
- चीनी मेडिकल डिवाइसों के माध्यम से मरीजों का संवेदनशील डेटा चोरी होने और इससे हजारों मरीज को नुकसान की आशंका भी जताई जा रही है.
- विशेषज्ञों ने बताया कि इंटरनेट से जुड़े उपकरणों को रिमोटली हैक किया जा सकता है, जिससे मरीजों का स्वास्थ्य डेटा लीक होने की संभावना है.
- चीन अपने चिकित्सा उपकरणों को अन्य देशों के जरिए भारत में भेजता है, जिससे इनडायरेक्ट डंपिंग और बाजार पर उसका प्रभुत्व बढ़ रहा है.
देश की मेडिकल टेक्नोलॉजी कंपनियों ने सरकार से अपील की है कि वह चीनी चिकित्सा उपकरणों की जांच करें, क्योंकि इन उपकरणों का गलत इस्तेमाल जासूसी, साइबर अटैक और डाटा चोरी के लिए किया जा सकता है. ये संदेह भारत में मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियों ने बीते दिनों केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ हुईं बैठक में जताया है.
भारतीय मेडिकल डिवाइस निर्माताओं ने चिंता जताई कि देश के अस्पतालों में बड़ी संख्या में चीनी इमेजिंग और मॉनिटरिंग मशीनें लगाई जा रही हैं. उन्होंने दावा किया कि इन मशीनों के जरिए डाटा चीन जा रहा है.
'डाटा के जरिये मरीजों को नुकसान पहुंचाया जा सकता'
मेडिकल टेक्नोलॉजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पवन चौधरी ने कहा कि अभी दुश्मन राष्ट्र से अगर मेडिकल डिवाइस आ रहे हैं तो दो-तीन तरह के खतरे सामने आते हैं. पहला डाटा जासूसी का है, जिसमें मरीज का सेंसेटिव डाटा या फिर वीवीआईपी मरीजों का डाटा उन डिवाइसों के जरिए भेजा जा सकता है.
उन्होंने कहा, "डिवाइस में फैंटम चिप हो सकती है, जो आमतौर पर नहीं दिखती या फिर मुश्किल से दिखती हैं. उसमें मालवेयर या बग हो सकता है, जो बाद में ट्रिगर किया जा सकता है. इससे हजारों मरीज को नुकसान पहुंच सकता है."
इंटरनेट से जुड़े होने से हैक करना आसान: एक्सपर्ट
दरअसल, ज्यादातर मॉडर्न मेडिकल डिवाइसेज इंटरनेट और क्लाउड से जुड़े होते हैं यानी इन्हें रिमोटली हैक किया जा सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि ये ग्रे जोन वॉरफेयर यानी छुपी हुई जंग का हिस्सा बन सकते हैं. विशेष रूप से IoT यानी इंटरनेट से जुड़े उपकरण जैसे MRI, ECG मॉनिटर आदि से लोगों का हेल्थ डाटा लीक होने का खतरा बताया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने कहा, " जब भी इस तरह की मेडिकल डिवाइस को खरीदा जाता है तो अधिकांश तौर पर यह नहीं देखा जाता कि यह डिवाइस इंटरनेट से किस तरीके से जुड़ी हुई है और किस प्रकार का उत्तर भारत के बाहर भेजा जा रहा है. चीन कि यह विशेषता है कि जब भी वह कोई डिवाइस भेजता है तो इस बात का ध्यान रखता है कि बैक डोर से कहीं ना कहीं डाटा उसके पास आ जाए ताकि उसका गहरा विश्लेषण कर चीनी अथॉरिटी इस्तेमाल कर सके."
उद्योग जगत से जुड़े प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि चीन अपने उपकरणों को अन्य देशों जैसे हॉन्गकॉन्ग, मलेशिया, सिंगापुर आदि के जरिए भारत में भेजता है, जहां से भारत का फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है. इससे चीनी उत्पादों की “इनडायरेक्ट डंपिंग” हो रही है.
चीन का भारतीय बाजारों पर कब्जा
2023-24 में अमेरिका भारत को सबसे ज्यादा 12,552 करोड़ रुपये के मेडिकल उपकरण भेजे हैं और उसका 18% बाजार में हिस्सा है. वहीं चीन दूसरे नंबर पर रहा जिसने 11,506 करोड़ रुपये के चिकित्सा उपकरण भारत में निर्यात किए और उसका 16.4% हिस्सा है.
'डाटा का गलत इस्तेमाल कर सकता है चीन'
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन नर्सिंग फॉर्म के अध्यक्ष डॉक्टर वी के मोंगा ने कहा, " अगर हर बीमारी का डाटा चीन के पास पहुंचेगा तो वह खतरनाक रोल निभा सकता है."
बैठक में भारतीय कंपनियों ने यह भी कहा कि देश में डिवाइस बनाना मुश्किल है क्योंकि नियमों की प्रक्रिया लंबी और महंगी है. ऐसे में सरकार नेशनल मेडिकल डिवाइस पॉलिसी लागू करे ताकि भारत एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बन सके.
अमेरिका में चीनी उपकरण को लेकर चिंता
हालांकि भारत में बढ़ रही है चिंता अब अमेरिका तक भी पहुंच गई है. वहां पर भी चीन के चिकित्सा उपकरण को लेकर अस्पताल और सरकार परेशान हैं. एफडीए, सीआईएसए और अमेरिकन हॉस्पिटल एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि चीन में बने चिकित्सा उपकरण एक आसन्न खतरा पैदा कर सकते हैं. एक्सपर्ट्स के अनुसार, चीन में बने मेडिकल उपकरण आज हेल्थकेयर सिस्टम के लगभग हर हिस्से में पाए जाते हैं क्योंकि ये सस्ते होते हैं. अमेरिका के अस्पतालों और क्लीनिकों में ऐसे हजारों मॉनिटर इस्तेमाल हो रहे हैं.
कुल मिलाकर, चीन से आने वाले मेडिकल डिवाइस पर सवाल उठना अब देश की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता दोनों का मुद्दा बन गया है. अब देखना होगा कि सरकार इस पर कितनी जल्दी और कितनी सख्ती से कदम उठाती है.
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