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Rath Yatra 2024: ओडिशा का पुरी शहर रविवार यानी आज से शुरू होने वाली भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा उत्सव के लिए पूरी तरह तैयार है. 53 वर्षों बाद यह यात्रा दो-दिवसीय होगी. ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार इस साल दो-दिवसीय यात्रा आयोजित की गई है, जबकि आखिरी बार 1971 में दो-दिवसीय यात्रा का आयोजन किया गया था.
परंपरा से हटकर, तीन भाई-बहन देवी-देवताओं - भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र से संबंधित त्योहार से संबंधित कुछ अनुष्ठान भी रविवार को एक ही दिन में आयोजित किए जाएंगे. रथों को जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार के सामने खड़ा किया गया है, जहां से उन्हें गुंडिचा मंदिर ले जाया जाएगा. वहां रथ एक सप्ताह तक रहेंगे.
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ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने सात और आठ जुलाई को रथयात्रा के लिए दो दिवसीय अवकाश की घोषणा की, जो 53 वर्षों के बाद एक विशेष अवसर है. मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू रथ यात्रा समारोह में भाग लेंगी.
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रथ यात्रा के मौके पर क्या-क्या होता है?
रविवार दोपहर को भक्त रथों को खींचेंगे. इस वर्ष, रथ यात्रा और संबंधित अनुष्ठान जैसे 'नवयौवन दर्शन' और 'नेत्र उत्सव' एक ही दिन सात जुलाई को आयोजित किए जाएंगे. ये अनुष्ठान आम तौर पर रथ यात्रा से पहले आयोजित किए जाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्नान पूर्णिमा पर अधिक स्नान करने के कारण देवता अस्वस्थ हो जाते हैं और इसलिए अंदर ही रहते हैं. 'नवयौवन दर्शन' से पहले, पुजारी 'नेत्र उत्सव' नामक विशेष अनुष्ठान करते हैं, जिसमें देवताओं की आंखों की पुतलियों को नए सिरे से रंगा जाता है.
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जगन्नाथपुरी रथ यात्रा की खास बातें
पुरी की रथयात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है. रथ यात्रा के लिए भगवान श्रीकृष्ण, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के लिए नीम की लकड़ियों से रथ तैयार किए जाते हैं. सबसे आगे बड़े भाई बलराम का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और पीछे जगन्नाथ श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का रथ होता है. इन तीनों रथों के अलग-अलग नाम व रंग होते हैं. बलराम जी के रथ को तालध्वज कहा जाता है और इसका रंग लाल और हरा होता है. देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्मरथ कहा जाता है और यह रथ काले या नीले रंग का होता है. भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष या गरुड़ध्वज कहलाता है और यह रथ पीले या लाल रंग का होता है. नंदिघोष की ऊंजाई 45 फीट ऊंची होती है, तालध्वज 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन पथ तकरीबन 44.7 फीट ऊंचा होता है.
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