
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पेड़ों को काटना इंसानों को काटने जैसा ही है, या फिर इंसानों की हत्या करने से भी ज्यादा बदतर है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों पर कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अवैध रूप से काटे गए हर एक पेड़ के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना लगाने की भी मंजूरी दे दी है. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने साफ संदेश देते हुए कहा कि संबंधित प्राधिकारी की मंजूरी के बिना पेड़ों को अवैध रूप से काटने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए. इसी के साथ पीठ ने उस व्यक्ति की याचिका को भी ख़ारिज कर दिया है, जिसने संरक्षित ताज ट्रेपेजियम क्षेत्र में 454 पेड़ काट दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें
- पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिलेगी राहत
- पेड़ों को काटना, इंसानों को काटने से भी बदतर है.
- अपराधी पर काटे गए हर एक पेड़ के लिए 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया
- 18 सितंबर 2024 की रात को काटे गए थे 454 पेड़
सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने पेड़ों की कटाई मामलों में जुर्माने के लिए मानक तय किया
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एडीएम राव के सुझाव को इस मामले में स्वीकार किया है. वह अदालत में एमिकस क्यूरी के रूप में सहायता कर रहे हैं और उन्होंने कहा कि अपराधियों को स्पष्ट संदेश भेजा जाना चाहिए कि कानून और पेड़ों को हल्के में नहीं लिया जा सकता. अपने आदेश के साथ, अदालत ने इस बात के लिए मानक तय कर दिया है कि ऐसे मामलों में कितना जुर्माना लगाया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, "पर्यावरण के मामले में कोई दया नहीं. बड़ी संख्या में पेड़ों को काटना किसी इंसान की हत्या से भी बदतर है. इस अदालत की अनुमति के बिना काटे गए 454 पेड़ों से बने हरित आवरण को फिर से बनाने या पुनर्जीवित करने में कम से कम 100 साल लगेंगे, हालांकि इस अदालत द्वारा लगाया गया प्रतिबंध वर्ष 2015 से ही है."
न्यायालय ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की रिपोर्ट स्वीकार कर ली, जिसमें पिछले साल शिवशंकर अग्रवाल नामक व्यक्ति द्वारा काटे गए 454 पेड़ों के लिए प्रति पेड़ एक लाख रुपये का जुर्माना लगाने की सिफारिश की गई थी. उनके लिए उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि उनके मुवक्किल ने गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगी है तथा न्यायालय से जुर्माना राशि कम करने का आग्रह किया है. उन्होंने यह भी कहा कि अग्रवाल को उसी भूखंड पर नहीं, बल्कि निकटवर्ती स्थल पर पौधारोपण करने की अनुमति दी जानी चाहिए. हालांकि, न्यायालय ने जुर्माना राशि कम करने से इनकार करते हुए उन्हें निकटवर्ती क्षेत्रों में पौधारोपण करने की अनुमति दे दी.
अपनी रिपोर्ट में सीईसी ने कहा कि पिछले साल 18 सितंबर की रात को 454 पेड़ अवैध रूप से काटे गए थे, जिनमें से 422 पेड़ वृंदावन चटीकरा रोड पर स्थित डालमिया फार्म नामक निजी भूमि पर थे तथा शेष 32 पेड़ इस निजी भूमि से सटे सड़क किनारे की पट्टी पर थे, जो संरक्षित वन है. यह देखते हुए कि रिपोर्ट में चौंकाने वाली स्थिति और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन सामने आया है, पीठ ने अग्रवाल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की और सीईसी से उनके खिलाफ उठाए जाने वाले कदमों का सुझाव देने को कहा. पैनल ने सुझाव दिया कि वन विभाग को इस अवैध कटाई के लिए यूपी वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के प्रावधानों के तहत जुर्माना वसूलना चाहिए और विभाग को भारतीय वन अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार संरक्षित वन में मौजूद 32 पेड़ों को गिराने के लिए भूमि मालिक के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी करनी चाहिए.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं