ट्रांजेक्शन के लिए फेश रिकॉग्निशन और आइरिस स्कैन का इस्तेमाल कर सकते हैं बैंक, पढ़ें ये रिपोर्ट

फेशियल रिकॉग्निशन के इस्तेमाल की पहल ने कुछ विशेषज्ञों को चिंतित भी किया है. एडवोकेट और साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने कहा, "यह विशेष रूप से गोपनीयता संबंधी चिंताओं को बढ़ाता है. क्योंकि भारत में गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और चेहरे की पहचान पर एक समर्पित कानून का अभाव है."

ट्रांजेक्शन के लिए फेश रिकॉग्निशन और आइरिस स्कैन का इस्तेमाल कर सकते हैं बैंक, पढ़ें ये रिपोर्ट

प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली:

बैंक फ्रॉड (Bank Fraud) और टैक्स चोरी (Tax Evasion) की घटनाओं को कम करने के लिए भारत सरकार ने देश के बैंकों में फेशियल रिकॉग्निशन (Facial Recognition) और आइरिस स्कैन (Iris Scan)के इस्तेमाल की सलाह दी है. समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' की रिपोर्ट के मुताबिक, व्यक्तिगत लेनदेन में दी गई एनुअल लिमिट खत्म होने के बाद आगे के ट्रांजेक्शन के लिए अब फेशियल रिकॉग्निशन और आइरिस स्कैन का इस्तेमाल किया जा सकता है. 

'रॉयटर्स' की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सूत्र ने बताया कि कुछ बड़े निजी और सार्वजनिक बैंकों ने इस ऑप्शन का इस्तेमाल करना शुरू भी कर दिया है. हालांकि, सूत्र ने बैंकों का नाम लेने से इनकार कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, वेरिफिकेशन के लिए फेशियल रिकॉग्निशन (Facial Recognition) और आइरिस स्कैन (Iris Scan) इस्तेमाल अनिवार्य नहीं है. हालांकि, ये उन मामलों के लिए है, जिनमें टैक्स उद्देश्यों के लिए सरकारी पहचान पत्र, पैन कार्ड का नंबर बैंकों के साथ शेयर नहीं किया गया है.

विशेषज्ञों ने जताई चिंता
वहीं, फेशियल रिकॉग्निशन के इस्तेमाल की पहल ने कुछ विशेषज्ञों को चिंतित भी किया है. एडवोकेट और साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने कहा, "यह विशेष रूप से गोपनीयता संबंधी चिंताओं को बढ़ाता है. क्योंकि भारत में गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और चेहरे की पहचान पर एक समर्पित कानून का अभाव है." सरकार ने कहा है कि वह 2023 की शुरुआत तक नए गोपनीयता कानून की संसदीय स्वीकृति की उम्मीद कर रही है.

नाम न छापने की शर्त पर दो सरकारी अधिकारियों ने कहा कि नए उपायों का इस्तेमाल एक वित्तीय वर्ष में 20 लाख रुपये ($24,478.61) से अधिक डिपॉजिट और विदड्रॉ करने वाले व्यक्तियों की पहचान को वेरिफाई करने के लिए किया जा सकता है. क्योंकि ऐसे मामलों में पहचान के प्रमाण के रूप में 'आधार' का इस्तेमाल किया जाता है. आधार कार्ड में एक व्यक्ति की उंगलियों के निशान, चेहरे और आंखों के स्कैन से जुड़ी एक अनूठी संख्या होती है.

वित्त मंत्रालय ने दिए थे ये निर्देश
बता दें कि बीते साल दिसंबर में वित्त मंत्रालय ने भारतीय बैंकों से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के एक पत्र पर "आवश्यक कार्रवाई" करने के लिए कहा, जिसमें सुझाव दिया गया था कि ट्रांजेक्शन के लिए वेरिफिकेशन चेहरे की पहचान और आईरिस स्कैनिंग के माध्यम से किया जाना चाहिए. खासकर ऐसे मामलों में जहां किसी व्यक्ति का फिंगरप्रिंट सर्टिफिकेशन फेल हो जाता है.

नवीनतम सलाह पिछले साल एक सरकारी आदेश का पालन करती है, जिसमें एक वित्तीय वर्ष में 2 मिलियन रुपये से अधिक जमा करने या निकालने के लिए आधार कार्ड या पैन नंबर का उल्लेख करना अनिवार्य है. इस मामले पर यूआईडीएआई और वित्त मंत्रालय से संपर्क करने की कोशिश की गई, मगर कोई जवाब नहीं आया.

क्या है फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी?
फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी दरअसल बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी का ही एक पार्ट है जो किसी व्यक्ति को उसके चेहरे से उसकी पहचान करने में मदद करता है. लोग इसे बायोमेट्रिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस एप्लीकेशन के रूप में भी पहचानते हैं, जिसका इस्तेमाल किसी व्यक्ति को उसके आंख के रेटिना, नाक, चेहरे के आकार के हिसाब से पहचाना जाता है. किसी फोटो, वीडियो या रियल टाइम में लोगों की पहचान करने के लिए फेशियल रिकग्निशन सिस्टम का यूज किया जाता है. 

हालांकि, कई बार ये खतरनाक भी साबित हो सकता है, क्योंकि रिकॉग्नाइज डाटा में ऐरर का खतरा हो सकता है जो पुलिस वेरिफिकेशन के टाइम बेगुनाह लोगों को अपराधी बना सकता है. 

टेक्नोलॉजी कैसे करती है काम?
फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी एल्गोरिदम स्केल पर काम करती है, जहां आप चेहरा देखते हैं पहचानते हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी फेस डेटा देखती है. उस डेटा को स्टोर और एक्सेस किया जा सकता है. ये तकनीक डेटा को रीड करके फोन का लॉक खोल देती है. आजकल के ज्यादातर स्मार्टफोन में सिक्योरिटी के लि इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. 

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