘अखंडता' जैसे शब्द जोड़ दिए गए."
साथ ही कहा, "अगर आप गहराई से सोचें तो यह एक ऐसा परिवर्तन है, जो अस्तित्व गत संकट को जन्म देता है. ये जोड़े गए शब्द नासूर हैं. ये उथल-पुथल पैदा करेंगे. आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में इन शब्दों का जोड़ा जाना संविधान निर्माताओं की मानसिकता के साथ धोखा है. यह हमारे हजारों वर्षों की सभ्यता की संपदा और ज्ञान का अपमान है. यह सनातन की आत्मा का अपवित्र अनादर है."
2. अनुच्छेद 142 को न्यूक्लियर मिसाइल की दी संज्ञा
जगदीप धनखड़ ने अनुच्छेद 142 को "न्यूक्लियर मिसाइल" की संज्ञा देते हुए कहा, "हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है. इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है."
साथ ही कहा, "हाल ही में जजों ने राष्ट्रपति को लगभग आदेश दे दिया और उसे कानून की तरह माना गया, जबकि वे संविधान की ताकत को भूल गए. अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक ‘न्यूक्लियर मिसाइल' बन गया है, जो चौबीसों घंटे न्यायपालिका के पास उपलब्ध है.”
3. संसद की सर्वोच्चता पर जोर, कहा - कोई इससे ऊपर नहीं
जगदीप धनखड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान साफ कहा कि "संसद सर्वोपरि है" और संविधान के अनुसार कोई भी संस्था इससे ऊपर नहीं हो सकती है.
उन्होंने कहा, "सबसे सर्वोच्च संसद ही है, उससे ऊपर कोई अथॉरिटी नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि संसद में जो सांसद चुनकर आते हैं वो आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. सांसद ही सब कुछ होती है, इनसे कोई ऊपर कोई नहीं होता है."
4. धर्मांतरण का आरोप, कहा - शुगर कोटेड फिलॉसफी बेच रहे
जगदीप धनखड़ ने एक कार्यक्रम के दौरान सुनियोजित धर्मांतरण का आरोप लगाया और कहा कि शुगर कोटेड फिलॉसफी बेची जा रही है. उन्होंने कहा, "सनातन कभी विष नहीं फैलाता, सनातन स्व शक्तियों का संचार करता है. एक और संकेत दिया गया है जो बहुत खतरनाक है और देश की राजनीति को भी बदलने वाला है. यह नीतिगत तरीके से हो रहा है, संस्थागत तरीके से हो रहा है, सुनियोजित षड्यंत्र के तरीके से हो रहा है और वह है धर्म परिवर्तन."
उन्होंने कहा, "शुगर-कोटेड फिलॉसफी बेची जा रही है. वे समाज के कमजोर वर्गों को निशाना बनाते हैं. वे हमारे आदिवासी लोगों में अधिक घुसपैठ करते हैं. लालच देते हैं. हम एक नीति के रूप में संरचित तरीके से बहुत दर्दनाक धार्मिक रूपांतरण देख रहे हैं और यह हमारे मूल्यों और संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है."
5. राजनीतिक भड़काऊ बहस को नहीं दें बढ़ावा: धनखड़
जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति रहते अपने एक भाषण में कहा, "राज्य के सभी अंगों का एक ही उद्देश्य है: संविधान की मूल भावना सफल हो, आम आदमी को सब अधिकार मिले, भारत फले और फूले. उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों और आगे के संवैधानिक आदर्शों को पोषित करने और फलने-फूलने के लिए मिलकर और एकजुट होकर काम करने की जरूरत है. इन मंचों को राजनीतिक भड़काऊ बहस को बढ़ावा नहीं देना चाहिए जो स्थापित संस्थानों के लिए हानिकारक है, जो चुनौतीपूर्ण और कठिन माहौल में देश की अच्छी तरह से सेवा करते हैं."
उन्होंने कहा, "हमारी संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में अपना कर्तव्य निभाती हैं और हानिकारक बयान उन्हें निराश कर सकती हैं. ये एक राजनीतिक बहस को जन्म दे सकता है और एक कहानी को गति दे सकता है. हमें अपने संस्थानों को लेकर बेहद सचेत रहना होगा. वे मजबूत हैं, वे कानून के शासन के तहत स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं और संतुलित हैं."
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